`BPL की परिभाषा पर पुनर्विचार करे सरकार`

`BPL की परिभाषा पर पुनर्विचार करे सरकार`

नई दिल्ली : एक संसदीय समिति ने आज कहा कि देश में गरीबों की आबादी के बारे में विभिन्न अनुमान ‘भ्रामक’ हैं और सरकार को बीपीएल (गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वालों) की परिभाषा पर फिर से विचार करना चाहिये।

फा्रंसिस्को सरदिन्हा की अगुवाई वाली इस संसदीय समिति ने आज लोकसभा में रखी गई 18वीं रिपोर्ट में कहा, समिति सरकार से संबंधित प्राधिकार के साथ बीपीएल की परिभाषा पर पुनर्विचार करने की अपील करती है क्योंकि समिति इस बात को लेकर भ्रम में है कि भारत के गरीबों की आबादी हरेक सांख्यिकी व्याख्या के साथ घट बढ़ जाती है। गरीबों के आंकड़ों के बारे में अनुमान में मतभिन्नता का पता इस बात से लगता है कि तेंदुलकर समिति देश में गरीबों की आबादी 8.1 करोड़ परिवार बताती है जबकि कृषि मंत्रालय ने यह आंकड़ा 6.5 करोड़ का रखा है।

रिपोर्ट ने कहा है कि समिति चाहेगी कि खाद्य मंत्रालय को इस बिन्दु के बारे में भी स्पष्टता लाये। ‘‘खाद्यान्नों की खरीद और भंडारण’’ पर अपनी रिपोर्ट में समिति ने कहा कि उसे इस बात का पता लगा है कि कुल आबादी का करीब 37 प्रतिशत हिस्सा बीपीएल के दायरे में आता है, भूख की समस्या चौतरफा है जबकि पिछले 50 वषरे में देश में गेहूं उत्पादन 10 गुना और चावल उत्पादन चार गुना बढ़ा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस प्रकार खाद्यान्नों की खरीद, उसका रखरखाव और भंडारण तथा पीडीएस के जरिये लोगों को इनका प्रभावी वितरण तथा अन्य कल्याणकारी योजनायें बड़ी समस्या बनी हुई हैं जिनका सरकार सामना कर रही है।

इसमें आगे कहा गया है कि प्रचुर रबी और खरीफ फसलों की कटाई के बावजूद खरीद के कुप्रबंधन के साथ साथ अपर्याप्त एवं गलत भंडारण तकनीक के कारण करीब 50,000 टन खाद्यान्न की पर्याप्त हानि होती है। रिपोर्ट में समिति ने कुछ महत्वपूर्ण मसलों की भी शिनाख्त की है जैसे कि खाद्य सब्सिडी की बढ़ती लागत, पीडीएस के संदर्भ में शिकायतें, भारी भंडारण समस्या इत्यादि। (एजेंसी)

First Published: Wednesday, December 19, 2012, 22:01

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