Last Updated: Thursday, March 21, 2013, 18:08
प्रवीण कुमारभारतीय राजनीति में अगर किसी एक शख्स को लेकर इस समय सबसे अधिक चर्चा हो रही है तो वो हैं गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी। देश की मुख्य विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी नरेंद्र मोदी को देश के अगले प्रधानमंत्री के रूप में पेश करने जा रही है। यह लगभग तय हो चुका है। यह मैं दावे के साथ इसलिए कह रहा हूं कि नरेंद्र मोदी के नाम पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी अपनी मुहर लगा दी है। संघ तो मोदी की खातिर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी तक को नहीं छोड़ रहा है।
नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का सबसे काबिल उम्मीदवार बताने के बाद अब संघ ने कहा है कि 2002 में गुजरात दंगों के दौरान मोदी ने राजधर्म निभाया था। संघ के मुखपत्र आर्गेनाइजर के एक ताजा लेख में इसका उल्लेख किया गया है। 2002 में गुजरात दंगों के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि नरेन्द्र मोदी को राजधर्म निभाना चाहिए। उन्होंने मोदी को इस संबंध में पत्र भी लिखा था लेकिन आरएसएस का कहना है कि मोदी ने गुजरात दंगों के दौरान राजधर्म निभाया था। भाजपा के तथाकथित पीएम इन वेटिंग टाइप के नेता मोदी को भले ही न पचा पाएं, अनपच ही सही मोदी को स्वीकारना तो पड़ेगा ही। ना स्वीकारने से भला क्या हासिल होगा। भाजपा के तथाकथित नेताओं को सोचना चाहिए कि मोदी के अलावा उनके पास विकल्प भी क्या है। देश को अब कामचलाऊ नेता से काम चलाना मंजूर नहीं है। नरेंद्र मोदी का नाम 'हिन्दुस्थान' को सुहाता है। गौर कीजिएगा हमने हिन्दुस्तान नहीं लिखा है।
मैंने पिछले कुछ महीनों में अपने कई आलेखों में नरेंद्र मोदी की तथ्यात्मक आलोचना की है। इन आलेखों की जो जन प्रतिक्रियाएं या कहिए जन भावनाएं उभरकर सामने आईं, मुझे यह सोचने को मजबूर कर दिया कि दाग यदि अच्छे हैं तो मोदी खराब कैसे हो सकते हैं। कई दिनों से मेरे मन में टेलीविजन पर दिखाया जाने वाला विज्ञापन, 'जो दाग आपमें आत्मविश्वास भर दे, वो दाग अच्छे हैं' को लेकर एक वैचारिक उथल-पुथल चल रही थी। आप सोच रहे होंगे कि चांद और चेहरे पर दाग की बात का भला इस राजनीति से क्या वास्ता? वास्ता है और बहुत गहरा वास्ता है। जिस राजनीतिक परिवेश में हम जी रहे हैं उस परिवेश में दागों का इतिहास अब प्रासंगिक नहीं रहा। राजनीति और राजनेताओं पर दागों का वर्तमान स्वर्णिम है। राजनेताओं के चरित्र पर दाग आज एक संस्कृति का रूप ले चुका है। लिहाजा दागों का भविष्य कमाल का होगा यह तय सा लगता है। ये दागों का ही तो जलवा है कि सड़क से लेकर संसद तक जो जितना बड़ा दागी वो उतना ही बड़ा सेलेब्रिटी है, या फिर राजनेता है।
मेरी रूचि भाजपा में नहीं है और न ही मेरी रूचि सोनिया गांधी और राहुल गांधी में है। मेरी रूचि कांग्रेस पार्टी में है और नरेंद्र मोदी में भी है। इसकी भी वजह है। कांग्रेस पार्टी एक ऐसा वटवृक्ष है जिसकी छाया पाकर सोनिया और राहुल देश को नचा रहे हैं। इसमें इनका अपना कोई वजूद नहीं है। कहने का मतलब यह कि कांग्रेस से सोनिया और राहुल का अस्तित्व है ना कि सोनिया और राहुल से कांग्रेस का अस्तित्व।
ठीक इसके विपरीत नरेंद्र मोदी एक ऐसा व्यक्तित्व है जिसके आभामंडल के सहारे भाजपा अपनी नैया पार लगाना चाहती है। कहने का तात्पर्य यह कि मोदी गुजरात में बहुत सुखी है और ठसक के साथ सरकार चला रहे हैं। मोदी की जरूरत भाजपा को है, मोदी की जरूरत संघ परिवार को है ना कि मोदी को भाजपा और संघ की जरूरत है। इसलिए मेरी रूचि जितनी कांग्रेस में है उतनी ही नरेंद्र मोदी में है। हालांकि मैं व्यक्तिगत रूप से न तो सोनिया गांधी को जानता हूं, ना ही राहुल गांधी को और ना ही नरेंद्र मोदी को। लेकिन कहते हैं न कि जिस व्यक्ति से आप नहीं मिले हों और आपकी उसमें रूचि हो तो बिना मिले जितना आप उसके बारे में जान पाएंगे उतना मिलकर नहीं जान पाएंगे। कुछ ऐसा ही मैं भी सोचता हूं।
मुद्दे की बात करते हैं। मुद्दा है मोदी को देश का प्रधानमंत्री बनाने का। मोदी कट्टर हिंदुत्ववादी छवि के नेता हैं। मोदी पर 2002 में गोधरा कांड के बाद गुजरात में भड़के दंगे को और भड़काने का आरोप है। बावजूद इसके नरेंद्र मोदी की गुजरात की सत्ता पर कोई आंच नहीं आ रही। इसलिए कि मोदी जनता की पसंद हैं। मोदी कट्टर हैं यह उनके माथे पर तो लिखा नहीं है। उनके विरोधी ऐसा मानते हैं। विरोधी तो बहुत कुछ कहते हैं तो वह कोई पैमाना तो नहीं बन सकता है। हां, मैं मानता हूं कि मोदी हिन्दुत्व की बात करते हैं, लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि मोदी ने गुजरात में मस्जिदों को तुड़वा दिया हो। उन्हें नमाज पढ़ने नहीं दिया जा रहा हो। फिर काहे की कट्टरता। हिंदुत्व में कट्टरता के लिए कोई जगह नहीं है। मेरी राय में एकमात्र गुजरात दंगों को आधार बनाकर आप नरेंद्र मोदी को देश का प्रधानमंत्री बनने से नहीं रोक सकते।
आज देश का हर शख्स एक बेहतर जिंदगी चाहता है। मैंने गुजरात को नजदीक से देखा नहीं है, लेकिन दुनिया कह रही है कि मोदी ने गुजरात को विकास का मॉडल बना दिया है। सात समंदर पार तक मोदी का गुजरात और गुजरात का विकास मॉडल की धूम मची है। अगर इतना शोर है तो जाहिर सी बात है, मोदी के गुजरात में जरूर कुछ खास बात है। देश ने अटल बिहारी वाजपेयी को मौका दिया, तो एक बार नरेंद्र मोदी को मौका देने में क्या दिक्कत हो सकती है। अगर मोदी पर लगा दाग गुजरात के लिए अच्छा हो सकता है तो आशा करनी चाहिए कि वो दाग देश के लिए भी अच्छा हो सकता है। मैं नरेंद्र मोदी की कोई वकालत नहीं कर रहा हूं। मेरा कहना बस इतना है कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने से देश का हर राज्य विकास के मामले में गुजरात जैसा हो जाए तो फिर और क्या चाहिए। कभी-कभी देश को इन विज्ञापनों के बोल को भी परखना चाहिए।
ये बड़ी आम सी बात है कि आपने कोई गलत काम किया और इस बात के लिए आपका अंतरमन कचोटता है तो उस गलत काम को लेकर बेहद सतर्क रहेंगे कि कहीं दोबारा से ये दाग न लग जाए। कहने का मतलब दाग तो ठीक है, लेकिन उस दाग को छुड़ाने में कोई दूसरा दाग लगा बैठें वो गलत है। अगर नरेंद्र मोदी पर गुजरात दंगों का दाग सूबे को विकास के रूप में वैश्विक मानचित्र पर बिठाता है तो निश्चित रूप से ये दाग अच्छे हैं और दाग अच्छे हैं तो फिर नरेंद्र मोदी बुरे कैसे हो सकते हैं। एक बार देश को नरेंद्र मोदी को मौका देना चाहिए ताकि दाग अच्छे हैं या बुरे इसकी भी प्रमाणिकता सिद्ध हो जाए।
First Published: Wednesday, April 18, 2012, 08:39