Last Updated: Sunday, October 21, 2012, 12:38
आलोक कुमार रावभारत-चीन के बीच 1962 में हुए युद्ध को आज 50 साल हो गए । इस युद्ध की 50वीं बरसी पर सीमा की सुरक्षा में शहीद हुए जवानों को देश याद कर रहा है। भारत के लिए 62 का युद्ध आज भी एक सबक की तरह है कि तैयारी न होने पर युद्ध के समय कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
उस समय के ‘भारत-चीनी भाई-भाई’ के नारे के बीच ऐसा क्या हुआ कि चीनी सैनिकों ने 20 अक्टूबर 1962 को पौ फटने से पहले चूसुल के रेजांग ला और तवांग में धावा बोल दिया और इस अप्रत्याशित हमले से निपटने के लिए भारतीय सेना कितनी तैयार थी, यह हम सभी को पता है।
युद्ध में भारतीय सेना को नाकामी किन वजहों से मिली इसकी पड़ताल करने के बजाय हमें मौजूदा परिस्थितियों में भारत-चीन सम्बंधों को देखना ज्यादा उपयुक्त होगा। आज चीन और भारत दोनों महाशिक्त हैं। अर्थव्यवस्था के लिहाज से चीन दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था है तो भारत चौथी। दोनों देश परमाणु शक्ति सम्पन्न और पड़ोसी देश हैं। टकराव की स्थिति में दोनों एक-दूसरे को भयंकर नुकसान पहुंचाने की क्षमता रखते हैं। बावजूद इसके दोनों देश के बीच सैन्य एवं आर्थिक क्षमता की अगर तुलना करें तो चीन भारत से बहुत आगे दिखाई देता है।
चीन की विस्तारवादी नीति क्षेत्रीय स्तर पर केवल भारत के लिए चुनौती नहीं है बल्कि दक्षिण चीन सागर एवं पूर्वी चीन सागर के उन सभी देशों के लिए खतरा उत्पन्न करने वाली है जिनसे के साथ बीजिंग का अभी हितों का टकराव चल रहा है।
दक्षिण चीन सागर में द्वीपों को लेकर चीन के हित फिलीपींस, वियतनाम, मलेशिया और ताइवान और ब्रुनेई से टकरा रहे हैं। जबकि पूर्वी चीन सागर में द्वीपों पर दावे को लेकर उसका जापान के साथ तनाव बढ़ चुका है।
चीन की बढ़ती आर्थिक एवं सैन्य ताकत से दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका भी परेशान है। चीन जिस तरीके से अपनी तैयारी कर रहा है उसे देखकर पश्चिमी देश खौफजदा हैं और उसे घेरने एवं उस पर अंकुश लगाने के लिए भारत को वे एक मजबूत देश के रूप में देखते हैं।
बहरहाल, चीन को लेकर अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक समीकरण चाहें जैसे भी हों लेकिन मौजूदा समय में भारत-चीन के व्यापारिक एवं द्विपक्षीय रिश्तों में सुधार आया है और दोनों देश आपसी सम्बंध बेहतर बनाने के लिए उत्सुक हैं।
बीते एक दशक में भारत और चीन के बीच व्यापार तेजी से बढ़ा है। दोनों देश आर्थिक भागीदारी के नए सोपान चढ़ रहे हैं। नई दिल्ली और बीजिंग के बीच व्यापार जिस रफ्तार से आगे बढ़ रहा है उससे चीन शीघ्र ही भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन जाएगा जबकि भारत चीन के 10 व्यापारिक भागीदार देशों में शुमार है। उम्मीद है कि वर्ष 2015 तक दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार बढ़कर 100 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा।
करीब पांच लाख भारतीय प्रतिवर्ष चीन की यात्रा कर रहे हैं जबकि भारत आने वाले चीनी नागरिकों का आंकड़ा करीब एक लाख है। भारत की रिलायंस इंडस्ट्रीज, महिंद्रा एंड महिंद्रा, एनआईआईटी, इंफोसिस, टीसीएस और विप्रो जैसे दिग्गज कम्पनियां चीन में अपने प्रतिष्ठान खोल चुकी हैं जबकि चीन की साइनोस्टील एवं शूगैंग इंटरनेशनल कम्पनियां भारत में कारोबार कर रही हैं। दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंध एक बेहतर भविष्य का खाका खींचते हैं।
लेकिन चीन की सैन्य तैयारी और भारतीय क्षेत्र को लेकर उसकी जो रणनीति है वह चिंता में डालने वाली है। 62 के बाद से चीन के साथ भारत के सम्बंध उतार-चढ़ाव वाले रहे हैं। पाकिस्तान को परमाणु तकनीक मुहैया कराने, पाकिस्तान के कब्जे वाले क्षेत्र में उसकी संलिप्तता, अरुणाचल प्रदेश के एक बड़े भू-भाग पर उसके दावे से लेकर समय-समय पर वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के उल्लंघन और नत्थी वीजा प्रकरण से उसकी मंशा साफ जाहिर होती है।
यही नहीं, चीन ने तिब्बत और भारतीय सीमा तक आसानी से पहुंच बनाने के लिए बुनियादी सुविधाओं मसलन सड़क, रेल, बिजली और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण सभी संरचनाओं पर जिस तेजी से काम किया है, उससे साफ संकेत मिलते हैं कि भविष्य का उसका युद्ध मोर्चा कहां और कौन है।
चीन के पास दुनिया की सबसे बड़ी सेना ‘पीपुल्स लिबरेशन आर्मी’ है। अपनी इस सेना को चीन विषम युद्ध क्षमताओं से लैस करने के साथ ही वह साइबर हमले की क्षमता हासिल करने, कम एवं मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों, पनडुब्बियों और जे-20 जैसे स्टील्थ फाइटर युद्धक विमानों के विकास एवं निर्माण में लगा है। युद्ध के इन सारे विकल्पों के मौजूद होने पर चीन की मारक क्षमता में जबर्दस्त इजाफा हो जाता है। यही नहीं चीन ने चौतरफा घेरने के लिए जिस तरीके से भारत के पड़ोसी देशों नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश में अपनी पैठ बनाई है उससे भारतीय खेमे में परेशानी बढ़ी है।
ऐसा नहीं है कि चीन की इन तैयारियों पर नई दिल्ली बेखबर है। 62 जैसी स्थिति को दोहराने अथवा युद्ध छेड़े जाने पर किस तरीके से निपटना है, इसकी तैयारी भारत ने भी बखूबी की है। पूर्वोत्तर में चीन को माकूल जवाब देने के लिए भारत ने सैन्य गतिविधियों के लिहाज से महत्वपूर्ण सड़कों, सुरंगों और नए वायु ठिकानों का निर्माण किया है। लद्दाख में नए टैंक ब्रिगेड की तैनाती की गई है। इसके अलावा सुखना, तेजपुर और दीमापुर स्थित सैन्य कोर को अरुणाचल में सक्रिय किया जा रहा है। यही नहीं, चीन और पाकिस्तान के साथ दो मोर्चे पर लड़ाई शुरू होने की दशा में कारगिल में विशेष वायु ठिकाना बनाया गया है। तेजपुर में नए वायु ठिकानों पर सुखोई के स्क्वाड्रन तैनात किए गए हैं और जोरहट, गुवाहाटी, मोहनबाड़ी, बागडोगरा में अतिरिक्त वायु ठिकाने बनाए जा रहे हैं। आर-पार की लड़ाई के मौके पर भारत की पहली अंतर-महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल अग्नि-5 चीन के किसी भी शहर को अपनी जद में ले सकती है। अरुणाचल में रक्षा तैयारी को और पुख्ता करने के लिए करीब 40 हजार सैनिकों के एक विशेष बल को भी तैयार किया जा रहा है।
चीन ने 50 साल पहले हमारे साथ दगा की है और हमें इसके लिए हमेशा तैयार रहना होगा कि वह अपनी घिनौनी हरकत दोबारा दोहरा सकता है। उसके साथ व्यापार और द्विपक्षीय संबंध बढ़ाने में कोई बुराई नहीं है लेकिन उसके साथ बहुत ही व्यवहारवादी रवैया अख्तियार करना होगा क्योंकि उसने अपनी मंशा थोड़े समय के लिए भले ही स्थगित कर दी हो लेकिन हमें यह याद रखना चाहिए कि पाकिस्तान के बाद वह अकेला देश है जिसकी हमारी जमीन पर गंदी नजर है।
First Published: Saturday, October 20, 2012, 14:05