Last Updated: Saturday, June 23, 2012, 14:36
प्रवीण कुमारभाजपा का मिशन-2014 लड़खड़ाता दिख रहा है। वजह है पार्टी में अंतरकलह और नीतिगत अंतरद्वंद्व की स्थिति। मुंबई में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से उठा तूफान थमने का नाम नहीं ले रहा है। अंतरकलह और अंतरद्वंद्व दोनों ही स्थितियां इसी मुंबई अधिवेशन से जिन्न बनकर निकली है और पार्टी हाईकमान को डरा रही है। पहले बात करते हैं अंतरकलह की। मुंबई अधिवेशन में नरेंद्र मोदी की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए जिस तरह से पार्टी के एक कर्तव्यनिष्ठ नेता व कार्यकर्ता संजय जोशी को बलि का बकरा बनाया गया यह पार्टी के एक धड़े को नहीं पचा। यह वही धड़ा है जो हमेशा से नरेंद्र मोदी की खिलाफत करता आया है। यह धड़ा है लालकृष्ण आडवाणी एंड कंपनी।
अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में उप प्रधानमंत्री रहे लालकृष्ण आडवाणी (पीएम इन वेटिंग) नहीं चाहते कि उनके रहते भाजपा में प्रधानमंत्री का कोई और दावेदार हो। इसमें कोई दो राय नहीं कि आडवाणी भाजपा ही नहीं देश के गिने चुने बड़े नेताओं में शुमार किए जाते हैं, वैचारिक रूप से काफी सबल भी हैं, लेकिन देश को लेकर उनकी सोच काफी साफ नहीं है। सिर्फ प्रधानमंत्री बनने के लिए दावेदारी जताना अलग बात है और देश को नई दिशा देने के लिए प्रधानमंत्री बनना अलग बात है। जहां तक मैं समझता हूं, आडवाणी में अब देश को एक दिशा देने का कोई एजेंडा नहीं है। वह सिर्फ पीएम इन वेटिंग का जो दाग उनपर लगा हुआ है उसे मिटाने भर के लिए प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं। देश आडवाणी की मंशा को अच्छी तरह से समझ चुका है और उनकी दावेदारी में कोई रुचि नहीं ले रहा है। भाजपा हाईकमान और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देश की जनभावनाओं को भांपते हुए नरेंद्र मोदी को भावी प्रधानमंत्री के रूप में पेश करने की हिम्मत जुटा रहा है।
नरेंद्र मोदी का व्यक्तित्व निश्चित रूप से एक तानाशाह जैसा है। यह भय पार्टी हाईकमान को भी है और संघ परिवार को भी है। पार्टी और संघ दोनों में दो धड़े सक्रिय हैं। एक धड़ा मोदी की हिमायत कर रहा है तो एक धड़ा मोदी की खिलाफत। मालूम हो कि संजय जोशी संघ के कार्यकर्ता पहले हैं, पार्टी के नेता बाद में। भाजपा में जोशी का वजूद संघ परिवार की वजह से है। जाहिर है संघ परिवार में जोशी के समर्थक यह कतई नहीं चाहेंगे कि जोशी को बलि का बकरा बनाने वाला शख्स भाजपा में पीएम का भावी उम्मीदवार हो। इस बात को लेकर संघ के मुखपत्र पांचजन्य और आर्गेनाइजर में परस्पर विरोधी लेख छपे। मीडिया ने चटखारे लेकर इस तरह की खबरों को खूब प्रश्रय दिया कि भाजपा में अंतरकलह चरम पर है। पार्टी में अंतरकलह है इससे कोई इनकार नहीं कर सकता, लेकिन जब यही अंतरकलह पार्टी के अस्तित्व के लिए संकट पैदा करने लगे तो मिशन-2014 को लेकर पार्टी हाईकमान का चिंतित होना लाजिमी है।
अब बात करते हैं भाजपा के नीतिगत अंतर्द्वंद्व की। मिशन-2014 को लेकर पार्टी में अंतर्द्वंद्व साफ दिख रहा है। पार्टी हाईकमान को यह समझ नहीं आ रहा कि वह कट्टरपंथ की राह अपनाए या फिर उदारपंथ की। मेरी राय में पार्टी को न तो कट्टपंथ के राह पर आगे बढ़ना चाहिए और न ही उदारपंथ की राह पर। एक तीसरा पंथ जिसे हिंदू पंथ का नाम दिया जा सकता है, को अपनाने में कोई हर्जा नहीं है। इसकी तरफदारी सरसंघचालक मोहन भागवत कर चुके हैं। उनके कहने का आशय यह था कि देश का प्रधानमंत्री अगर कोई हिंदु छवि वाला नेता हो तो इसमें गलत क्या है। अगर वैचारिक प्रतिबद्धता से थोड़ा ऊपर उठकर सोचा जाए तो मोहन भागवत की बात को नकारा नहीं जा सकता। अगर आप नरेंद्र मोदी को हिंदु छवि का नेता मानते हैं तो ये देखना ज्यादा मुनासिब होगा कि क्या मोदी राज में मुसलमानों की तरक्की रूक गई, उनका जीने का सहारा छीन लिया गया या मुसलमान गुजरात से पलायन कर गए। अगर इन सवालों का जवाब नहीं में आता है तो फिर देश का प्रधानमंत्री हिंदुत्ववादी नेता हो या कट्टरपंथी छवि का हो, क्या फर्क पड़ता है।
बहरहाल, भाजपा हाईकमान को मिशन-2014 के लिए पार्टी में कड़े फैसले लेने होंगे। अंतरकलह और नीतिगत अंतर्द्वंद्व से पार्टी को उबरना होगा। कुछ पाने के लिए पार्टी को कुछ खोने के लिए भी तैयार रहना होगा। अगर पार्टी नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में पेश करने का मन बना रही है तो इसको लेकर ऊहापोह की स्थिति खत्म होनी चाहिए। इसी ऊहापोह की वजह से पार्टी की सेहत लगातार बिगड़ी है। पार्टी के नेताओं को यह मान लेना चाहिए कि अटल बिहारी वाजपेयी के बाद भाजपा में प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी को छोड़ दें तो कोई और नेता नहीं जो जनता के बीच अपनी दावेदारी को मजबूती से रख सके। एक अहम बात और कि प्रणब मुखर्जी अगर राष्ट्रपति चुनाव जीत जाते हैं तो नरेंद्र मोदी के मुकाबले में कांग्रेस नीत यूपीए में भी कोई टक्कर का नेता नहीं है। इसलिए भाजपा को यह सुनहरा मौका नहीं गंवाना चाहिए।
First Published: Saturday, June 23, 2012, 14:36