डरबन समिट में ब्रिक्स विकास बैंक को हरी झंडी

डरबन समिट में ब्रिक्स विकास बैंक को हरी झंडी

डरबन समिट में ब्रिक्स विकास बैंक को हरी झंडी डरबन : भूराजनीतिक क्षितिज पर अपने महत्व का अहसास कराने के एक स्पष्ट कदम के तहत ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका की सरकारों ने बुधवार को ब्रिक्स बैंक को हरी झंडी दे दी। उभर रही अर्थव्यवस्थाओं की विकास संबंधी चुनौतियों से निपटने के लिए गठित होने वाला यह बैंक विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष की तर्ज पर होगा।

पांचवें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के लिए यहां जुटे नेताओं ने 100 अरब डॉलर के आकस्मिकता आरक्षित व्यवस्था को भी मंजूरी दी। पांचों सदस्य देशों में किसी संकट की स्थिति पैदा होने पर इसका इस्तेमाल किया जाएगा। सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने किया।

दो दिनों तक चले पूर्व अधिवेशन के बाद वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने संवाददाताओं से कहा कि हमने (पांचो सदस्य देशों के वित्त मंत्रियों ने) एक बड़ी युक्ति पेश की थी यह अब साकार हो रहा है। यह सुझाव था ब्रिक्स विकास बैंक के गठन का। अगले 12 महीनों में प्रस्तावित बैंक की पूंजी आदि समेत इसके कामकाज की रूपरेखा तय की जाएगी।

उधर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को आश्वस्त किया कि तमिलनाडु के कुडनकुलम में परमाणु विद्युत परियोजना का प्रथम चरण अगले महीने काम करने लगेगा। पांचवें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के इतर द्विपक्षीय मुलाकात के दौरान बुधवार देर शाम मनमोहन ने कहा कि राष्ट्रपति महोदय, आपको यह जानकारी देने में मुझे खुशी हो रही है कि कुडनकुलम की पहली इकाई अगले महीने काम करने लगेगी। कुडनकुलम की पहली इकाई की क्षमता 1,000 मेगावाट विद्युत उत्पादन की है।

मनमोहन ने अपनी अध्यक्षता वाली सुरक्षा संबंधी मंत्रिमंडलीय समिति की बैठक में दी गई मंजूरी का जिक्र करते हुए कहा कि जहां तक तीसरी और चौथी इकाई का सवाल है, हमने अपनी आंतरिक मंजूरी हासिल कर ली है। दूसरी ओर मानवतावादी संगठन, `डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर` (मेडिसीन सैंस फ्रॉन्टीयर्स या एमएसएफ) ने दक्षिण अफ्रीका को जीवन रक्षक दवाओं को सस्ता करने के मामले में अपने ब्रिक्स सहयोगी भारत और चीन के नक्शे कदम पर चलने की सलाह दी। एमएसएफ के दक्षिण अफ्रीका के लिए मीडिया अधिकारी केट रिबेट ने जोहांसबर्ग में कहा कि अन्य ब्रिक्स देशों ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के समझौते में उल्लिखित सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रावधानों को लागू करने के लिए जुलाई 2011 में किए गए वादे पर अमल कर लिया है।

समाचार एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक रिबेट ने कहा कि ब्राजील, भारत और चीन के कदम से करदाताओं के लाखों डॉलर की बचत हुई और दवाओं की कीमत कम होने से अधिक से अधिक लोगों को फायदा मिला। उन्होंने कहा कि दक्षिण अफ्रीका काफी पीछे रह गया है, क्योंकि यह अब भी फार्माश्यूटिकल्स कंपनियों के पेटेंट एकाधिकार की रक्षा करता है और आम लोगों के स्वास्थ्य के साथ समझौता कर रहा है।

एमएसएफ ने कहा कि दक्षिण अफ्रीका में लागू पेटेंट प्रणाली के तहत डब्ल्यूटीओ की 20 सालों की सीमा से आगे भी फार्माश्यूटिकल कम्पनियों के पेटेंट की रक्षा की जाती है और दवाओं के अत्यधिक महंगा होने की स्थिति में पेटेंट को खारिज कर अनिवार्य लाइसेंस (सीएल) जारी नहीं किया जाता है। (एजेंसी)

First Published: Thursday, March 28, 2013, 09:41

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