बीजेपी अध्‍यक्ष राजनाथ सिंह के समक्ष चुनौतियां

बीजेपी अध्‍यक्ष राजनाथ सिंह के समक्ष चुनौतियां

बीजेपी अध्‍यक्ष राजनाथ सिंह के समक्ष चुनौतियांबिमल कुमार

राजनाथ सिंह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अध्यक्ष के तौर पर अपनी दूसरी पारी में भाजपा के लिए आगामी लोकसभा चुनाव में क्‍या करिश्मा कर पाएंगे, यह तो समय ही बताएगा, पर उनके समक्ष चुनौतियां कम नहीं हैं। कथित वित्‍तीय अनियमिताओं में फंसे नितिन गडकरी के शीर्ष पद से बाहर होने के बाद नेतृत्व की सहमति से अध्यक्ष बने राजनाथ सिंह के लिए आगे की राह आसान नहीं होगी। कई ऐसे अहम सवाल हैं, जिसका राजनाथ सिंह को आने वाले दिनों में सामना करना होगा। उनके सामने सबसे प्रमुख चुनौती है आगामी आम चुनाव।

मौजूदा परिप्रेक्ष्‍य में कई आंतरिक समस्याओं से जूझ रही भारतीय जनता पार्टी को नई दिशा देना उनके लिए खासा अहम होगा और इस पर राजनीतिक दिग्‍गजों की निगाहें टिकी होंगी। यह छुपा नहीं है कि नितिन गडकरी को किन हालात में अध्‍यक्ष पद की अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी। इस पूरे प्रकरण में पार्टी के अंदर का विरोध खुलकर सामने आ गया।

बीजेपी के कई दिग्‍गज नेताओं का गडकरी के विरोध में खुलकर सामने आना यह दर्शाता है कि पार्टी के भीतर सब कुछ ठीक नहीं है। जबकि राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ गडकरी को दूसरा कार्यकाल देना चाहता था। वहीं, कई दिग्‍गज खुलकर न सही, पर गडकरी को दोबारा अध्‍यक्ष बनाए जाने के पक्षधर नहीं थे। इस मसले पर पार्टी और संघ के बीच मत विभिन्‍नता खुलकर भी सामने आ गई थी। पार्टी की एकजुटता और जनता के बीच बेहतर संदेश के लिए अंतर्कलह और अंतर्विरोधों पर अंकुश लगाना उनकी प्राथमिकता में शीर्ष पर होना चाहिए। वैसे राजनाथ की पहचान हिन्दुत्ववादी विचारधारा के प्रति समर्पित नेता के तौर पर रही है। किसान के परिवार में जन्मे राजनाथ का स्वयंसेवक संघ से पुराना नाता रहा है।

पार्टी प्रमुख के तौर पर मोर्चा संभाले राजनाथ के समक्ष कई चुनौतियां है। मसलन, नौ राज्‍यों में इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों में पार्टी का अच्‍छा प्रदर्शन करना। मध्‍य प्रदेश, छत्‍तीसगढ़, कर्नाटक आदि राज्‍यों में सत्‍ता को बचाना और कई राज्‍यों में जनधार को और बढ़ाना। उत्‍तर प्रदेश और अन्‍य राज्‍यों में पार्टी के संगठन को मजबूत करना। यूपी में तीसरे पायदान पर पहुंच चुकी पार्टी का जनाधार बढ़ाना। राष्‍ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के कुनबे को एकजुट रखना और नए सहयोगियों को जोड़ना। महंगाई और भ्रष्‍टाचार जैसे मुद्दे पर यूपीए को घेरना और इसका फायदा उठाना। बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्‍मीदवार को लेकर उठ रही मांगों के साथ संतुलन बनाना। इसके अलावा कई अन्‍य चुनौतियां हैं, जिनसे उन्‍हें दो-चार होना पड़ेगा।

पार्टी अध्‍यक्ष के तौर पर चार साल का अनुभव रखने वाले राजनाथ को एनडीए नेताओं के साथ अच्‍छे रिश्‍ते को बनाए रखना भी शीर्ष प्राथमिकता में रखना होगा। पीएम उम्‍मीदवारी के लिए मोदी के समर्थन में उठ रहे सुर के चलते एक ओर जहां अहम सहयोगी जद (यू) का रवैया असहयोगात्‍मक होता जा रहा है, वहीं शिवसेना जैसे सहयोगी का पार्टी के दूसरे नेता के नाम को पीएम उम्‍मीदवार के तौर पर सामने रखना भी कई सवालों को जन्‍म दे रहा है। इन सबसे तालमेल बिठाना और उन्‍हें एक नाम पर सहमत करना भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं होगा।

राजनाथ को पार्टी के अंदर गुटबाजी को की प्राथमिकताओं के साथ काबू करना होगा। वहीं, संघ और पार्टी में बेहतर तालमेल कायम करना होगा। अन्‍यथा, समय के अंतराल में शीर्ष नाम के चयन में कई दिक्‍कतें पेश आएंगी।

बेदाग और देसी नेता की छवि वाले राजना‍थ को किसान, गांव और गरीब को भी एजेंडे में शीर्ष पर लाना होगा। क्‍योंकि आम चुनाव में बहुल आबादी वाले ये तबका सरकार के चयन में निर्णायक साबित होगा।

इसमें कोई संशय नहीं है कि राजनाथ ने अपनी छवि को साफ-सुथरा बनाए रखा है, पर पार्टी को भ्रष्‍टाचार के कलंक से बचाते हुए यह भी साबित करना होगा कि उन्हें देश की जनता का पूरा समर्थन हासिल है।

राजनाथ पूर्व में पार्टी अध्‍यक्ष तो बने पर जो राष्‍ट्रीय छवि हासिल करना चाहिए था, वह उन्‍हें नहीं मिल पाया। उत्‍तर भारत के कुछ राज्‍यों तक ही उनकी लोकप्रियता सिमट कर रह गई। ऐसे में क्षेत्रीय होने के तमगे से खुद को निजात दिलाकर आने वाले समय में पूरे देश का समर्थन प्राप्त करना होगा।

राजनाथ सिंह ने ऐसे समय में पार्टी का दायित्व संभाला है, जब कांग्रेस ने अपने ‘युवराज’ राहुल गांधी को उपाध्यक्ष बनाया है। ऐसे में अहम सवाल यह भी है कि क्या सिंह भाजपा को कांग्रेस के सामने मजबूती से खड़ा कर पाएंगे। सूबाई स्‍तर पर उन्‍हें नए सिरे से टीम पर काम करना होगा और इसके लिए व्‍यापक सहमति बनानी होगी। पूर्व में जिन विश्वासपात्रों को संगठन में तरजीह दी गई थी, उनके साथ भी समन्‍वय कायम करना होगा।

हालांकि, बीजेपी अध्यक्ष के तौर पर में दूसरी बार सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुना जाना साबित करता है कि राजनाथ राष्ट्रीय फलक के नेता हैं। सिंह के पार्टी में दोबारा शीर्ष स्थान हासिल करने में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से नजदीकी ने उनकी राह को आसान बना दिया। पर 2014 के मोर्चे से पहले उन्‍हें पार्टी के कार्यकर्ताओं तथा समर्थकों से करीबी रिश्ता भी बनाना होगा। इनके कार्यकाल में भाजपा को कितना फायदा होगा, यह भी आगामी चुनाव ही तय करेगा।

इसमें कोई संशय नहीं है कि राजनाथ के अध्यक्ष बनने के बाद उत्तर प्रदेश का पार्टी में महत्व बढ़ा है, पर अभी उन्हें भी प्रदेश में अपनी जमीन बनाने के लिए काफी कुछ करने की जरूरत है। कभी यूपी से लोकसभा में 50 सांसद भेजने वाली भाजपा के लिए दोबारा बड़ी संख्‍या में सीटें जीतना भी खास दुश्‍कर होगा। भारतीय राजनीति में यह कहावत मशहूर है कि दिल्ली की सत्ता के शीर्ष गलियारे का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है। सत्‍ता में लौटने के लिए यूपी में पार्टी को हर हाल में बेहतर प्रदर्शन करना होगा।

देश के सबसे बड़े राज्य से ही राष्ट्रीय अध्यक्ष तय करके बीजेपी ने अपने सियासी मंसूबे तो साफ कर दिए, पर जमीनी स्‍तर अभी काम किया जाना बाकी है। इसका असर सूबे की सियासी फलक पर भी देखने को मिलेगा। कहा तो ये भी जा रहा है कि यूपी की सियासी पिच पर राजनाथ अपने विरोधियों को अपने पाले में करने में सक्रिय थे। कल्याण सिंह को अपने पाले में लेने के बाद भाजपा के कद्दावर नेता मुरली मनोहर जोशी को भी अपने पाले में करने सफल हुए। और ऐसे ही रिश्‍ते उन्‍हें अन्‍य राज्‍यों के संगठनों में भी बनाने होंगे ताकि संगठन बेहतर नतीजा देने में सक्षम हो सके।

ऐसे में राजनाथ के सामने एक बड़ी चुनौती लोकसभा चुनावों में यूपी से भाजपा को अधिक से अधिक सीटें जितवाने की भी होगी। यूपी में भाजपा के खिसकते जनाधार को वापस पाने के लिए वह कितना काम करेंगे यह देखने वाली बात होगी। हालांकि, राजनाथ पहले भी विभिन्न संकटों के बीच सरताज बनकर उभरे हैं। ऐसे समय में जब लोकसभा चुनाव बहुत दूर नहीं है और पार्टी गुटबाजी की शिकार है तब राजनाथ सिंह का इस पद पर चुना जाना बहुत मायने रखता है।

राजनाथ के पहले कार्यकाल में ही पहली बार कर्नाटक में भाजपा सत्ता में आई थी। अब येदियुरप्‍पा ने पार्टी से बगावत कर जहां बीजेपी सरकार के समक्ष मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। इन परिस्थितियों से भी राजनाथ को सूझ-बूझ के साथ निपटना होगा। वरना दक्षिण भारत के इस राज्‍य में पार्टी को दोबारा मजबूती से खड़ा करना खासा मुश्किल होगा।

हालांकि, राजनाथ सिंह के बयान में विश्वास झलकता है कि इस साल कई राज्यों में होने वाले विधानसभा और आगामी लोकसभा चुनाव में पार्टी विजयी होगी और केंद्र में राजग का शासन लौटेगा। परंतु इसके लिए रणनीतिक स्‍तर पर दमदार तरीके से पार्टी को काम करना होगा। राजनाथ सिंह की सबसे बड़ी जिम्मेदारी यह होगी कि वह यह सुनिश्चित करें कि भाजपा में किसी भी अनैतिक कार्यों से समझौता नहीं किया जाएगा।

ज्ञात हो कि 2009 के लोकसभा चुनाव के समय सिंह भी राजनाथ ही पार्टी अध्यक्ष थे और भाजपा का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा था। ऐसे में राजनाथ के नेृतत्‍व में 2014 में राजग की सरकार को दोबारा लौटाना उनके लिए अग्निपरीक्षा के समान होगा। पार्टी में सबको एकजुट करने के लिए उन्‍हें खास ध्‍यान केंद्रित करना होगा, तभी उनके नेतृत्व में 2014 के `महायुद्ध` में पार पाने में सफलता हाथ लग पाएगी।

First Published: Thursday, January 31, 2013, 22:22

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