Last Updated: Tuesday, October 30, 2012, 15:23

नई दिल्ली : भारतीय रिजर्व बैंक की मौजूदा ऋण नीति से चिदंबरम मंगलवार को कुछ खुस नजर नहीं आए। केंद्रीय बैंक ने अपनी रिण एवं मौद्रिक नीति की दूसरी तिमाही की समीक्षा में नीतिगत ब्याज दरों को कम नहीं की जबकि उद्योग जगत ऋण सस्ता करने की पहल की अपेक्षा कर रहा था ताकि आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा मिल सके।
वैसे रिजर्व बैंक ने नकद आरक्षित अनुपात में 0.25 प्रतिशत की ढील दे कर रिण के लिए 175 अरब डालर की नकदी मुक्त की है। मुंबई में रिजर्व बैंक बैंक के गवर्नर डी सुब्बाराव द्वारा जारी मौद्रिक समीक्षा के बाद चिदंबरम ने यहां कहा कहा कि आर्थिक वृद्धि भी उतनी ही बड़ी चुनौती है जितनी कि मुद्रास्फीति। सरकार को वृद्धि की चुनौती का यदि अकेले ही सामना करना पड़ा तो हम अकेले ही इस दिशा में आगे बढ़ेंगे।
प्रमुख नीतिगत दरों में कटौती नहीं करने के रिजर्व बैंक के फैसले से चिदंबरम विचलित दिखे। मौद्रिक नीति से पहले सरकार की तरफ से राजकोषीय मजबूती के लिये पांच साल का खाका पेश किये जाने के बावजूद रिजर्व बैंक ने मुद्रास्फीति को ही ज्यादा तवज्जो दी। थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति सितंबर में 7.81 प्रतिशत रही है। रिजर्व बैंक के 4 से पांच प्रतिशत के संतोषजनक स्तर से यह काफी ऊंची है। ऊंची मुद्रास्फीति के लिये सरकार के उंचे राजकोषीय घाटे को बड़ी वजह माना जा रहा है।
चिदंबरम ने कहा कि सरकार अपनी तरफ से इस तरह का स्पष्ट संदेश देने का प्रयास कर रही है कि हम राजकोषीय मजबूती के रास्ते पर हैं। मुझे पूरी उम्मीद है कि हर कोई सरकार की राजकोषीय मजबूती की दिशा में बढ़ने की प्रतिबद्धता को पढ़ेगा और समझेगा।
नीति वक्तव्य पर चिदंबरम ने कहा कि मैंने आखिरी कुछ पैरा नहीं पढ़े हैं, लेकिन यदि इसमें भविष्य के लिये उम्मीद जताई गई है तो मैं उस भविष्य को देख रहा हूं। उन्होंने आगे कहा कि कभी बोलना ठीक होता है, कभी चुप रहना बेहतर होता है। यह समय चुप रहने का है। (एजेंसी)
First Published: Tuesday, October 30, 2012, 15:23