Last Updated: Friday, December 9, 2011, 08:39
कोलकाता : रिजर्व बैंक के गवर्नर डी. सुब्बाराव की राय में इस समय दुनिया के फिर मंदी में फंसने का खतरा कम ही है। उन्होंने यह बात ऐसे समय कही है जबकि विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका की आर्थिक वृद्धि धीमी है और यूरोपीय संघ का अर्थव्यवस्था गिर रही है। इन दो प्रमुख क्षेत्रों की कमजोर और डांवाडोल आर्थिक स्थिति के मद्देनजर आशंका है कि कही 2008 की तरह विश्व अर्थव्यवस्था कहीं एक बार फिर मंदी में न घिर जाए।
राव ने यहां सीआईआई के एक समारोह में कहा कि मुझे लगता है कि वैश्विक मंदी की संभावना कम है। साथ ही कहा कि भारत की वृद्धि दर में कमी आ रही है लेकिन इसके मंदी की रुख करार नहीं दे सकते। उन्होंने कहा कि अमेरिका अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी है। यूरोप की वृद्धि दर घट रही है और जापान की वृद्धि दर में सुधार हो रहा है। सुब्बाराव ने भारतीय अर्थव्यवस्था की चुनौतियों के बारे में पूछे जाने पर कहा कि आरबीआई का काम आर्थिक वृद्धि की रफ्तार और मूल्य स्तर के बीच उचित संतुलन स्थापित करना।
उन्होंने कहा कि मैं भारत के 80 फीसदी लोगों के प्रति संवेदनशील हूं जो कीमत बढ़ने से प्रभावित हो रहे हैं। हमें ब्याज दरों में बढ़ोतरी से परेशान उद्योगपतियों और (महंगाई से पीड़ित) गरीबों की चिंताओं के बीच संतुलन स्थापित करना होगा। सुब्बाराव ने कहा कि इस बारे में चिंता जायज है कि मार्च 2010 से अब तक 13 बार ब्याज दरें बढ़ाने के बावजूद मुद्रास्फीति कम नहीं हुई, लेकिन कहा कि यदि मौद्रिक नीति सख्त नहीं की गई होती तो कीमतें और बढ़ी होतीं।
उन्होंने कहा कि यह आलोचना जायज है। लेकिन यदि आरबीआई ने कदम नहीं उठाए होते तो मुद्रास्फीति की अभी 12 या 13 फीसद पहुंच गई होती न कि 9.7 फीसदी । रुपये की पूंजी खाते की परिवर्तनीयता के बारे में उन्होंने कहा कि यह तब तक नहीं होगा जब तक राजकोषीय स्थिरता नहीं आती, वित्तीय बाजार और विकसित नहीं होते और वृद्धि दर स्थिर नहीं होती और मुद्रास्फीति में स्थिरता नहीं आती।
सुब्बाराव ने कहा कि आरबीआई की कोशिश है विनिमय दर में उतार-चढ़ाव के निपटा जा सके। उन्होंने कहा कि हम किसी खास सीमा का लक्ष्य नहीं रख रहे हैं और कंपनियों से अपील की है कि वे उतार-चढ़ाव से बचने के लिए हेजिंग (वायदा एवं विकल्प के सौदों) का सहारा लेना चाहिए।
(एजेंसी)
First Published: Friday, December 9, 2011, 14:09