भारत के पेटेंट, अनुसंधान प्रयास निराशाजनक: प्रणब

भारत के पेटेंट, अनुसंधान प्रयास निराशाजनक: प्रणब

दुमका (झारखंड) : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि चीन, अमेरिका, जर्मनी और जापान जैसे देशों की तुलना में भारत का पेटेंट आवेदन जमा करने का आंकड़ा काफी ‘निराशाजनक’ है और इसे एक चुनौती की तरह लिया जाना चाहिए। राज्य की दो दिन की यात्रा पर आए राष्ट्रपति सिदो कान्हू मुरमू विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि यह शिक्षा में निवेश का समय है और भारतीय विश्वविद्यालयों को पढ़ाई और अनुसंधान की गुणवत्ता से जुड़े मुद्दों पर अपने समकक्षों से आगे बढ़ना चाहिये।

उन्होंने कहा, ‘‘हमें खुद से यह सवाल करना चाहिए कि क्या हमारे विश्वविद्यालय अपना काम ठीक से कर रहे हैं। शिक्षा और अनुसंधान की गुणवत्ता के मामले में हमारे विश्वविद्यालयों को अपने समकक्षों से आगे बढ़ना चाहिए। शोध एवं नवप्रवर्तन को नयी गति दी जानी चाहिए।’’ उन्होंने कहा कि स्नातक पूर्व स्तर पर कुल 260 लाख छात्रों का 2011.12 में नामांकन हुआ। इनमें से सिर्फ एक लाख या 0.4 फीसद ही पीएचडी के लिए पंजीकृत हुए हैं।

उन्होंने बताया कि भारतीयों द्वारा 2010 में सिर्फ 6,000 पेटेंट आवेदन दाखिल किए गए। वहीं दूसरी ओर चीन ने तीन लाख, जर्मनी ने 1.7 लाख, जापानियों ने 4.5 लाख और अमेरिकियों ने 4.2 लाख आवेदन जमा कराए।

दुनिया में कुल दाखिल पेटेंट आवेदनों में भारत का हिस्सा मात्र 0.3 फीसद है। दुनिया की 17 फीसद आबादी भारत में रहती है इस लिहाज से यह आंकड़ा काफी निराशाजनक है। उन्होंने इस बात पर भी क्षोभ जताया कि भारतीय विश्वविद्यालय ‘टापर्स’ की सूची में पहुंचने में विफल रहे हैं।

राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘विश्वविद्यालयों पर एक अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार एक भी भारतीय विश्वविद्यालय 200 शीर्ष विश्वविद्यालयों की सूची में नहीं है। वहीं एशिया के 300 शीर्ष विश्वविद्यालयों में भी हमारे सिर्फ 11 संस्थान हैं।’’ मुखर्जी ने कहा कि शिक्षा किसी भी राष्ट्र और उसके लोगों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उन्होंने कहा कि देश के कार्यबल का दोहन होना चाहिए और देश को युवाओं की उत्पादक उर्जा का इस्तेमाल करना चाहिए जिसमें आर्थिक भविष्य को बदलने की क्षमता है। (एजेंसी)

First Published: Monday, April 29, 2013, 21:50

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