पेन फ्रेंड से चैट बॉक्स तक - Zee News हिंदी

पेन फ्रेंड से चैट बॉक्स तक




 

डा. हेमंत कुमार

 

पूरी दुनिया से जुड़ने और समाचार जानने के आज तो हमारे पास ढेरों साधन मौजूद हैं। अखबार, रेडियो, टेलीविजन और इण्टरनेट। इसी तरह व्यक्तिगत तौर पर एक दूसरे के समाचार जानने के भी आज कई साधन और विकल्प हमारे पास हैं। टेलिफ़ोन, मोबाइल फ़ोन, एस एम एस, नेट चैटिंग। बस मोबाइल पर उंगलियां घुमाइये और सैकड़ों,हजारों मील दूर बैठे अपने किसी भी दोस्त, रिश्तेदार से बात कर लीजिये।

 

आज हर हाथ में आपको मोबाइल फ़ोन मिल जायेगा। तकनीकी रूप से अगर आप थोड़ा एडवांस हैं और आपके घर पर एक अदद कम्प्युटर और नेट है तो आप सात समुंदर पार बैठे किसी भी दोस्त या रिश्तेदार से चैटिंग करके संपर्क कर सकते हैं। अगर आप के पास वेब कैम है तो आप एक दूसरे की शकल देखते हुये बात कर सकते हैं। नेट पर बहुत सारी वेब साइट्स आपको मुफ़्त वीडियो, आडियो चैटिंग की सुविधा दे रही हैं। यह सब संभव हो रहा है पूरे विश्व में आई इलेक्ट्रानिक और सूचना तकनीकी की क्रान्ति से।

 

लेकिन अगर आप आज से तीन दशक पीछे के दिनों को याद करें तो स्थितियां एकदम अलग थीं। न उस समय आज की तरह हर हाथ में मोबाइल थे, न इतनी संख्या में कम्प्युटर और इन्टरनेट की सुविधा। लैण्डलाइन फ़ोन भी कुछ बड़े लोगों के घरों में हुआ करते थे। तो क्या लोग उस समय एक दूसरे के सम्पर्क में नहीं थे? ऐसा नहीं है उस समय भी लोग एक दूसरे का कुशल क्षेम पूछते थे और इसका मध्यम होता था पत्र। लोग एक दूसरे से पोस्टकार्ड, अन्तर्देशीय पत्र या लिफ़ाफ़े के माध्यम से चिट्ठियां भेज कर जुड़े थे। कभी किसी इमर्जेंसी में तार या ट्रंककाल बुक करके बात करते थे। ये दोनों ही सुविधायें लोगों को डाकघर पर मिल जाती थीं। आप जरा याद करिये उन दिनों को जब लोग मुम्बई, दिल्ली जैसे बड़े शहरों में बसे अपने सगे सम्बन्धियों से बात करने के लिये डाकखाने में ट्रंककाल बुक करवाते थे और एक–एक घण्टे इंतजार के बाद उनकी बात हो पाती थी, लोग बहुत जोर जोर से चिल्लाकर बात करते थे। उसमें भी अक्सर लाइन कट जाने के कारण पूरी बात भी नहीं हो पाती थी।

 

उसी समय एक और शब्द इस्तेमाल होता था।पेन फ़्रेण्ड या पत्र मित्र। पत्र मित्र ऐसे दोस्त होते थे जो कभी एक दूसरे से मिले नहीं रहते थे। वो सिर्फ़ एक दूसरे से पत्रों के माध्यम से संपर्क में रहते थे। एक दूसरे के विचार,संस्कृति, रहन-सहन, भाषा के बारे में जानकारियां लेते थे। जिस तरह हम आज सोशल नेटवर्किंग साइट्स के द्वारा एक दूसरे से जुड़े हैं वैसे ही उस समय बहुत सी कंपनियां पत्र मित्र बनाने की सेवायें देती थीं। कुछ निःशुल्क कुछ फ़ीस लेकर। बस आपको उस कंपनी में पंजीकरण कराना होता था और वो आपकी रुचि, आयु, भाषा के अनुसार आपके पत्र मित्र बनाने में आपकी मदद करती थीं।

 

पत्र मित्रता या पेनफ़्रेण्डशिप का भी एक इतिहास है। दुनिया में सबसे पहले पेन फ़्रेण्ड शब्द का इस्तेमाल 1920 के आसपास स्वीडन में किया गया था। उस समय कुछ परिवारों के लोगों की विदेशों में बसे लोगों से पत्र मित्रता थी। इसके लगभग 13 सालों बाद 1913 के विश्व मेले में पार्कर पेन कंपनी की तरफ़ से ये सेवाएं दी गईं। इसके माध्यम से बहुत से छात्रों और बड़ों ने विदेश में रह रहे लोगों को अपना पत्र मित्र बनाया। उस समय इस योजना का उद्देश्य दुनिया के लोगों को एक दूसरे की संस्कृति, सभ्यता, रहन-सहन और भाषा से परिचित कराना था।

 

1962 में सीटेल में आयोजित विश्व मेले में इस योजना को आगे बढ़ाया गया। 1964 के विश्व मेले की थीम थी, आपसी समझ से शांति”। पार्कर पेन कंपनी ने अपने मंडप में इसी थीम को “लेखन से आपसी समझौता और शांति” शीर्षक देकर आगे बढ़ाया। इसके साथ ही इस कंपनी ने “पेन फ़्रेण्ड” नाम बदल कर “इण्टरनेशनल पेन फ़्रेण्ड” रख दिया। 1965 में पहली बार पार्कर पेन कंपनी ने अन्तर्रष्ट्रीय पत्र मित्रता कार्यक्रम के तहत ही न्यूपोर्ट आइसलैण्ड की एक महिला को ब्राजील की एक महिला से मुलाकात करवाई। दोनों के ही विचार,शौक और अभिरुचियां एक जैसी थीं।

 

उन्नीस सौ साठ और सत्तर के बीच में “पत्र मित्रता” की यह योजना धीरे-धीरे पूरी दुनिया में फ़ैल गयी। कई अन्य कंपनियों ने भी यह कार्यक्रम शुरू किया। लेकिन सबका मकसद एक ही था।लोगों को इसके माध्यम से जोड़ना।एक दूसरे की भाषा, संस्कृति, रीति-रिवाजों से परिचित कराना। 1996 में इण्टरनेट और ई-मेल के आने और बढ़ने के बावजूद आज भी बहुत सारे लोग कागज और कलम के माध्यम से ही अपने मित्रों के संपर्क में हैं। और बराबर एक दूसरे को पत्र भेजते हैं। इस योजना को बाद में भाषा शिक्षण के साथ ही साक्षरता अभियान से भी जोड़ा गया। इतना ही नहीं 1997 में ऑस्ट्रेलिया के लेखक गेराल्डी ब्रुक्स ने अपने बचपन के पत्र मित्रों के विचारों को संजोते हुये “फ़ारेन करेस्पाण्डेन्ट्स” नाम से एक किताब भी लिखी जो उस समय बहुत लोकप्रिय हुई।

 

आज सूचना तकनीक के विकास के फ़लस्वरूप यही “पत्र मित्रता”तमाम सोशल नेटवर्किंग साइट्स के चैटबाक्स के माध्यम से चल रही हैं। फ़ेसबुक, गूगल प्लस, ट्विटर, जैसी वेबसाइट्स के माध्यम से लोग एक दूसरे से जुड़ रहे हैं। एक दूसरे के विचारों, संस्कृतियों, रहन सहन से परिचित हो रहे हैं। यहां तक कि किसी गंभीर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक मुद्दों पर खुली बहसें भी यहां होती हैं। लोग अपनी व्यक्तिगत समस्याएं भी जिन्हें वो शायद लोगों से बता नहीं पाते अपने किसी चैटिंग मित्र से शेयर कर लेते हैं।

 

‘पेन फ़्रेण्ड’ से “चैट बाक्स” तक का यह सफ़र है तो बहुत सुहाना। इससे लोगों को बहुत लाभ भी हो रहे हैं। लेकिन इसके कुछ दुष्प्रभाव भी हैं। खासतौर से कम उम्र वाले किशोर-किशोरियों के लिये। उन्हें इस तरह कि मित्रता में काफ़ी सावधानी रखने की जरूरत है। अखबारों में एक दो ऐसी घटनाएं भी पढ़ने को मिलीं जिनमें चैटिंग के माध्यम से विकसित प्रेम सम्बन्धों में मिली निराशा के कारण किसी युवती को अत्महत्या करनी पड़ी। अथवा चैटिंग में अपनी व्यक्तिगत बातें शेयर करने वाली किसी लड़की को बाद में उसका चैटिंग मित्र ही ब्लैकमेल करने लगा। इसलिये इस तरह की मित्रता में किशोर किशोरियों को कुछ बातों का बहुत ध्यान रखना चाहिये।

 

-किसी भी सोशल नेटवर्किंग साइट पर अपनी व्यक्तिगत जानकारियां बहुत अधिक न दें।

-किसी भी नए मित्रता प्रस्ताव को कन्फ़र्म करने से पहले उस व्यक्ति की प्रोफ़ाइल जरूर चेक कर लें। यदि वह आपके परिचित या सर्किल के लोगों का परिचित हो तभी उसे कन्फ़र्म करें।

-यदि कोई अपरिचित आपसे चैट करना चाहे तो शालीनता पूर्वक उसे मना कर दें। इस पर भी वह न माने तो आपके पास हर साइट द्वारा दी जाने वाली रिपोर्ट स्पम/ब्लाक/अनफ़्रेण्ड जैसे विकल्प हैं ।इनका इस्तेमाल करके आप ऐसे लोगों से बच सकते हैं।

-चैट करते समय कभी भावनाओं में न बहें। इससे कभी आपको भावनात्मक आघात पहुंच सकता है। हमेशा ये ध्यान रखें कि यह पूरी तरह आभासी दुनिया है। इसमें यह भी नहीं पता कि जिससे आप चैट कर रहे हैं वह वास्तविक व्यक्ति है या कोई छद्म प्रोफ़ाइल वाला।

-चैट करते समय कभी अपनी व्यक्तिगत/परिवार की जानकारियां/फ़ोटो न दें।

-चैट में सिर्फ़ टू द प्वाइण्ट यानि सिर्फ़ काम की बात करें। यदि दूसरा व्यक्ति बेमतलब की बातें करने की कोशिश करे तो उस समय अच्छा होगा कि आप ऑफ़ लाइन हो जाएं।

-यदि कभी कोई अप्रिय स्थिति पैदा हो जाय तो उससे घबराने/डरने/संकोच करने की जगह तुरंत अपने अभिभावकों को सबकुछ सच-सच बता दें। वो आपकी सुरक्षा/सहायता का कोई न कोई रास्ता निकाल लेंगे। ऐसे समय में अभिभावकों को अंधेरे में रखना आपके लिये मंहंगा पड़ सकता है।

-अभिभावकों को भी चाहिये कि वो अपने बच्चों की चैट हिस्ट्री/फ्रेण्ड सर्किल के बारे में कभी-कभी उनसे बात कर लिया करें।

 

इन थोड़ी सी बातों पर ध्यान देकर पत्र मित्रता से चैटबाक्स तक चले आ रहे मित्रता के इस सुहाने सफ़र को आप और परिपक्वता प्रदान कर सकते हैं। साथ ही अनचाही स्थितियों (मानसिक आघात, निराशा, ब्लैकमेलिंग, अवसाद) जैसी विषम परिस्थितियों से भी बच सकते हैं।

 

(लेखक वतर्मान में शैक्षिक दूरदर्शन केंद्र,लखनऊ में लेक्चरर प्रोडक्शन पद पर कार्यरत हैं)

 

First Published: Wednesday, April 4, 2012, 12:44

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