Last Updated: Friday, December 7, 2012, 19:27
नई दिल्ली : भविष्य निधि खातों में गड़बड़ी के मामलों में नियोक्ताओं के खिलाफ जांच करना और मुश्किल होगा। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) ने ऐसे मामलों में जांच पर सात साल की सीमा लागू कर दी है।
केंद्रीय भविष्य निधि आयुक्त (सीपीएफसी) आरसी मिश्रा द्वारा अपने कार्यकाल के आखिरी दिन (30 नवंबर) जारी परिपत्र में मामले खोलने पर समय की सीमा लागू करने का निर्णय लिया गया है। इसका आशय उन प्रावधानों में बदलाव करना है जिनके बारे में नियोक्ता और प्रतिष्ठानों की शिकायत रही है कि इनका इस्तेमाल उन्हें परेशान करने के लिए किया जाता है। हालांकि परिपत्र से नाखुश मजदूर संगठनों ने इसे वापस करने के लिए सरकार पर दबाव डालने का फैसला किया है।
ईपीएफओ ने इसी के साथ श्रमिकों के हित में इसी परिपत्र में भविष्य निधि अंशदान की गणना हेतु ‘मूल वेतन’ को पुनर्परिभाषित किया गया है। इसमें कहा गया है, ‘कर्मचारियों को सामान्यत:, अनिवार्यत: और समान रूप से भुगतान की जाने वाले सभी भत्तों को मूल वेतन माना जाएगा।’ जांच के बारे में इस परिपत्र में कहा गया है कि नियोक्ताओं के खिलाफ भविष्य निधि खातों में गड़बड़ी के मामले में तभी जांच शुरू की जाएगी जबकि अनुपाल अधिकारियों के पास कार्रवाई और जांच योग्य सूचना पेश की जाएगी।
इसमें कहा गया कि नियोक्ताओं के लिए अनुपाल अधिकारियों की मदद के लिए अपने प्रतिष्ठान का पूरा इतिहास उपलब्ध कराना होगा। इसमें जो सूचना मुहैया करानी उनमें जमा राशि और कर्मचारियों की संख्या शामिल है। जांच शुरू करने की अवधि के बारे में इसमें कहा गया ‘‘कोई भी जांच सात साल से ज्यादा समय तक नहीं चलेगी, अर्थात इसमें गड़बड़ी पिछले सात साल के अंतद की होनी चाहिए।’ (एजेंसी)
First Published: Friday, December 7, 2012, 19:27