गिरीशा एच नगराजेगौड़ा को पैरालंपिक मेडल से अच्छी नौकरी मिलने की आस

गिरीशा एच नगराजेगौड़ा को पैरालंपिक मेडल से अच्छी नौकरी मिलने की आस

गिरीशा एच नगराजेगौड़ा को पैरालंपिक मेडल से अच्छी नौकरी मिलने की आस नयी दिल्ली : लंदन पैरालम्पिक में रजत पदक जीतने वाले गिरीशा एच नगराजेगौड़ा ने उम्मीद जताई है कि उनकी उपलब्धि से भारत में इन खेलों को उचित दर्जा मिलेगा और उन्हें पेट पालने के लिये अच्छी नौकरी। पैरालम्पिक में पुरूषों की एफ 42 उंची कूद में रजत पदक जीतने वाले गिरीशा भारतीय पैरालम्पिक समिति को मान्यता मिलने के बाद पदक जीतने वाले पहले खिलाड़ी हैं।

उन्होंने लंदन से भाषा को दिये इंटरव्यू में कहा, भारत में सभी खिलाड़ियों को मदद मिलती है लेकिन सरकार को छोड़कर पैरालम्पिक पर किसी का ध्यान नहीं जाता और ना ही कोई उसे संजीदगी से लेता है। हम भी उतनी ही मेहनत करते हैं जितनी एक ओलंपियन। कर्नाटक के हसन जिले से ताल्लुक रखने वाले इस 24 वर्षीय खिलाड़ी ने कहा, उम्मीद है कि मेरे पदक के बाद हालात बदलेंगे और पैरालम्पिक को उसका दर्जा मिलेगा। मैं अपना पदक देश के विकलांग समुदाय को समर्पित करता हूं । उम्मीद है कि इससे उन्हें भी खेलों को अपनाने की प्रेरणा मिलेगी। गिरीशा ने कहा कि लंदन में भारतीय दल में सिर्फ दस सदस्यों का होना उन्हें खल रहा है और वह उम्मीद करते हैं कि रियो दि जिनेरियो में 2016 पैरालम्पिक में यह दल बड़ा होगा।उन्होंने कहा, यहां सभी पूछते हैं कि भारत इतना बड़ा देश है और उसके सिर्फ दस खिलाड़ी क्यों खेलों में भाग ले रहे हैं। बहुत शर्मिंदगी होती है। उम्मीद है कि रियो में यह दल बड़ा होगा।

अभी तक अपने परिवार के आसरे खेल रहे गिरीशा ने काफी आर्थिक संकट झेले हैं लेकिन उन्हें उम्मीद है कि इस पदक के बाद दूसरे खिलाड़ियों को इस दौर से नहीं गुजरना होगा । उन्होंने कहा, मेरी आमदनी का कोई स्रोत नहीं है। मेरा परिवार, बेंगलूर साइ सेंटर, पीसीआई और कोच (सत्यनारायण) मिलकर मेरा खर्च उठाते आये हैं। पैरालम्पिक में चयन के बाद कर्नाटक सरकार ने पांच लाख रूपये दिये थे। खेलमंत्री अजय माकन ने पदक विजेताओं को साइ में नौकरी देने का आश्वासन दिया है और मुझे यकीन है कि मुझे अब सहायता के लिये दर दर भटकना नहीं होगा। जनवरी 2012 में दूसरी कुवैत अंतरराष्ट्रीय ओपन एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने वाले गिरीशा ने 2006 में खेलना शुरू किया। जन्मजात विकलांगता के शिकार गिरीशा स्कूल और कालेज में सामान्य खिलाड़ियों के साथ ही खेलते आये हैं। हसन से कला में स्नातक इस खिलाड़ी ने मैसूर यूनिवर्सिटी में भी रजत पदक जीता था।

पहलवान सुशील कुमार को अपना प्रेरणास्रोत मानने वाले गिरीशा ने कहा कि लंदन ओलंपिक में सुशील को पदक जीतते देख उन्हें अच्छे प्रदर्शन की प्रेरणा मिली। उन्होंने कहा, सुशील ने बीजिंग में पदक जीता और फिर लंदन में भी। वह भी जमीनी स्तर से निकलकर इन उंचाइयों तक पहुंचा है। लंदन में जब उसने पदक जीता तो मुझे लगा कि मैं भी जीत सकता हूं।

भविष्य की योजनाओं के बारे में पूछने पर गिरीशा ने कहा कि अब वह रियो दि जिनेरियो में 2016 पैरालम्पिक में स्वर्ण पदक जीतना चाहते हैं। उन्होंने कहा, मैं मामूली अंतर से स्वर्ण से चूक गया लेकिन अब रियो में स्वर्ण जीतना मेरा लक्ष्य है। उससे पहले पेरिस में इस साल विश्व चैम्पियनशिप होनी है जिसमें मैं स्वर्ण जीत सकता हूं। क्रिकेट के शौकीन गिरीशा की ख्वाहिश अपने पसंदीदा क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर से मिलने की है। उन्होंने कहा, मैं बचपन से क्रिकेट का शौकीन हूं और सचिन तेंदुलकर का जबर्दस्त प्रशंसक। इतने बड़े खिलाड़ी होने के बाद भी उनकी विनम्रता काबिले तारीफ है। उनसे मिलने की बड़ी ख्वाहिश है। उम्मीद है कि जल्दी पूरी होगी। (एजेंसी)

First Published: Wednesday, September 5, 2012, 17:04

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