अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव : भारतीय नजरिया

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव : भारतीय नजरिया

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव : भारतीय नजरियाआलोक कुमार राव

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के लिए छह नवंबर यानि मंगलवार को वोट डाले जाएंगे। चुनाव-प्रचार की शुरुआत से पिछले कुछ दिनों तक सर्वेक्षणों में दोनों उम्मीदवारों के बीच मतों का जो अंतर था वह सिमटकर काफी कम रह गया है। वाशिंगटन पोस्ट-एबीसी न्यूज के ताजा सर्वेक्षण में कहा गया है कि ओबामा और रोमनी को 48-48% मत प्राप्त होंगे। अन्य सर्वेक्षणों में भी मुकाबला कांटे का बताया गया है।

यह चुनाव अमेरिकी जनता के साथ-साथ भारत के लिए भी महत्व रखता है। ओबामा और रोमनी में से किसी एक के राष्ट्रपति बनने पर भारत के हितों पर क्या प्रभाव पड़ सकता है, इस पर गौर किया जाना चाहिए लेकिन इसके पहले ओबामा और रोमनी के चुनावी एजेंडे में भारत कहां और किस रूप में है, इस पर गौर किया जा सकता है।

अंतरराष्ट्रीय कूटनीति, भूराजनीतिक परिदृश्य और अर्थव्यवस्था को लेकर अमेरिका की भविष्य की रणनीति पर ही दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंध की रूपरेखा बनने वाली है।

चीन, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और कश्मीर पर अमेरिका का रुख भारत के लिए भूराजनीतिक एवं कूटनीतिक रूप से ज्यादा महत्वपूर्ण है। इसके अलावा परमाणु संधि, आउटसोर्सिंग, एचवन बी वीज़ा जैसे मसले भी दोनों देशों की सामरिक एवं आर्थिक भविष्य की रूपरेखा तय करेंगे।

अपने चुनाव प्रचार के चरण में डिबेट के दौरान ओबामा और रोमनी इन मसलों पर अपने विचार रख चुके हैं। विदेश नीति में अलग विचार रखते हुए भी दोनों उम्मीदवार भारत को अपना अहम साझीदार मानते हैं। ओबामा दोनों देशों के बीच दीर्घकालीन सामरिक साझेदारी जारी रखना चाहते हैं। दोनों देश आतंकवाद से लड़ाई, परमाणु अप्रसार, साइबर सुरक्षा और पर्यावरण जैसे मुद्दों पर आपसी सहयोग कर रहे हैं।

अमरीका में आर्थिक मंदी और बेरोज़गारी बढ़ने के बाद ओबामा अपनी आर्थिक नीतियों को लेकर ज्यादा आक्रामक हैं और आउटसोर्सिंग या नौकरियों को अन्य देशों में भेजने पर उनको एतराज है। ओबामा चाहते हैं कि मनमोहन सिंह अपने आर्थिक सुधार का पहिया तेजी से घुमाए जिससे अमेरिकी कम्पनियों को फायदा पहुंचे। आर्थिक मोर्चे पर ओबामा ने रोमनी से कहीं ज्यादा कड़ा रुख अख्तियार किया है।

कूटनीति के लिहाज से ओबामा की नीति भारत के हित में रही है। उन्होंने कश्मीर मुद्दे पर बाहरी हस्तक्षेप का विरोध किया है। जबकि अफ़गा़निस्तान में वह भारत की भूमिका को अहम मानते हैं।

वहीं, ओबामा के प्रतिद्वंद्वी मिट रोमनी ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान भारत को अमेरिका का सामरिक एवं व्यापारिक मामलों में साझीदार बताया है। अर्थव्यवस्था और व्यापार पर रोमनी की जो नीति है, वह भारत के लिए ओबामा से ज्यादा श्रेयस्कर है। रोमनी आउटसोर्सिंग एवं एच1बी वीजा को लेकर ओबामा से ज्यादा उदार हैं। रोमनी भारत जैसे देशों में नौकरियां भेजने वाली कंपनियों को दंडित न करने में विश्वास रखते हैं जबकि ओबामा ने वीजा शुल्क में वृद्धि और आउटसोर्स करने वाली कम्पनियों को मिलने वाली कर छूट में कमी की है।

भारत-अमेरिका संबंधों के विशेषज्ञ मानते हैं कि अमेरिका का अगला राष्ट्रपति ओबामा बनें अथवा रोमनी कश्मीर, अफगानिस्तान और पाकिस्तान जैसे कूटनीतिक एवं सामरिक मसलों पर दोनों की नीति करीब-करीब एक जैसी रहने वाली है।

चीन को लेकर मिट रोमनी का रुख थोड़ा आक्रामक जरूर है। दक्षिण एशिया में वह चीन को नियंत्रण में रखने के लिए वह भारत को अपना अहम साथी के रूप में देखते हैं। साथ ही उन्होंने पाकिस्तान के प्रति थोड़ी नरमी के संकेत दिया हैं।

पाकिस्तान के ऐबटाबाद में अलकायदा सरगना ओसामा बिन लादेन के मारने के लिए हुई अमेरिकी कार्रवाई पर रोमनी ने कहा कि इसके लिए पहले पाकिस्तान को विश्वास में लेना चाहिए था। जबिक ओबामा ने कहा कि यदि पाकिस्तान को इस बारे में जानकारी देते तो ओबामा कभी मारा नहीं जाता।

बहरहाल, अमेरिका-भारत के द्विपक्षीय रिश्ते पहले से ज्यादा बेहतर हुए हैं और लोगों के बीच आपसी सम्पर्क बढ़ा है। अंतरराष्ट्रीय और आर्थिक स्थितियों ने जो आकार ग्रहण किया है उसमें अमेरिका भारत को नजरअंदाज नहीं कर सकता।






First Published: Monday, November 5, 2012, 16:22

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