Last Updated: Monday, October 10, 2011, 10:58
प्रवीण कुमारये दौलत भी ले लो..., होश वालों को खबर क्या..., हजारों ख्वाहिशें ऐसी..., हाथ छूटे भी तो...जैसे अनगिनत सुरीली गजलों को आवाज देने वाले और 'गजल सम्राट' कहे जाने वाले जगजीत सिंह अब इस दुनिया में नहीं रहे। सोमवार सुबह 8.10 बजे मुंबई में जगजीत सिंह का देहांत हो गया। उन्हें ब्रेन हैमरेज होने के कारण बीते 23 सितम्बर को मुंबई के लीलावती अस्पताल में भर्ती कराया गया था। ब्रेन हैमरेज होने के बाद जगजीत सिंह की सर्जरी की गई। इसके बाद से ही उनकी हालत गंभीर बनी हुई थी। जिस दिन उन्हें ब्रेन हैमरेज हुआ, उस दिन भी वे सुप्रसिद्ध गजल गायक गुलाम अली के साथ एक शो की तैयारी कर रहे थे। अपने जीवन के अंतिम समय तक गायकी को नया अंदाज देने के लिए जगजीत सिंह को हमेशा याद किया जाता रहेगा। जगजीत के ही गाये इन पंक्तियों से उन्हें हम सलाम करते हैं...
इन्तिहा आज इश्क की कर दी,
आप के नाम जिंदगी कर दी,
था अंधेरा गरीब खाने में,
आप ने आ के रोशनी कर दी,
देने वाले ने उन को हुस्न दिया,
और अता मुझ को आशिकी कर दी,
तुम ने जुल्फों को रुख पे बिखरा कर,
शाम रंगीन और भी कर दी।
8 फरवरी 1941 को राजस्थान के गंगानगर में जन्में जगजीत सिंह को 'गजल किंग' यानी गजल की दुनिया का बादशाह भी कहा जाता है। खालिस उर्दू जानने वालों की मिल्कियत समझी जाने वाली और शायरों की महफिलों में वाह-वाह की दाद पर इतराती गजलों को आम आदमी तक पहुंचाने का श्रेय अगर किसी को सबसे पहले दिया जाना हो तो एक ही नाम जुबां पर आता है और वह नाम है जगजीत सिंह का।
मूल रूप से पंजाब के रोपड़ के रहने वाले जगजीत की शुरूआती शिक्षा गंगानगर (राजस्थान) के खालसा स्कूल में हुई और बाद की पढ़ाई के लिए जालंधर आ गए। डीएवी कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली और इसके बाद कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय से इतिहास में एमए भी किया। कहते हैं बहुतों की तरह जगजीत जी का पहला प्यार भी परवान नहीं चढ़ सका। अपने उन दिनों की याद करते हुए एक साक्षात्कार में कहा था कि उन्होंने भी एक लड़की को चाहा था।
बचपन मे अपने पिता से संगीत विरासत में मिली थी। गंगानगर मे ही पंडित छगन लाल शर्मा के सानिध्य में दो साल तक शास्त्रीय संगीत सीखी। आगे जाकर सैनिया घराने के उस्ताद जमाल खान साहब से ख्याल, ठुमरी और ध्रुपद की बारीकियां सीखीं। पिता की ख्वाहिश थी कि उनका बेटा आईएएस बने, लेकिन जगजीत पर गायकी की धुन सवार थी। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान संगीत मे उनकी दिलचस्पी देखकर कुलपति प्रो. सूरजभान ने जगजीत सिंह को काफी उत्साहित किया। उनके ही कहने पर वे 1965 में मुंबई आ गए। संघर्ष के दौरान 1967 में जगजीत जी की मुलाकात चित्रा जी से हुई। दो साल बाद दोनों 1969 में परिणय सूत्र में बंध गए।
जगजीत सिंह ने 1999 में फिल्मो ‘सरफरोश’ के गीत ‘होश वालों को खबर क्या...’ को आवाज दी थी. तब मशहूर गायिका लता मंगेशकर को कहना पड़ा था कि जगजीत ने गजल गायकी में हर चीज बदल ली। बोल, सुर, ताल, आवाज...सब कुछ. उन्होंने गजल गाकर यह भी साबित किया कि गायिकी में दौलत-शोहरत कमाने के लिए बॉलीवुड से भी बाहर भी एक दुनिया है। लता मंगेशकर ने फिल्मों में गाने को लेकर एक बार मजाक में कहा था कि फिल्म में उन्हें कोई चांस ही नहीं देता और इसीलिए उन्होंने अपना अलग रास्ता चुन लिया। लेकिन गजल गाकर वह इतने लोकप्रिय हो गए कि उन्हें फिल्मों में गाने की जरूरत ही नहीं रह गई। गजल गायकी को नई बुलंदियों तक पहुंचाने में जगजीत सिंह का अहम योगदान रहा।
गजल गायकी जैसे सौम्य और शिष्ट पेशे में मशहूर जगजीत जी को घुड़दौड़ का जबरदस्त शौक था। कन्सर्ट के बाद जगजीत को कहीं सुकून मिलता था तो वो था मुंबई महालक्ष्मी इलाके का रेसकोर्स। 1965 में मुंबई मे जगजीत ने जहां डेरा डाला था उस शेर-ए-पंजाब होटल में कुछ ऐसे लोग थे जिन्हें घोड़ा दौड़ाने का शौक था। संगत ने असर दिखाया और उन्हें ऐसा चस्का लगा कि वह घुड़दौड़ शौकीन हो गए। इसी तरह लॉस वेगास के केसिनो भी उन्हें खूब भाते थे।
जगजीत आज हमसे विदा हो गए हैं। हम उदास हैं, ये जहां उदास है, हर शय उदास है, हर शख्स उदास है जिसने जगजीत के गजलों को सुना ही नहीं, बल्कि जीया है, वो गजल जिसे सुनकर कभी आंखें भर आयीं तो कभी होठों पर बरबस मुस्कान बिखेर गईं। उदासी के इस आलम में हम फिराक गोरखपुरी की उस गजल से जगजीत को श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहेंगे जिसे खुद जगजीत ने आवाज दी थी...
गजल का साज उठाओ बड़ी उदास है रात,
नवा-ए-मीर सुनाओ बड़ी उदास है रात।
कहें न तुमसे तो फिर और किससे जाके कहें,
सियाह जुल्फ के सायों बड़ी उदास है रात।
दिये रहो यूं ही कुछ देर और हाथ में हाथ,
अभी ना पास से जाओ बड़ी उदास है रात।
सुना है पहले भी ऐसे में बुझ गये हैं चिराग,
दिलों की खैर मनाओ बड़ी उदास है रात।
First Published: Tuesday, October 11, 2011, 13:55