गुरुद्वारा गोलीबारी : निशाने पर सिख समुदाय

गुरुद्वारा गोलीबारी : निशाने पर सिख समुदाय

गुरुद्वारा गोलीबारी : निशाने पर सिख समुदाय आलोक कुमार राव

अमेरिका में विस्कांसिन के गुरुद्वारे में हुई गोलीबारी की घटना त्रासदपूर्ण है और यह कहना कहीं से भी उचित नहीं है कि ओक क्रीक में सिखों पर हमला इसलिए हुआ क्योंकि हमलावर ने शायद उन्हें मुस्लिम समझा।

हमलावर की ओर से की गई इस क्रूर कार्रवाई को एक गलती मानकर नहीं चला जाना चाहिए क्योंकि एक मुस्लिम के खिलाफ हिंसा उतना ही गैरकानूनी एवं निदंनीय है जितनी कि किसी भी अन्य समुदाय पर हिंसा।

इस घटना में एक ग्रंथी सहित छह लोगों की मौत हुई। ग्रंथी का परिवार जिसमें उसकी पत्नी एवं पुत्री शामिल हैं, हाल ही में भारत से विस्कांसिन आया था।

हमलावर वेड माइकल पेज (40) श्वेत था और उसने अपने हाथ पर 9/11 के टैटू बनवाए थे। सवाल है कि पेज क्या 9/11 का बदला लेने चाहता था अथवा वह एक उन्मादी व्यक्ति था जो आवेग में आकर गुरुद्वारे में घुसा और अपनी स्वचालित पिस्टल से अंधाधुंध गोलीबारी कर छह लोगों को मौत नींद सुला दिया। संघीय जांच ब्यूरो (एफबीआई) की जांच में चाहे जो तथ्य निकलकर सामने आएं लेकिन इतना तो साफ है कि 9/11 के बाद सिख समुदाय नस्ली हिंसा, हत्या और मारपीट का लगातार शिकार होता आया है।


आंकड़ों पर गौर करें तो सामाजिक संगठन ‘सिख कॉलिशन’ सिख समुदाय के खिलाफ हिंसा, हत्या, तोड़फोड़, मारपीट और परेशान करने के करीब 700 मामलों को देख रहा है। अन्य समूह ‘रीयल सिक्खीज्म’ के पास वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले के बाद घृणा अपराध के करीब 1000 मामले लम्बित हैं।

हैरान करने वाली बात है कि विस्कांसिन गोलीबारी के बाद अमेरिकी समाचार चैनलों पर इस तरह के कार्यक्रमों की बाढ़ आ गई है जो अमेरिकी नागरिकों को सिख सम्प्रदाय और इस्लाम के बारे में जागरूक करने के साथ-साथ दोनों में अंतर बता रहे हैं।

गौर करने वाली बात है कि क्या इस जागरूकता से कोई फर्क पड़ेगा। एक व्यक्ति किसी भी जाति या मजहब को मानने वाला हो सकता है। किसी की हत्या केवल इसलिए नहीं की जा सकती है क्योंकि उसने टोपी, पगड़ी अथवा कड़ा पहना था।

इस त्रासदपूर्ण घटना के बाद अमेरिका या अन्य जगहों पर सिख समुदाय ने जिस धैर्य का परिचय दिया और लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की वह स्वागतयोग्य है।

दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश में इस तरह की घटनाएं उसकी सामाजिक संरचना में ऐसे तत्वों के सिर उठाने के संकेत दे रही हैं जो भविष्य में गैर अमेरिकी और अमेरिकी के बीच संघर्ष, संदेह और हिंसा का कारण बन सकते हैं।

अमेरिकी युवकों की नस्लीय हिंसा अथवा हत्या की ओर बढ़ती प्रवृत्ति को देखते हुए ओबामा प्रशासन को गम्भीरता से सोचना होगा। साथ ही उन्हें अपने शस्त्र कानून की प्रांसगिकता पर भी दोबारा से विचार करना होगा जो अमेरिकी नागरिकों को आसानी से शस्त्र एवं गोला-बारूद रखने का सुविधा देता है।

देश में सिख नागरिकों पर बढ़ते हमले को देखते हुए 90 से अधिक कांग्रेस सदस्यों ने पिछले मार्च में संघीय जांच ब्यूरो (एफबीआई) को पत्र लिखा। सदस्यों ने एफबीआई से सिख समुदाय पर होने वाले हमलों को एक अलग श्रेणी में दर्ज करने और उनकी जांच करने के लिए कहा। जबकि सिख समुदाय के नेता चाहते हैं कि 9/11 के बाद इस समुदाय की जो क्षति हुई है उसका आकलन सरकारी एजेंसियां करें।

अमेरिका में नवंबर में राष्ट्रपति पद के चुनाव होने जा रहे हैं और इसके लिए चुनाव प्रचार जोरों पर है। ऐसे में ओबामा के लिए यह जरूरी है कि वह इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए तत्काल हस्तक्षेप करें। अमेरिका के कई राज्यों में गैर अमेरिकी मतदाताओं की संख्या भी अच्छी-खासी है जो चुनाव को प्रभावित कर सकती है।

हमलों की वजह से गैर अमेरिकी समाज में बढ़ती असुरक्षा की भावना चुनावी माहौल में व्यस्त ओबामा के लिए नए समीकरण बना सकती है जिसे साधना उनके लिए आसान नहीं होगा। ओबामा इस घटना की निंदा करने के साथ-साथ अमेरिकी ध्वजों को आधा झुकाए रखने का आदेश देकर भारत एवं सिख समुदाय से अपने लगाव एवं अपनी एकजुटता का परिचय दे चुके हैं लेकिन यही काफी नहीं है जिन्होंने इस घटना में अपने को खोया है, उन्हें न्याय मिलना चाहिए और उनमें सुरक्षा की भावना पैदा होनी चाहिए।





First Published: Monday, August 13, 2012, 17:12

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