Last Updated: Sunday, December 16, 2012, 20:56
आलोक कुमार रावजाते-जाते यह वर्ष अमेरिका को ऐसा घाव दे गया है जिसकी चुभन लंबे समय तक महसूस की जाएगी। 14 दिसंबर को न्यूटाउन के सैंडी हुक एलिमेंटरी स्कूल में एक सिरफिरे युवक ने 20 बच्चों सहित 27 लोगों को गोलियों से छलनी कर दिया। क्रिसमस की तैयारी में जुटा अमेरिकी समाज सहित पूरी दुनिया इस जघन्य घटना पर स्तब्ध और गमगीन है।
दुनिया के सबसे ताकतवर देश और सभ्य समझे जाने वाले समाज में इस तरह की घटनाएं हैरान करती हैं कि क्यों एक व्यक्ति पाशविक मानसिकता का परिचय देते हुए निर्दोष खासकर मासूम बच्चों को बेरहमी से मौत के घाट उतार देता है। इसका जवाब वहां के समाज, संस्कृति और व्यक्तिगत सोच में मिल सकता है। यही नहीं, आए दिन अमेरिका के विभिन्न शहरों में होने वाली गोलीबारी वहां के शस्त्र कानून पर दोबारा से पुनर्विचार करने की वकालत करती है। स्कूल में हुई इस गोलीबारी को अब तक के इतिहास में सबसे घातक हमलों में गिना जा रहा है। इससे पहले साल 2007 में वर्जिनिया में हुए हमले में 32 लोग मारे गए थे।
सैंडी हुक स्कूल में शुक्रवार रात अंधाधुंध गोली चलाकर 27 लोगों की जान लेने वाला हमलावर 20 वर्षीय एडम लांजा कोई कुख्यात अपराधी नहीं था। उसके पड़ोसियों और साथियों की मानें तो वह शर्मीले स्वभाव का था और ज्यादातर लोगों को उसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। वह किसी से ज्यादा घुलता-मिलता भी नहीं था। घटना के बाद पुलिस अब इस बात का पता लगाने की कोशिश कर रही है कि एडम कहीं पर्सनैलिटी डिसऑर्डर का शिकार तो नहीं था।
एडम अपनी मां के साथ क्नेक्टीकट के नज़दीक ही रहा करता था। यह एक संभ्रात इलाका है। एडम के माता-पिता का तलाक हो गया था। उनके पिता पीटर लांज़ा स्टैमफोर्ड चले गए थे जहां उन्होंने बाद में दूसरी शादी कर ली थी। जबकि एडम की मां नैन्सी अपने पारिवारिक घर में ही एडम के साथ रहती थीं। बताया जाता है कि वह भी सैंडी स्कूल में अध्यापक थीं। स्कूल में तबाही मचाने से पहले एडम ने अपनी मां की गोली मारकर हत्या कर दी।
एडम की परवरिश और पारिवारिक ताने-बाने में इस घटना के तार जुड़े हो सकते हैं। एडम जैसी पारिवारिक स्थितियां भी अमेरिका में बहुतायत में हैं और लोगों के पास घातक हथियार भी मौजूद हैं। आपके पास भारी संख्या में ऑटोमेटिक और घातक हथियार होंगे तो यह सोचना गलत होगा कि इनसे कम नुकसान होगा और ये हथियार ज्यादा लोगों के पास होंगे तो लाजिमी है कि संहार और भीषण होगा।
ब्रिटेन में भी इस तरह की जन संहार की घटनाएं हुई हैं लेकिन वहां की सरकार ने राजनीतिक इच्छा शक्ति का परिचय देते हुए हैंडगन और ऑटोमेटिक हथियारों पर प्रभावी रूप से प्रतिबंध लगा दिया। हालांकि, पुलिस को आप संतुष्ट करें तो वहां छोटे हथियार और राइफल्स खरीदे जा सकते हैं।
इस त्रासदपूर्ण घटना के बाद व्हाइट हाउस के प्रेस कक्ष में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की आंखों में भी आंसू आए। उन्होंने कहा कि इस घटना से आज हमारा दिल टूट गया। हमें भविष्य में इस तरह की त्रासदियों को रोकने के लिए अर्थपूर्ण कार्रवाई करने के लिए बिना किसी राजनीति के एकजुट होना चाहिए।
पिछले दो दशकों में ढीले बंदूक कानूनों के कारण अमेरिका में 100 से अधिक लोगों की मौत शिक्षण संस्थानों में हो चुकी है। चूंकि बंदूक रखने को मूलभूत अधिकार के तौर पर मान्यता मिलने एवं शस्त्र उद्योग से जुड़ी लॉबी के चलते अमेरिका में बंदूक संस्कृति पर रोक लगाने की कोई हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है।
अमेरिकी समाज में इस तरह की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। ओरेगन के शॉपिंग मॉल की या विस्कॉन्सिन के गुरुद्वारे की या एयुरोरा के फिल्म थियेटर की या फिर शिकागो की एक सड़क की घटना हो, इन सभी घटनाओं में निर्दोष लोग मारे गए हैं।
न्यूयार्क के मेयर माइकल ब्लूमबर्ग ने इस तरह की बढ़ती घटनाओं पर रोक लगाने के लिए ओबामा से एक हथियार विधेयक सीनेट में भेजने का अनुरोध किया है। जबकि चिल्ड्रेन डिफेंस फंड के प्रमुख मैरियन राइट एडलमैन ने ऐसे जनसंहारों को रोकने के लिए राजनीतिक एकजुटता पर शंका जाहिर की है।
सवाल है कि समय-समय पर अमेरिका में इस तरह की घटनाएं क्यों होती हैं? इस तरह की जघन्य अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए राजनीतिक तत्परता क्यों नहीं दिखाई जाती? निर्दोष लोगों की जान से कीमती क्या हथियार लॉबीस्टों के हित हैं ? अमेरिकी सांसदों के लिए क्या यह उचित समय नहीं है कि वे शस्त्र कानून में संशोधन करें ?
यह भी कहा जा सकता है कि ऐसी त्रासदीपूर्ण घटनाओं के लिए हथियारों की खुली छूट जिम्मेदार नहीं है बल्कि इसके लिए अमेरिका की संस्कृति बहुत हद तक जिम्मेदार है। ऐसे में देखना होगा कि आज के समय में ज्यादा आसान शस्त्र कानून में बदलाव करना है कि संस्कृति में। इसका जवाब ओबामा प्रशासन को ढूढ़ना होगा।
First Published: Sunday, December 16, 2012, 19:49