Last Updated: Wednesday, October 5, 2011, 10:49
बिमल कुमारमहानवमी यानी नवरात्र का अंतिम दिन। इस दिन मां देवी दुर्गा के सिद्धिदात्री स्वरुप की पूजा की जाती है। इसके साथ ही नवरात्रि पर्व का समापन हो जाता है। माता दुर्गा की नौवीं शक्ति सिद्धिदात्री हैं। शारदीय नवरात्र के दौरान पूजन के नौवें दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा का विधान है। इस पावन दिन यानी नवमी को माता की पूजा करने पर श्रद्धालुओं को समस्त प्रकार की सिद्धियों की प्राप्ति होती है। देवी दुर्गा के इस अंतिम स्वरुप को नव दुर्गाओं में सबसे श्रेष्ठ और मोक्ष प्रदान करने वाला माना जाता है।
मां सिद्धिदात्री के स्वरुप की पूजा देव, यक्ष, किन्नर, दानव, ऋषि-मुनि, साधक और संसारी जन नवरात्र के नवें दिन करते हैं। मां की पूजा अर्चना से भक्तों को यश, बल और धन की प्राप्ति होती है। मां सिद्धिदात्री उन सभी भक्तों को महाविद्याओं की अष्ट सिद्धियां प्रदान करती हैं जो सच्चे मन से उनकी आराधना करते हैं। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिया, प्राप्ति, प्रकाम्य, ईशित्व और वशित्व ये आठ सिध्दियां होती हैं। माता सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है और ये कमल पुष्प पर आसीन होती हैं। इनकी दाहिनी नीचे वाली भुजा में चक्र,ऊपर वाली भुजा में गदा और बांयी तरफ नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमलपुष्प है। मां सिद्धिदात्री कमल आसन पर विराजमान रहती हैं और इनकी सवारी सिंह है। देवी सिद्धिदात्री को मां सरस्वती का स्वरुप माना जाता है। जो श्वेत वस्त्रों में महाज्ञान और मधुर स्वर से भक्तों को सम्मोहित करती है।
मधु कैटभ को मारने के लिए माता सिद्धिदात्री ने महामाया फैलाई, जिससे देवी के अलग-अलग रुपों ने राक्षसों का वध किया। यह देवी भगवान विष्णु की अर्धांगिनी हैं और नवरात्रों की अधिष्ठात्री हैं, इसलिए मां सिद्धिदात्री को ही जगत को संचालित करने वाली देवी कहा गया है। इन नौ रातों में तीन देवी पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ रुपों की पूजा होती है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं।
ज्ञात हो कि मां दुर्गा जगत के कल्याण के लिए नौ रूपों में प्रकट हुईं और इन रूपों में अंतिम रूप है देवी सिद्धिदात्री का। अपार श्रद्धा के साथ देवी के पूजन के बाद यदि देवी प्रसन्न होती हैं तो संपूर्ण जगत की रिद्धि और सिद्धि अपने भक्तों को प्रदान करती हैं। देवी ने सिद्धिदात्री का यह रूप भक्तों पर अनुकंपा बरसाने के लिए धारण किया है। देवतागण, ऋषि-मुनि, असुर, नाग, मनुष्य सभी मां के भक्त हैं। मां सिद्धिदात्री की भक्ति जो भी भक्त सच्चे हृदय व पवित्र मन से करता है, मां उस पर अपार अनुकंपा और अपना स्नेह बरसाती हैं। पुराणों में वर्णन के अनुसार भगवान शिव ने सिद्धिदात्री की कृपा से ही सिद्धियों को प्राप्त किया था तथा इन्हें की कृपा से भगवान शिव को अर्धनारीश्वर रूप प्राप्त हुआ। वैसे हमारे शासत्रों में कुल मिलाकर 18 प्रकार की सिद्धियों का वर्णन मिलता है। और मां सिद्धिदात्री इन सभी सिद्धियों की स्वामिनी हैं। इनकी पूजा से भक्तों को ये सभी सिद्धियां प्राप्त होती हैं। जो साधक आज के दिन सिद्धियां हासिल करने के उद्देश्य से भगवती सिद्धिदात्री की पूजा कर रहे हैं, उन्हें नवमी के दिन निर्वाण चक्र का भेदन करना चाहिए। दुर्गा पूजा में इस तिथि को विशेष हवन किया जाता है। हवन करते समय सभी देवी दवताओं के नाम से हवि यानी अहुति देनी चाहिए। बाद में माता के नाम से अहुति देनी चाहिए। मां सिद्धिदात्री के मंत्र इस प्रकार हैं-
‘या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रुपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।‘
First Published: Thursday, October 13, 2011, 13:49