ईश्वर के नाम पर ठगी बंद करो - Zee News हिंदी

ईश्वर के नाम पर ठगी बंद करो



रामनुज सिंह

 

निर्मल बाबा पर जनता को बरगलाने, ठगने और लोगों के बीच अंधविश्वास फैलाने के आरोप लग रहे हैं। न्यूज चैनलों और अखबारों द्वारा निर्मल बाबा के पोल खोले जा रहे हैं। भक्तों को कैसे और किस प्रकार बाबा ने अपने जाल में फंसाया? कैसे अपनी संपत्ति बनाई? कैसे लोगों को ठगा? अपने भक्तों के सवालों के कितने अटपटे जवाब दिये। किसी भक्त के रिश्तेदार ने दावा किया कि बाबा द्वारा बताई गई बीमारी के उपायों से उसकी बहन की जान चली गई। मीडिया द्वारा ऐसे कई खुलासे किए गए जिससे निर्मल बाबा की निर्मल छवि धूमिल हो गई।

 

खुद को ईश्वर का दूत बताकर भोली-भाली जनता को ठगने वाले निर्मल बाबा अकेले बाबा नहीं हैं। देश भर में हर गली मोहल्लों में ऐसे बाबाओं से लोगों का रोज आमना-सामना होता है। इतना ही नहीं छोटे से लेकर बड़े मंदिरों में भगवान के दर्शन कराने के लिए भक्तों को रोज ठगा जाता है।

 

सवाल यह उठता है कि जब हर रोज जीवन को 12 राशियों में समेटकर देश की 125 करोड़ जनता को उसके भविष्य के बारे में बताकर बरगलाया जाता है तो फिर केवल निर्मल बाबा पर हायतोबा क्यों? देश की जनसंख्या 1.25 अरब है। पूंजी और प्राकृतिक संसाधनों पर चंद लोगों का एकाधिकार है। यानी कुछ प्रतिशत लोगों के पास ही देश की 80 फीसदी संपत्ति है। पूंजी (रुपया) से जीवन जीने के मूलभूत जरूरतों से लेकर सुख के साधन प्राप्त होते हैं। जिसके पास जितना अधिक रुपया होता है वो उतना ही ज्यादा बेहतर जीवन जीता है। रोटी, कपड़ा, मकान सहित हर बुनियादी जरुरत की चीजें पैसे से ही मिलती है। जब पूंजी चंद लोगों तक सीमित होगी तो अधिकांश लोगों के पास कुछ न कुछ कमी रहेगी। जाहिर है लोगों में असंतोष भी होगा। असंतोष और दुखी मन मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए मेहनत करता है पर उससे भी उसे संतुष्टि नहीं मिलती है तो फिर ईश्वर अंतिम सहारा होता है।

 

जब कोई व्यक्ति अपनी मुराद पूरी करने के लिए ईश्वर के दर पर जाता है तो वहां तथाकथित भगवान के दूत से मुलाकात होती है और यहीं से भगवान के भक्तों को ठगने का सिलसिला जारी होता है। ये भगवान के दूत भक्तों की परेशानियों का नाजायज फायदा उठाते हैं, उनसे भारी मात्रा में धन और रुपए भगवान को चढ़ाने को कहते हैं ताकि रूठे हुए भगवान को मनाया जा सके, उसके भाग्य का उदय हो सके। लेकिन आज तक कभी कोई भगवान ने किसी भक्त से चढ़ावा नहीं मांगा है।

 

कहने का तात्पर्य यह कि आज धर्म के नाम पर ठगी का धंधा जोरों पर है। जीवन के किसी न किसी मोड़ पर आपने अंधविश्वास का मजा जरूर लिया होगा और उसका नतीजा भी भुगता होगा। एक बार जीवन में अंधविश्वास को त्याग कर जीवन का मजा लेकर देखिए। दोबारा अंधविश्वास की गर्त में आप नहीं गिरेंगे। मेहनत तो अंधविश्वास को आत्मसात कर सफलता पाने में भी करनी होगी लेकिन इसमें सफलता की गारंटी नहीं है, लेकिन अगर आप जीवन में सौ फीसदी सफल होना चाहते हैं तो अंधविश्वास को त्याग कर लक्ष्य की दिशा में मेहनत करें। मुझे लगता है यह ज्यादा टिकाऊ और संतोषप्रद होगा। सरकार को भी इस ओर ठोस कदम उठाने चाहिए। सभी धर्मों के ठेकेदारों (बाबाओं) की संपत्ति को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित कर देना चाहिए ताकि इस ठगी प्रथा का अंत हो सके।

First Published: Tuesday, May 8, 2012, 16:21

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