Last Updated: Sunday, December 9, 2012, 23:46

मुंबई : टाटा समूह के निवर्तमान चेयरमैन रतन टाटा घोटालों तथा पिछली तारीख से करारोपण के कारण इस समय भारत की जो छवि बनी है उससे परेशान हैं। वह चाहते हैं कि सरकार देश के कानून की पवित्रता को बनाए रखने के लिए अपनी ‘दृढ़ प्रतिबद्धता’ जताए। टाटा समूह की 50 साल तक सेवा करने के बाद सेवानिवृत्त हो रहे रतन टाटा ने प्रेट्र को दिये साक्षात्कार में कहा, ‘‘भारत की आज जो छवि है, वैसी पहले कभी नहीं थी।’’ इन 50 वषरें में वह 21 साल तक समूह के चेयरमैन रहे।
करीब एक घंटे चले साक्षात्कार में टाटा ने समूह के प्रमुख के रूप में अपने कार्यकाल में किये गये निर्णयों, मौजूदा निवेश परिदृश्य तथा व्यावसायिक नैतिकता तथा भाई-भतीजावाद वाली पूंजीवादी व्यवस्था के बारे में बातें कीं।
इस महीने 75 साल के हो रहे टाटा ने कहा कि हाल के घोटालों, अदालती प्रक्रियाओं तथा पिछली तारीख से करारोपण जैसी बातों से भारत की छवि को ‘धक्का लगा है’, इन सबके कारण सरकार की विश्वसनीयता को लेकर निवेशकों में असमंजस की स्थिति बनी है। उन्होंने कहा, ‘‘आपको भारत में निवेश के लिये एफआईपीबी से मंजूरी मिली और आपने कंपनी बनाई, आपको परिचालन के लिये लाइसेंस मिला और फिर उसके तीन साल बाद वही सरकार..आपसे कहती है कि आपका लाइसेंस अवैध है और आपका सब कुछ चला गया।’’ टाटा ने कहा, ‘‘इससे अनिश्चितता का माहौल बनता है। इससे पहले कभी भारत की ऐसी छवि नहीं रही। वास्तव में इन सबने मुझे परेशान किया क्योंकि तब इसका तात्पर्य है कि कुछ भी हो सकता है।’’
रतन टाटा ने जोर दे कर कहा कि भारत को यह ‘दृढ़ प्रतिबद्धता’ व्यक्त करनी होगी कि देश के कानून में पवित्रता है और सरकार के फैसले को हल्के ढंग से नहीं लिया जा सकता। उन्होंने कहा कि ऐसा न हुआ तो ‘भारत को हल्के में लिया जाएगा’ मौजूदा स्थिति की आलोचना करने के बावजूद टाटा भारत के आर्थिक भविष्य को लेकर पूरे आशावान है।
निवेशकों का विश्वास बहाल करने के लिये सरकार द्वारा हाल में उठाये गये कदमों का स्वागत करते हुए टाटा ने कहा, ‘‘एफडीआई तथा अन्य चीजों के लिये हाल में उन्होंने जो कुछ किया, मेरे हिसाब से उससे कुछ हद तक विश्वास बहाल होगा।’’ हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि भले ही इन कदमों का ‘बड़ा सकारात्मक प्रभाव’ हो सकता है लेकिन इतना ही पर्याप्त नहीं है।
टाटा ने कहा, ‘‘लोगों को यह विश्वास दिलाने का प्रयास करना होगा कि देश में जो कानून बने है,ं जो विधान हैं, वे बने रहेंगे । अगर इनमें बदलाव करना हो तो वह तार्किक तरीके से होना चाहिए और वह आगे अपने वाले समय के लिए होना चाहिए न कि रिपीट न कि उसे पिछली तिथि से प्रभावी बनाया जाए।’’ बहु-ब्रांड खुदरा क्षेत्र में एफडीआई को एक महत्वपूर्ण कदम बताते हुए टाटा ने कहा कि इससे उपभोक्ताओं के समक्ष चुनाव के लिए ज्यादा विकल्प उपलब्ध होंगे और उम्मीद है कि ये विकल्प अपेक्षाकृत कम लागत वाले होंगे। ‘‘अगर ऐसा नहीं होगा तो यह माडल को विफल समझा जाएगा।’’
रतन टाटा ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सराहना करते हुए उन्हें अत्यंत ईमानदार नेता तथा 1990 के सुधारों का सूत्रधार बताया। उन्होंने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि प्रधानमंत्री को आगे बढना ही था। अगर उनकी चारो तरफ से आलोचना हो रही थी ..उसके बाद आप कुछ नहीं करते हैं। अगर आप उनसे चाहते हैं कि वह कुछ करे और आप उन पर चारो तरफ से हमला करते हैं तो पूरी तरह से ऐसी संभावना है कि वह कुछ नहीं करेंगे।’’ ‘क्रोनी कैपिटलीज्म’ अपनों को चुनचुन कर लाभ पहुंचाने वाले पूंजीवाद के विषय में पूछे गये एक सवाल के जवाब में टाटा के चेयरमैन ने कहा कि यह न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर मुद्दा बनता जा रहा है।
भारत इस मामले में भारत अगुवा नहीं है पर ‘‘ हम काफी उजागर हो गए हैं।’ उन्होंने कहा कि अपनो को लाभ पहुंचाने वाले पूंजीवाद में ऐसी स्थिति बनती है जिससे अमीर और अमीर तथा गरीब और गरीब होता जाता है। यह असमानता हमें ऐसी असामान्य स्थिति की ओर ले जाती है जहां शक्ति कुछ सीमित जगहों तक केंद्रित हो जाती है और प्रतिस्पर्धी में असंतुलनकारी स्थिति पैदा हो जाती है।’ टाटा ने कहा कि क्रोनी कैपिटलीज्म :अपनो को लाभ पहुंचाने वाला पूंजीवाद: से मुलत: कानूनों को उनकी सही भावना के साथ लागू कर के निपटा जा सकता है।
उन्होंने कहा, ‘‘हम जिन कायदे कानूनों के तहत काम कर रहे हैं, उसमें कुछ भी गलत नहीं है। लेकिन दुर्भाग्य से भारत में हम जो करना चाहते हैं उसमें हम जो कानून बनाते हैं, उसका पाठ तो बहुत अच्छा होता है, पर उस पर अमल खराब है।’’ टाटा ने कहा कि इससे कानून का उल्लंघन होता है और जिससे निपटने के लिये नया कानून बनता है और सबके लिए ऐसी रोक लग जाती है मानो सभी कानून का उल्लंधन करने वाले ही हो गए हैं।
रतन टाटा ने कहा, ‘‘ लेकिन जो वास्तव में उल्लंघनन करने वाले होते हैं, वे अपना काम करते रहते हैं क्योंकि कानून पर अमल कराने की व्यवस्था में कमी बरकरार रहती है। ऐसे में अब आप को ऐसे कानून से सामना है जो बहुत पक्षपातपूर्ण है और जिसने अच्छे कानून को बेदखल कर दिया है। इससे आपके लिए कानूनी तरीके से काम करना असंभव या बड़ा कठिन हो जाता है तथा स्थिति बद से बदतर हो जाती है। ’’ उन्होंने कहा, ‘‘अगर हम मजबूत कानून बनाएं और किसी को उसके नाम या उसके संबंधों के कारण कोई रियायत न दी जाए तो मैं मानता हूं कि अपनों को लाभ पहुंचाने वाले पूंजीवाद पर अपने आप अंकुश लग जाएगा।’’ यह पूछे जाने पर कि क्या क्रोनी कैपिटलीज्म की यह समस्या कठिन होती जा रही है, टाटा ने कहा, ‘‘हां । यह एक राय है, मेरे पास इसको साबित करने के लिए कोई तथ्य या आंकड़ा नहीं है।’’ खासकर कारोबारी समुदाय में, भारतीय मूल्यों तथा नैतिकता का ताना-बाना धीरे-धीरे कमजोर होने के बारे में अपने एक बयान के बारे में पूछे जाने पर टाटा ने कहा , ‘‘मैं उस विचार पर कायम हूं।’’ उस पर विस्तार से टिप्पणी करते हुए टाटा ने कहा कि उन्हें लगाता है कि इसके लिए कुछ व्यवस्था भी जिम्मेदार है। क्योंकि ‘यदि आप आज जो मानक हंै उन पर चलते हैं’ तो किसी मूल्य आधारित प्रणाली को अपना कर चलने वाली कंपनी के लिए आज काम करना निश्चित रूप से पहले से ज्यादा कठिन है।
रतन टाटा ने कहा , ‘‘इस तरह आसन तरीका यही है कि जो व्यवस्था चल रही है, आप भी उसका हिस्सा बन जाएं। इस तरह आप का स्तर घट जाता है और धीरे धीरे इसका असर बढने लगता है। और तब हम सोचने लगते हैं कि हम जो कर रहे हैं, वह नियम से हट कर तो है पर, वही ठीक ही क्यों कि वही होना है।’’ इस संबंध में एक उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि 30 या 40 साल पहले अगर कोई व्यक्ति सिनेमा घर में टिकट लेने के लिये पंक्ति तोड़ता तो हल्ला होने लगता था।
उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन अगर आज कोई जबरदस्ती लाइन तोड़ता है तो कोई दूसरा विरोध करने की हिम्मत नहीं करता और वह जो चाहता है हासिल लेता है, वह 10 टिकट ले लेगा तथा हाउसफुल हो जाएगा। वह टिकट ब्लैक में बचने वाला हो सकता है। वह जो कुछ कर सकता है करता है और कोई भी उसे नहीं रोकता।’’ टाटा ने कहा, ‘‘अंतत: होता यह है कि छोटा व्यक्ति सोचने लगता है कि यदि मैं पैसा देकर पंक्ति में आगे पहुंच सकता हू तो ऐसा कर लूं। और जल्द ही यह व्यवस्था बन जाती है। मुझे लगता है कि आजादी के 50 साल से अधिक समय में यही हुआ है।’’ यह पूछने पर कि क्या उद्योग जगत में भी यही सोच काम कर रही है, टाटा ने कहा कि अगर किसी चीज की आपूर्ति कम है तो कुछ कंपनियां इस कमी का फायदा उठाकर पैसा बनाएंगी। कुछ डीलर, वितरणकर्ता तथा बिचौलिये पैसा बनाएंगे।
उन्होंने कहा, ‘हमारे सामाने अब वैसी स्थिति नहीं है। अब ऐसा नहीं है कि हमारे पास कोई अधिकारी आएगा और कहेगा कि इस चीज का अधिकतम खुदारा मूल्य यह है और आप यदि उसका उल्लंघन कारोगे तो हम आप के खिलाफ मुकदमा कर देंगे। ’ यह पूछने पर क्या टाटा समूह बिना समझौते के कारोबार कर रहा है, टाटा ने कहा, ‘‘ऐसा करना अब भी संभव है और आप अब भी इस तरह प्रगति कर सकते हैं। मेरे लिये बड़े गर्व की बात है और खुशी है कि अपने समझौता नहीं किया और आप घर जा कर चैन की नींद सो सके। ’’
रतन टाटा ने कहा, ‘‘इससे आपको नुकसान हो सकता है..और आप जो एयरलाइन चाहते हैं, वह हो सकता है आपको नहीं मिले। शक्तियां आपके खिलाफ काम करती हैं। आप कुछ खो सकते हैं। आपको इससे कुछ घाव लग सकते हैं पर लेकिन कुल मिला कर मुझे नहीं लगता कि हमरा काम खराब रहा है।’’ यह पूछे जाने पर कि मौजूदा कमियों को देखते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था के भविष्य को लेकर क्या वह आशावादी हैं, टाटा ने कहा, ‘‘भारत की भविष्य की संभावना को लेकर मुझमें हमेशा विश्वास रहा है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मेरे हिसाब से हमार देश महान है जिसमें असीम संभावनाएं हैं। दुर्भाग्य से हम स्वयं अपने लिए कुछ समस्याएं खड़ी कर लेते हैं। इसका कारण हमारे आसपास का महौल नहीं है। हमारा माहौल जितना व्यापक है, उतना ही जटिल। इसीलिए हम आराम से चल सकते हैं। मुझे लगता है कि हमें इससे निपटने के लिये निश्चित रूप से एक आर्थिक शक्ति बनना होगा।’’ (एजेंसी)
First Published: Sunday, December 9, 2012, 15:58