Last Updated: Saturday, March 17, 2012, 11:17
प्रवीण कुमारआपने आमिर खान की फिल्म 'पीपली लाइव' जरूर देखी होगी और अगर फिल्म देखने का सुअवसर नहीं मिल पाया हो तो इस फिल्म का ये गाना तो निश्चित ही आपके कानों में गूंजा होगा-
'सखी सैयां तो खूब ही कमात है, महंगाई डायन खाए जात है' हां! हम बात कर रहे हैं देश के वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी (दादा) द्वारा 16 मार्च (शुक्रवार) को पेश आम बजट 2012-13 की जिसमें दादा ने महंगाई डायन को अपनी तरफ से पूरी शह दे दी है कि एक साल का मौका तुम्हारे पास है, महंगाई का तांडव फैलाकर देश से गरीब जनता को ही मिटा दो। गरीब मिट जाएंगे तो गरीबी खुद-ब-खुद मिट जाएगी और फिर महंगाई का रोना जो किसी भी सरकार के लिए हमेशा सिर पर तलवार की तरह लटकती रहती है, से सदा के लिए मुक्ति मिल जाएगी। बात भी सही है कि यह महंगाई ही है जो किसी भी सरकार के आने और जाने का बहाना बनती है। यह महंगाई ही एक ऐसी चीज है जिस पर पूरे देश की एक राय बन जाती है वरना कहीं भाषा तो कहीं जाति, धर्म, वर्ग आदि के नाम पर अपनी-अपनी ढपली और अपना-अपना राग चलता है। इस तरह से देखा जाए तो महंगाई सारे देश को एकता के सूत्र में बांधकर रखती है। राष्ट्रीय एकता के लिए यह महंगाई किसी वरदान से कम नहीं है और इसी वरदान को सरकार जनता से छीन लेना चाहती है।
मनमोहन सरकार के वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने वित्त वर्ष 2012-13 को जो आम बजट पेश किया उसने बढ़ती महंगाई की धार को और गति दे दी है। दादा के इस बजट से कोई खुश नहीं है। ना तो गरीब, ना ही अमीर। एक लाइन में कहें तो महंगाई को लेकर बजट संवेदनशील नहीं है। महंगाई को लेकर बजट संवेदनशील होता, तो कुछ चीजों के भाव ज्यादा बढ़ते, कुछ के भाव कम गति से बढ़ते और कुछ के भाव बिलकुल नहीं बढ़ते। दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ। आइए समझते हैं महंगाई डायन का गणित--
सेवा वहीं, पर बढ़ा सेवा करदादा ने बजट में सेवा कर यानी सर्विस टेक्स में 2 प्रतिशत की वृद्धि कर दी है यानी पहले यदि आप मोबाइल फोन पर 500 रुपए प्रतिमाह खर्चते थे तो सेवा कर जोड़कर मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनी को 550 रुपए से अधिक देते थे। अब सेवा प्रदाता कंपनी को उतनी ही सेवा पर, प्रतिमाह के उसी बजट पर आपको मोबाइल बिल के रूप में 560 रुपए से अधिक चुकाने होंगे। यानी प्रतिमाह 10 रुपए से भी अधिक। मोबाइल फोन एक उदाहरण है। आम आदमी के दैनिक जीवन में ऐसी कई दर्जन सेवाएं हैं जिनपर 2.06 प्रतिशत अधिक सेवा कर का भुगतान करना होगा। दादा कह रहे हैं कि हमने आयकर में छूट का दायरा बढ़ा दिया। जनता को यह पूछने का हक है कि कितना बढ़ाया, 1,80,000 रुपए से बढ़ाकर 2 लाख रुपए कर दिया। इससे 5 लाख रुपए तक की आमदनी वाले लोगों को 2000 रुपए सालाना (यानी मासिक करीब 170 रुपए) का फायदा होगा जबकि 8-10 लाख रुपए तक की आय वालों को तकरीबन 20,000 और 10 लाख से ज्यादा आय वालों को 22000 हजार का फायदा। यहां मोबाइल बिल पर तो हर महीने 2.36 प्रतिशत का सेवा कर चुकाना होगा।
देश की कर प्रणाली का इतिहास पलटें तो सेवा कर की शुरुआत 1994-95 में 5 प्रतिशत से हुई थी। तब टेलीफोन बिल, स्टॉक ब्रोकिंग और जनरल इंश्योरेंस को इसके दायरे में लाया गया था। समय के साथ महंगाई बढ़ती गई और सेवा कर का ग्राफ भी बढ़ता गया और नए वित्त वर्ष से यह एजुकेशन सेस और उसपर सरचार्ज के बाद यह 12.36 प्रतिशत हो जाएगा। साथ ही सौ से अधिक सेवाओं के इस दायरे में लाया जा चुका है। मसलन रेलवे फर्स्ट क्लास और एसी की सभी क्लास, रेलवे ट्रेवल, एयर ट्रेवल एजेंट, एयरपोर्ट सर्विस, एटीएम सेवा, बैंकिंग सेवाएं, ब्यूटी पार्लर, केबल ऑपरेटर, कोरियर सेवा, क्रेडिट व डेबिट कार्ड, ड्रायक्लीनिंग, हैल्थ क्लब, इंटरनेट कैफे, लाइफ इंश्योरेंस, फोटोग्राफी, स्वास्थ्य सेवाएं, कोचिंग, पंडाल व शमियाना सेवाएं, आईटी व सॉफ्टवेयर सेवाएं, एसी रेस्टोरेंट, होटल व गेस्ट हाउस की सेवाओं के अलावा कई और सेवाएं हैं जो सेवा कर के दायरे में शामिल की गई हैं जो एक आम आदमी को सीधे तौर पर प्रभावित करेगा।
अमीरों पर भी बोझ कम नहींबजट में एक्साइज ड्यूटी यानी उत्पाद शुल्क में भी 2 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई है। दादा का बजट भाषण पूरा भी नहीं हुआ कि मारुति और होंडा ने अपनी-अपनी कारों की कीमतें बढ़ाने की घोषणा कर दी। महिंद्रा एंड महिंद्रा ने अपने स्पोर्ट्स युटिलिटी व्हीकल पर 4 हजार से 35 हजार रुपए बढ़ाने की बात कही। जाहिर है पहले से ही प्रतिकूल परिस्थितियों को झेल रही कार इंडस्ट्री बजट में 2 प्रतिशत उत्पाद शुल्क का बोझ अपने अमीर ग्राहकों पर ही डालेगी। विदेश में बनी कारों पर उत्पाद शुल्क 22 से बढ़ाकर 24 प्रतिशत कर दी गई है। एसयूवी, एमयूवी व बड़ा कारों पर बेसिक कस्टम ड्यूटी 60 से बढ़ाकर 75 प्रतिशत कर दी गई है जिससे अमीर वर्ग पर महंगाई की दोहरी मार पड़ेगी। कहने का मतलब दादा इस बजट में अमीर वर्ग को भी संतुष्ट करते नहीं दिख रहे।
चलते-चलते दादा के उस वक्तव्य का जिक्र करना यहां जरूरी होगा जो लोकसभा में बजट भाषण को शुरू करने से पहले उद्धृत किया था। उन्होंने कहा, 'दयावान बनने के लिए पहले मुझे क्रूर होना पड़ेगा।' शेक्सपीयर के इस उद्धरण को प्रणब मुखर्जी ने पेश किये गए बजट से एक हद तक साबित भी किया। लेकिन भाषा पर जरा गौर कीजिए, 'दयावान बनने से पहले' यानी क्रूरता तो दिखा दी और दयावान बनना अभी बाकी है। इस इशारे को गौर से समझना आपकी आर्थिक सेहत के लिए बेहद जरूरी है।
दादा का अगला बजट वित्त वर्ष 2013-14 के लिए होगा जो लोकसभा चुनाव 2014 से पहले आखिरी बजट होगा। साफ है अगले बजट में दादा दयावान बनकर आम आदमी को (जिसके वोट से जीतकर उन्हें पांच साल तक बजट पेश करने का मौका मिलता है) फिर से रिझाने की कोशिश की जाएगी। बजट को आम आदमी के हित में बनाने की हरसंभव कोशिश की जाएगी ताकि कांग्रेस नीत यूपीए की सरकार पर जनता फिर से मेहरबान हो अगले पांच साल तक के लिए सत्ता सौंप दे। दादा के इस वक्तव्य को देश की जनता को ध्यान में रखना होगा क्योंकि यह वक्तव्य पूरी तरह से राजनीतिक है। इसका मतलब सिर्फ वोट बैंक से है। अगर गलती से वित्त वर्ष 2013-14 के बजट में दादा दयावान बनते हैं तो फिर लोकसभा चुनाव 2014 में आपको सोच-समझकर अपनी सरकार चुननी होगी।
First Published: Thursday, March 29, 2012, 16:48