Last Updated: Tuesday, September 6, 2011, 05:03
प्रवीण कुमारप्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की दो दिवसीय ढाका यात्रा में चार अन्य मुख्यमंत्रियों के साथ ममता बनर्जी अब नहीं जा रही हैं. अपनी यात्रा रद्द करते हुए ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री कार्यालय को संदेश भिजवाया कि भारत और बांग्लादेश के बीच तीस्ता नदी जल बंटवारा संधि की जो शर्तें उन्हें बताई गई थीं, उससे अंतिम मसौदे का स्वरूप एकदम अलग है. बांग्लादेश को ज्यादा जल दिए जाने का प्रावधान है. इससे पश्चिम बंगाल को नुकसान होगा. कहने का मतलब यह कि ममता और मनमोहन के बीच तीस्ता नदी जल बंटवारा संधि दीवार बनकर खड़ा हो गया है. जाहिर है यह दीवार ममता ने सोची-समझी रणनीति के तहत खड़ी की है.
राजनीति के चश्मे से देखा जाए तो ममता ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं. आपको अगर ध्यान हो तो ममता जब केंद्र में मंत्री थी तब भी वह अपने निर्णय से पश्चिम बंगाल की राजनीति पर असर ज़रूर छोड़ती थीं. अब तो वह राज्य की सीएम ही हैं तो फिर अपने प्रदेश का अहित होते कैसे देख सकती हैं. प्रधानमंत्री की ढाका यात्रा के दौरान तीस्ता जल बंटवारे को लेकर 15 वर्षीय अंतरिम समझौते पर दस्तखत होने हैं. केंद्र सरकार को समर्थन दे रहीं ममता बनर्जी तीस्ता जल बंटवारा संधि के बहाने बंगाल के लिए आर्थिक मदद की खातिर नए सिरे से दबाव बना सकती हैं.
केंद्र ने पश्चिम बंगाल को विशेष आर्थिक पैकेज दिया है, लेकिन उसे अपर्याप्त बताते हुए ममता बाढ़ राहत और ग्रामीण विकास के मद में विशेष अनुदान की मांग कर रही हैं. ऐन वक्त पर बांग्लादेश की अपनी यात्रा रद्द कर ममता ने केंद्र को यही समझाने की कोशिश की है कि अगर बांग्लादेश को ज्यादा पानी देना है तो विशेष अनुदान की हमारी मांग भी पूरी करनी होगी. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के लिए ममता की ज़िद को स्वीकारना उनकी राजनीतिक मज़बूरी है. वो इसलिए कि ममता की तृणमूल कांग्रेस केंद्र की यूपीए सरकार की एक मज़बूत घटक जो है.
प्रधानमंत्री की ढाका यात्रा की तैयारियों को लेकर गृह मंत्री पी चिदंबरम और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन ने हाल ही में कोलकाता जाकर ममता के साथ बैठकें की थीं. बैठकों के दौरान ममता बनर्जी को बताया गया था कि 25 हजार क्यूसेक पानी बांग्लादेश को दिया जाएगा. लेकिन अंतिम मसौदे में 33 हजार से 50 हजार क्यूसेक पानी बांग्लादेश के देने की बात कही गई है. तीस्ता नदी सिक्किम के सो लोमो झील से निकलकर बंगाल के जलपाईगु़ड़ी से होते हुए बांग्लादेश में प्रवेश करती है और 600 किलोमीटर का रास्ता तय कर ब्रह्मपुत्र में मिल जाती है.
भारत में सिलीगु़ड़ी के पास तीस्ता के गाजलडोबा प्वाइंट पर जल की मात्रा मापकर बंटवारे का फार्मूला तैयार किया गया है. मुख्यमंत्री सचिवालय के सूत्रों के अनुसार, गर्मी में गाजलडोबा प्वाइंट पर ही तीस्ता का पानी घटकर सिर्फ 5000 क्यूसेक तक रह जाता है. ऐसे में समझौते के अनुसार, बांग्लादेश को पानी देने पर बंगाल के छह जिलों का क्या होगा? ममता की आपत्ति का एक बिंदु तीस्ता नदी के सिंचाई वाले इलाकों को लेकर भी है. भारत में यह इलाका 10 हजार वर्ग किलोमीटर और बांग्लादेश में सिर्फ 2000 वर्ग किलोमीटर है.
इसमें कोई दो राय नहीं कि ममता ने जो मुद्दा उठाया है वह निश्चित रूप से राज्य के हित में है और इसकी राज्य या केंद्र किसी भी स्तर पर अनदेखी ममता की राजनीतिक निष्ठा में आड़े आ सकती है. लेकिन ममता की ज़िद से प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह के सामने बड़ा सवाल यह खड़ा हो गया है कि तीस्ता नदी पर हुए समझौते पर हस्ताक्षर किए जाएं या नहीं? संविधान के अनुसार, किसी भी अंतरराष्ट्रीय मामलों में निर्णय लेने का अधिकार केंद्र सरकार के पास होती है. यदि विदेशी मामलों में किसी निर्णय से कोई राज्य प्रभावित होता है तो केंद्र सरकार उससे विचार-विमर्श कर सकती है. लेकिन ऐन वक्त पर ममता की आपत्ति से तीस्ता नदी पर प्रस्तावित समझौता अब अधर में लटक गया है.
First Published: Tuesday, September 6, 2011, 10:35