पूर्वोत्तर की भी नब्ज नहीं पकड़ पाए राहुल-rahul gandhi

पूर्वोत्तर की भी नब्ज नहीं पकड़ पाए राहुल

पूर्वोत्तर की भी नब्ज नहीं पकड़ पाए राहुलरामानुज सिंह
राहुल गांधी के कांग्रेस पार्टी के उपाध्यक्ष बनने के बाद पहले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को करारा झटका लगा है। मेघालय को छोड़कर नागालैंड और त्रिपुरा में कांग्रेस के नए उपाध्यक्ष का सिक्का नहीं जम पाया। मेघालय में भी कांग्रेस अपने दम पर पूर्ण बहुमत प्राप्त करने में नाकाम रही। उसे बहुमत के लिए जरूरी 31 सीटों से दो सीटें कम यानी 29 सीटें ही मिल पाई।

कांग्रेस की सबसे बड़ी हार त्रिपुरा में हुई जहां कांग्रेस के स्टार प्रचारक राहुल गांधी ने कहा था कि कम्युनिस्ट को देश से उखाड़ फेंकेगे। त्रिपुरा में राहुल गांधी ने लाल परचम को उखाड़ फेंकने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी लेकिन वाम मोर्चा ने वहां ना सिर्फ लगातार पांचवीं बार सत्ता पर कब्जा किया बल्कि वोट प्रतिशत में भी इजाफा किया है। त्रिपुरा में वाम दलों को 60 में से 50 सीटें मिलीं। राहुल गांधी ने मतदाताओं को रिझाने के लिए प्रत्येक परिवार के एक-एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का वादा कर डाला था। राहुल का यह जादू मानिक सरकार की सरकार के किए जन कल्याणकारी कार्यों के आगे फेल हो गया।
पूर्वोत्तर की भी नब्ज नहीं पकड़ पाए राहुल

नागालैंड में भी कांग्रेस को झटका लगा। यहां नेफ्यूरियो की पार्टी नागा पीपुल्स फ्रंट के सामने कांग्रेस को घुटने टेकने पड़े। यहां कांग्रेस को 10 सीटों का नुकसान हुआ। 18 सीटों से घटकर कांग्रेस आठ सीटों पर आ गई। वहीं एनपीएफ को 60 में से 38 सीटों पर सफलता मिली।

इसके अलावा सात राज्यों में हुए नौ विधानसभा उपचुनावों में भी कांग्रेस को झटका लगा। पश्चिम बंगाल में तीन सीटों पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस को सिर्फ एक सीट हासिल हुईं, एक सीट तृणमूल कांग्रेस और एक वाम मोर्चा को मिली। पहले इन तीनों सीटों पर कांग्रेस का कब्जा था। पंजाब के मोगा विधानसभा सीट भी कांग्रेस के हाथ से निकल गई। बिहार की कल्याणपुर सीट जदयू के पास ही रही। यहां कांग्रेस को तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा। महाराष्ट्र की चांदगड सीट पर एनसीपी ने कब्जा बरकरार रखा। उत्तर प्रदेश में भाटपरनी सीट समाजवादी पार्टी के खाते में गई। असम की अलगपुर और मिजोरम की छलपिल सीट कांग्रेस के पास रहीं। कहने का मतलब यह कि कांग्रेस ने इन सभी राज्यों में सीटें गंवाई हैं जबकि लोकसभा चुनाव सिर पर है।

कांग्रेस ने आगामी लोकसभा चुनाव में केंद्र में सत्ता में बने रहने के लिए पार्टी का दारोमदार राहुल गांधी को सौंपा है। हाल ही में जयपुर में हुए राष्ट्रीय अधिवेशन में राहुल को उपाध्यक्ष बनाकर पार्टी में सोनिया गांधी के बाद दूसरा स्थान दिया गया। राहुल गांधी ने भी पार्टी उध्यक्ष बनने के बाद संगठन को और मजबूत करने के लिए कई नए कदम उठाने की घोषणा की। पार्टी के युवा नेताओं ने राहुल में विश्वास जताया पर जनता अभी तक इन पर भरोसा नहीं कर पाई है या यूं कहें कि राहुल गांधी जनता का भरोसा जीतने में नाकाम साबित हो रहे हैं। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण पूर्वोत्तर राज्यों में हुए चुनावों में देखने को मिला।

यह पहली बार नहीं है कि राहुल गांधी फ्लॉप साबित हुए हैं। नेहरू-गांधी परिवार की चौथी पीढ़ी के इस 42 वर्षीय नौजवान को राजनीति में आठ साल का अनुभव है। इन्होंने 2004 से राजनीतिक पारी की शुरूआत की है। अपने आठ साल के राजनीतिक करियर में देश को समझने के लिए कई इलाकों का दौरा भी किया। गरीबों के घर में खाना खाया, दलितों के घर रातें गुजारी, मजदूर के दर्द को महसूस करने के लिए मजदूरों के काम में हाथ भी बटाया। आमजन तक पहुंचने में राहुल ने कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन जनता का नब्ज टटोलने में राहुल गांधी अब तक नौसिखिए साबित हुए हैं। राहुल गांधी ने 2007 के विधानसभा चुनाव में 161 जनसभाएं और रोड शो किए। कांग्रेस को 8.5 फीसदी वोट मिले जबकि 2002 में पार्टी को 9 फीसदी वोट मिले थे। बिहार और गुजरात में हुए विधानसभा चुनाव में राहुल का जादू नहीं चला। 2012 में राहुल ने 231 पब्लिक मीटिंग की। इस बार पार्टी को 11.65 फीसदी वोट हासिल हुए। 2009 के लोकसभा चुनाव में राहुल ने 62 सभाएं की थी। यूपी में भट्टा पारसौल से अलीगढ़ तक की यात्रा में 65 किलोमीटर पैदल चले। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी पर सपा नेता अखिलेश की चाल से मात हो गए। कांग्रेस के घर की सीट रायबरेली जहां सोनिया के सामने राजनीति के दिग्गज विरोधी भी चुनाव लड़ने से कतराते हैं, उस रायबरेली के पांच विधानसभा सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों की ना सिर्फ करारी हार हुई बल्कि चार उम्मीदवारों की तो जमानत तक जब्त हो गई। तो इस सूरतेहाल में क्या राहुल गांधी कांग्रेस के तारनहार बन पाएंगे? यह सवाल देश और कांग्रेस दोनों के लिए अहम हो गया है।

हालांकि महंगाई, भ्रष्टाचार, घोटाले, महंगी होती पेट्रोल-डीजल और कानून और व्यवस्था को लेकर बढ़ते जनाक्रोश जैसे तमाम विपरीत हालातों के बीच कांग्रेस पार्टी के नेताओं को राहुल गांधी से बड़ी उम्मीदें हैं। कांग्रेस के करीब सभी नेता मानते हैं कि 2014 के लोकसभा चुनाव राहुल गांधी के नेतृत्व में लड़ने से एक बार फिर कांग्रेस केंद्र की बागडोर अपने हाथ में लेने में सफल हो जाएगी।

First Published: Saturday, March 2, 2013, 14:37

comments powered by Disqus