'ट्रेन जर्नी' एक बड़ी जंग - Zee News हिंदी

'ट्रेन जर्नी' एक बड़ी जंग

'ट्रेन जर्नी' एक बड़ी जंग

रामानुज सिंह

 

दुनिया में रेलवे का सबसे बड़ा नेटवर्क भारत में है। हर दिन लाखों लोग देश भर में एक जगह से दूसरे जगह रेलगाड़ी से सफर करते हैं। इस रेल तंत्र को चलाने के लिए करीब 10 लाख कर्मचारी दिन-रात काम करते हैं। इसे सुचारु तरीके से चलाने के लिए रेल मंत्रालय है जो रेल मंत्री के अधीन होता है। इतना ही नहीं इसके लिए अलग से हर साल रेल बजट पेश किया जाता है। संसद में रेल मंत्री बजट पेश करते समय हर साल नई रेलगाड़ी चलाने की घोषणा करते हैं, ट्रेन से सफर करने वाले यात्रियों के लिए ढेर सारी सुविधाओं का ऐलान करते हैं।

 

लेकिन रेल मंत्री द्वारा की गई घोषणाओं के बावजूद रेल यात्रियों को यात्रा शुरू करने से लेकर गणतव्य पर पहुंचने तक एक से बढ़कर एक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। हम उन समस्याओं की ओर सरकार का ध्यान आकृष्ट करना चाहते हैं जिन समस्याओं और कठिनार्इओं से आम आदमी रोज जूझता है। कहने का मतलब ट्रेन जर्नी एक बड़ी जंग साबित हो रही है।

 

भारत विविधताओं का देश है। यहां कहीं खनिज संपदा का भंडार है, कहीं कृषि के लिए समतल मैदान है, कहीं बंजर भूमि है, कहीं पर्वत तो कहीं पठार है। इतना ही नहीं इस विशाल देश में मौसम भी हर जगह एक जैसा नहीं रहता है। कहीं ज्यादा गर्मी, कहीं ज्यादा बरसात, तो कहीं सर्दी। जिसका असर सीधे लोगों के जीवन यापन पर पड़ता है। हर मौसम में किसी न किसी इलाके में लोगों को रोजगार में दिक्कत होती है। रोजगार की तलाश में भटक रहे लोगों का पलायन लाजिमी है। पलायन कर रहे लोग सबसे ज्यादा रेलगाड़ी का ही इस्तेमाल करते हैं। जहां भी लोगों को रोजगार का उचित अवसर मिलता है वहीं को दौर लगाते हैं। बहुत लोग तो वहीं आशियाना बनाकर रहने लगते हैं और वहीं के होकर रह जाते हैं। परन्तु अपनी मिट्टी और सगे संबंधियों का मोह नहीं छोड़ पाते हैं। अक्सर छुट्टियों में आना-जाना लगा रहता है। इन अवसरों पर अधिकांश लोग रेलगाड़ी से ही यात्रा करते हैं।

 

देश की आजादी के 64 साल होने के बावजूद भारतीय रेल व्यवस्था में सुधार न के बराबर है। जब भी यात्रा के बारे सोचा जाता है रूह कांप जाता है। टिकट कटाने से लेकर गाड़ी में चढ़ने, और गंतव्य स्टेशन पहुंचने तक अनेक मुसीबतें सामने आती हैं। इसलिए ट्रेन जर्नी को जंग कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए।

 

टिकट की समस्या

जब भी मन में रेलयात्रा का विचार आता है। सबसे पहले टिकट प्राप्त करने को लेकर दिक्कतें सामने आती है। अगर तीन महीने पहले टिकट बुक नहीं कराया गया तो सफर करना मुश्किल ही माना जाए। फिर तत्काल का ही विकल्प बचता है। जो आम लोगों के लिए मुश्किल ही नहीं नामुमकीन है। तत्काल आरक्षित टिकट यात्रा करने के दिन से एक दिन पहले मिलता है। टिकट बुकिंग सेंटर पर सुबह आठ बजे से मिलने वाली टिकट के लिए लोग रात में ही आकर लाइनों में खड़े हो जाते हैं। सुबह आठ बजे से पहले बुकिंग केंद्रों के अधिकारियों द्वारा भीड़-भाड़ वाले केंद्रों पर लाइन में लगे टिकट लेने वाले लोगों को एक पर्ची दी जाती है ताकि अफरातफरी न हो। लोग यह मानकर चलते हैं कि टिकट हमें मिल जाएगा। लेकिन टिकट काउंटर पर पहुंचने पर पहले नंबर से तीन नंबर तक पहुंचते-पहुंचते वेटिंग बताना शुरू कर देता है। इस दरम्यान जो खेल होता है उसे आम लोग समझ नहीं पाते। होता यह है लाइन में लगे जिन लोगों को पर्ची दी जाती है अधिकांश लोग टिकट के दलाल होते हैं जो एक साथ कई टिकट लेते हैं। जिसका टिकट देने वाले सरकारी कर्मचारियों से सांठ-गांठ होती है। जिससे आम लोगों को टिकट से महरूम होना पड़ता है। जो लोग आरक्षित टिकट नहीं खरीद पाते हैं या खरीदने में समर्थ नहीं होते हैं उन्हें अनारक्षित टिकट लेकर जेनरल डिब्बे में सफर करना पड़ता है। एसी में भी टिकट खरीदने के लिए इन्हीं दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।

 

ट्रेन में चढ़ने में परेशानी

टिकट लेने के बाद ट्रेन पर चढ़ना भी एक जंग है। छुट्टियों और त्योहारों के दिनों सफर करने वालों की तादाद ज्यादा होती है जिससे प्लेटफॉर्म पर काफी भीड़ हो जाती है। साधारण डिब्बे कम होने और यात्री बहुत ज्यादा होने के चलते जनरल डिब्बों में पहले हम पहले हम की नौबत आती है। जिसमें कई लोगों को गंभीर चोटें आ जाती हैं। इस दौरान सुरक्षा में लगे रेल पुलिसकर्मी भी यात्री को लूटने का काम करते हैं। रुपए लेकर यात्री को सीटें मुहैया कराते हैं। आरपीएफ द्वारा इस तरह का लूट रोज होता है पर रेल प्रशासन आंख मूंदे रहती है। गरीब जनता की पसीने की कमाई इस तरह लूटा जाता है।

 

ट्रेन में हिजरों का आतंक

यात्रा के दौरान किसी स्टेशन पर हिजरों की टोली यात्री डिब्बों में चढ़ जाती है। प्रत्येक यात्री से जबरदस्ती रुपए वसूलता है। रुपए नहीं देने पर यात्रियों की पिटाई भी की जाती है। हिजरों का आतंक गरीब यात्रियों के लिए कहर के समान है जो बदस्तूर जारी है।

 

टीटीई द्वारा सीटों की बिक्री

आरक्षित श्रेणी कोच में वेटिंग टिकट लेकर यात्रा करने वाले यात्रियों की भी भरमार होती है। कई यात्री जिनके बर्थ कंफर्म होते हैं किसी कारणवश यात्रा नहीं करते हैं। उन सीटों को टीटीई एक्स्ट्रा रुपए लेकर यात्री को सीट मुहैया कराते हैं। जबकि नियम है कि वेटिंग लिस्ट में क्रम के अनुसार सीट मुहैया कराना चाहिए।

 

सुरक्षा की गारंटी नहीं

यात्रा के दौरान ट्रेन में लूटपाट, चोरी और छीना-झपटी की घटना बराबर होती रहती है। महिलाओं और लड़कियों के साथ छेड़छाड़ की खबरें अक्सर सुनने को मिलती हैं। जहरखुरानी के मामले भी सामने आते रहते हैं। इसके अलावा ट्रेन हादसे का शिकार भी होती रहती है। इन हादसों से प्रति वर्ष सैकड़ों लोगों की जानें चली जाती है। यानी पूरी यात्रा के दौरान हमेशा असुरक्षा का भय बना रहता है।

 

आम लोगों की खास सवारी रेलगाड़ी है जिसके हालात में सुधार नहीं किए गए तो आने वाले समय में लोगों का सफर करना और मुश्किल हो जाएगा।

First Published: Wednesday, May 23, 2012, 13:11

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