यूएन हथियार संधि पर कई देशों को आपत्ति

यूएन हथियार संधि पर कई देशों को आपत्ति

संयुक्त राष्ट्र : परम्परागत हथियारों के व्यापार को विनियमित करने के लिए प्रस्तावित संयुक्त राष्ट्र संधि के प्रस्ताव पर कई देशों को आपत्ति है जो मानते हैं कि इसमें हथियार निर्यातक देशों के हितों का ध्यान रखा गया है पर अवांच्छित तत्वों को हथियारों की गैरकानूनी बिक्री की समस्या पर संधि मौन है। भारत ऐसे देशों में है जो ऐसे तत्वों के हाथ में अवैध तरीके से पहुंचे हथियारों का भारी दुष्परिणाम झेल रहे हैं।

हथियार व्यापार संधि (एटीटी) का मसौदा इस विषय में वार्ता के अध्यक्ष आस्ट्रेलिया के पीटर वुलकॉट ने प्रस्तुत किया है। यदि इसे मौजूदा रूप में स्वीकार कर लिया जाता है तो इससे भारत के सुरक्षा संबंधी हितों की अनदेखी हो जाएगी। विश्व में ऐसे हथियारों का सालाना व्यापार 70 अरब डालर का है। इसको विनियमित करने के मसौदे को कल पारित करने के लिए प्रस्तुत किया जा सकता है।

भारत को अपने यहां सक्रिय गैरकानूनी माओवादी गुटों और आतंकवादी गिरोहों को सीमापार से गैरकानूनी तरीके से मिल रहे हथियारों की गंभीर समस्या से निपटना पड़ रहा है। निरस्त्रीकरण पर जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र संघ निरस्त्रीकरण सम्मलेन और एटीटी पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में भारतीय दल की नेता सुजाता मेहता ने कहा, ‘एटीटी का परम्परागत हथियारों के गैरकानूनी कारोबार और आतंकवादियों एवं अवांच्छित एवं अन्य कानून विरोधी तत्वों द्वारा उनके इस्तेमाल पर वास्तविक प्रभाव होना चाहिए।’

भारत परम्परागत हथियारों का एक बड़ा आयातक है। अधिकारियों को चिंता है कि इस तरह की संधि के लागू होने पर यदि हथियार निर्यातक करगिल युद्ध जैसे समय पर किसी बहाने देश को हथियार या उसके कलपुर्जों की बिक्री रोक दें तो देश की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।

भारत ने इस संधि के बारे में यहां संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय पर सम्मेलन के दौरान अपनी चिंताओं को व्यक्त भी किया था। बावजूद इसके हथियारों का बड़ा कारोबार करने वाले अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश एक ऐसा मसौदा पेश करवाने में कामयाब हो गए हैं जो भारत के हितों के खिलाफ है। गत वर्ष जुलाई में इस मुददे पर 193 सदस्यीय संयुक्तराष्ट्र में सहमति बनाने का प्रयास विफल हो गया था। (एजेंसी)

First Published: Thursday, March 28, 2013, 16:59

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