Last Updated: Wednesday, July 31, 2013, 23:22

मुंबई : आईपीएल में स्पॉट फिक्सिंग और सट्टेबाजी की जांच करने वाले दो सदस्यीय पैनल को ‘गैरकानूनी और असंवैधानिक’ करार देने वाले बंबई उच्च न्यायालय ने कहा कि इस आयोग का गठन स्वयं बीसीसीआई के नियमों का उल्लंघन करके किया गया। अदालत ने हालांकि आईपीएल फ्रेंचाइजी चेन्नई सुपरकिंग्स के मालिक इंडिया सीमेंट लिमिटेड, इसके पूर्व टीम प्रिंसिपल गुरूनाथ मयप्पन, बीसीसीआई के निर्वासित अध्यक्ष एन श्रीनिवासन और राजस्थान रायल्स के सह मालिक राज कुंद्रा के खिलाफ जांच के लिये सेवानिवृत जजों के किसी नये पैनल के गठन पर रोक नहीं लगायी है। इसमें कहा गया है कि नये जांच आयोग का गठन क्रिकेट बोर्ड का एकाधिकार है। न्यायमूर्ति एम एस सोनक और एस एफ वजीफदार ने कल 61 पेज के अपने फैसले में कहा था, (जांच) आयोग का गठन सही तरह से नहीं किया गया और इसका गठन (बीसीसीआई के) संचालन नियमों की धारा 6 के नियम 2.2 और 3 के प्रावधानों का उल्लंघन और उनके विपरीत है। इस फैसले से श्रीनिवासन का फिर से बीसीसीआई पर पूरा नियंत्रण बनाने की कवायदों को करारा झटका लगा है।
अदालत ने बिहार क्रिकेट संघ और इसके सचिव आदित्य वर्मा की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान यह फैसला सुनाया। याचिका में बीसीसीआई और आईपीएल संचालन परिषद द्वारा दो सदस्यीय पैनल के गठन को चुनौती दी गई थी। अदालत ने कहा कि संचालन नियमों के नियम 2.2 में कहा गया है कि आईपीएल आचार संहिता समिति का कम से कम एक सदस्य आयोग में होना चाहिए था। बीसीसीआई के तत्कालीन सचिव संजय जगदाले ने पैनल का हिस्सा बनने से इन्कार कर दिया था जिसके बाद मद्रास उच्च न्यायालय के दो पूर्व जज टी जयराम चौटा और आर बालासुब्रहमण्यम ही पैनल में रह गये थे। न्यायधीशों ने कहा कि बीसीसीआई ने आईपीएल आचार संहिता समिति में पांच सदस्यों का चयन कर रखा है। बीसीसीआई के पास आयोग में अतिरिक्त व्यक्ति को शामिल करने का अधिकार है। यह हालांकि बीसीसीआई को आईपीएल आचार संहिता समिति के किसी सदस्य के बिना आयोग के गठन का अधिकार नहीं देता है। बीसीसीआई के वकील रफीक दादा ने दलील दी कि क्रिकेट बोर्ड को आईपीएल आचार संहिता समिति के किसी सदस्य के बिना आयोग गठन इसलिए करना पड़ा क्योंकि इस तरह का कोई सदस्य उपलब्ध नहीं था। उन्होंने पैनल के गठन का बचाव किया। दादा ने कहा कि आईपीएल आचार संहिता समिति के सदस्य संजय जगदाले, अजय शिर्के और राजीव शुक्ला उपलब्ध नहीं थे। लेकिन इस पर जजों ने कहा कि रवि शास्त्री और अरूण जेटली भी तो समिति के सदस्य हैं।
दादा ने दलील दी कि कमेंटेटर होने के कारण शास्त्री कई स्थानों का दौरा करते हैं और इसलिए पैनल में शामिल करने के लिये उनके नाम पर विचार नहीं किया गया। अदालत हालांकि इस दलील से सहमत नहीं थी। उसने कहा कि कमेंटेटर के तौर पर कई स्थानों का दौरा करने से वह आयोग के सदस्य के रूप में अपने कार्यों को निर्वहन करने के अयोग्य नहीं बन जाते हैं। जजों ने कहा, आखिर वकीलों ने ही बताया है कि आयोग की एक दिन बैठक हुई और उसने उसी दिन जांच पूरी कर दी। ऐसा कोई संकेत नहीं दिया गया कि वह एक दिन का समय भी नहीं निकाल सकते थे। पीठ ने कहा, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि रवि शास्त्री का नाम आईपीएल आचार संहिता समिति में शामिल किया गया तो निश्चित तौर पर यह माना गया कि वह समिति के सदस्य के रूप में अपने कार्यों का निर्वहन करने की स्थिति में हैं। आचार संहिता समिति के अन्य सदस्य इस अवसर के लिये क्यों उपलब्ध नहीं थे, इसका कोई कारण नहीं बताया गया। (एजेंसी)
First Published: Wednesday, July 31, 2013, 23:22