Last Updated: Tuesday, July 30, 2013, 08:58

नई दिल्ली : गरीबी के नवीनतम आकलन को लेकर पैदा हुए विवादों के बीच योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने स्वीकार किया कि गरीबों की संख्या को सारणीबद्ध करने की पद्धति काल्पनिक है और इस पर नए सिरे से काम किया जा रहा है।
एक न्यूज चैनल को दिए साक्षात्कार में अहलूवालिया ने पिछले सप्ताह जारी विवादास्पद आंकड़ों से खुद को अलग करने की कोशिश की और कहा कि ये आंकड़े एक विशेषज्ञ समिति के आकलन पर आधारित हैं।
उन्होंने कहा कि तेंदुलकर समिति की सुझाई प्रणाली के आंकड़े देश में गरीबी की संख्या करीब 22 फीसदी बताते हैं। मैं इससे सहमत हूं कि यह रेखा नीचे है। विवादित गरीबी रेखा के विरोध में कांग्रेस द्वारा जताए गए संदेह के बारे में अहलूवालिया ने कहा कि कपिल सिब्बल ने कहा है कि वर्तमान प्रणाली काल्पनिक है और हमें इसमें सुधार करना चाहिए। हम इससे सहमत हैं।
योजना आयोग के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, गरीबी का अनुपात वर्ष 2004-2005 में 37.2 फीसदी थी जो वर्ष 2011-12 में घट कर 21.9 फीसदी रह गई और इसका कारण प्रति व्यक्ति खपत में वृद्धि है।
यह आंकड़े योजना आयोग ने सुरेश तेंदुलकर समिति द्वारा सुझाई प्रणाली के आधार पर तैयार किए हैं। समिति ने स्वास्थ्य, शिक्षा के अलावा ली जाने वाली कैलोरी पर होने वाले खर्च को भी शहरों और गांवों के लिए गरीबी रेखा का मानक बनाया है।
इसके अनुसार, शहरों में जो लोग सामान के उपभोग और सेवाओं पर 33.33 रूपये से अधिक और गांवों में 27.20 रूपये से अधिक खर्च करते हैं वह गरीब नहीं हैं। अहलूवालिया ने कहा, ‘यह योजना आयोग की (गरीबी) रेखा नहीं है। योजना आयोग गरीबी रेखा तय नहीं करता। यह वास्तव में एक विशेषज्ञ समूह द्वारा तय की गई है। जिस रेखा की आप बात कर रहे हैं वह सुरेश तेंदुलकर विशेषज्ञ समिति द्वारा सुझाई गई है।’ पूर्व में आयोग ने गरीबी रेखा तय करने के लिए तेंदुलकर प्रणाली का उपयोग किया था और तब भी विवाद उठा था।
इसके बाद प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष सी रंगराजन की अगुवाई में प्रणाली की समीक्षा के लिए एक समिति बनाई गई थी। समझा जाता है कि समिति अपनी रिपोर्ट वर्ष 2014 के मध्य तक सौंपेगी। एक बार फिर तेंदुलकर समिति की प्रणाली के उपयोग की जरूरत पर स्पष्टीकरण देते हुए अहलूवालिया ने कहा कि वर्ष 2011-12 में जो तेंदुलकर रेखा थी उसे न बताना हमारे लिए मूखर्तापूर्ण होता। उन्होंने कहा कि इसमें बताया गया है कि वर्ष 2004 से पहले हर साल गरीबी कम होने की दर 0.74 फीसदी थी लेकिन 2004 के बाद यह हर साल 2.2 फीसदी रही।
अहलूवालिया के अनुसार, संप्रग सरकार के कार्यकाल के दौरान गरीबी में कमी आने की दर पहले की तुलना में तीन गुना अधिक रही लेकिन आंकड़ों की विभिन्न राजनीतिक दलों ने आलोचना की।
उन्होंने कहा कि निष्कर्ष यह है कि संप्रग सरकार के कार्यकाल के दौरान हमने पहले की तुलना में गरीबी पर ज्यादा अच्छा काम किया। यही मुख्य बात भी है। इसीलिए राजनीतिक रूप से आलोचना की जा रही है। अहलूवालिया ने यह भी कहा कि आलोचना का कारण गरीबी के स्तर पर बहस नहीं है।
उन्होंने कहा कि लोग यह मानना नहीं चाहते कि संप्रग ने अपने कार्यकाल से पहले की तुलना में गरीब दर घटाने में तीन गुना अच्छा काम किया है। आप जिस प्रणाली का भी उपयोग करें, आखिरी पंक्ति पहले के आठ वर्ष की तुलना में सुधार की ज्यादा बेहतर दर दर्शाएगी। यह मुख्य मुद्दा है। यही वजह है कि लोग नाराज हो रहे हैं। अहलूवालिया ने कहा कि संप्रग 2004 में सत्ता पर आया और तब गरीबी रेखा बहुत नीचे थी। संप्रग ने ही स्थिति की समीक्षा के लिए तेंदुलकर समिति गठित की जिसने उच्च गरीबी रेखा को प्राथमिकता दी। इसने गरीबी रेखा उपर की।
उन्होंने कहा कि गरीबी रेखा के बारे में बहुत कुछ कहा जाता है क्योंकि लोग सोचते हैं कि इसे सरकार द्वारा विभिन्न कार्यक्रमों के तहत मुहैया कराए जाने वाले लाभों से जोड़ा जाएगा। (एजेंसी)
First Published: Tuesday, July 30, 2013, 08:58