लीबिया में नए युग की शुरुआत - Zee News हिंदी

लीबिया में नए युग की शुरुआत



 

बिमल कुमार

 

लीबिया में चार दशक से ज्‍यादा की तानाशाही और आठ महीने के खूनी संघर्ष के बाद वहां के लोग अब अपनी आजादी का जश्‍न मना रहे हैं। यह इस देश के लिए एक नए युग की शुरुआत है। लीबिया में आजादी की घोषणा भी बीते दिनों कर दी गई और इसके साथ ही, गद्दाफी के 42 साल के शासन का अंत हो गया।

 

अब इस देश के शासकों से यह उम्‍मीद बंधी है कि मानवाधिकारों का सम्‍मान किया जाएगा और देश में लोकतंत्र स्‍थापित करने की दिशा में काम तेजी से आगे बढ़ेगा। यह सही है कि लीबिया के लोगों पर अरब क्रांति का असर हुआ, लेकिन ऐसा नहीं है कि इसके पहले इस देश में लोकतांत्रिक शक्तियों ने गद्दाफी के क्रूर शासन से मुक्ति पाने की चाह न दिखाई हो।

 

अपनी जिंदगी के आखिरी क्षणों में गद्दाफी ने वो सारी क्रूरताएं देखीं, जिनके आरोप खुद उन पर लगते रहे। गद्दाफी की मौत के सा‍थ ही लीबिया में एक युग का अंत हो गया। एक ऐसा युग जिसने तेल से लबालब देश लीबिया को पूरी दुनिया के सामने एक विद्रोही के रूप में खड़ा किया। नए लीबिया के सामने अब रास्‍ते तो खुल गए हैं, जो आसान भी नहीं हैं। नए नेतृत्‍व के सामने पूरे देश को एक साथ लेकर चलने की चुनौती भी है। नए नेताओं ने लीबिया के हताश राजनीतिक बलों को एकजुट करना शुरू कर दिया है और साथ ही अंतरिम सरकार गठित करने की कवायद भी शुरू कर दी है। ताकि राष्‍ट्र के शासन व्‍यवस्‍था को सुचारू रूप से चलाया जा सके। वहीं, नए संविधान को लागू करने की दिशा में भी कार्य शुरू कर दिया गया है। अब जबकि एक महीने में लीबिया में अंतरिम सरकार का गठन होगा तो देश में पहले लोकतांत्रिक चुनाव की आधारशिला भी साथ ही रखी जाएगी।

 

इस देश में नई नीतियों को शीघ्र अमलीजामा पहनाने की कवायद भी जारी है। ताकि जैसा सद्दाम के जाने के बाद 2003 में बगदाद में जो हुआ, वैसा कुछ यहां न हो। हालांकि लीबिया में भी खतरा इराक जैसा ही है। लीबिया को एक मजबूत धर्मनिरपेक्ष देश बनाना काफी बड़ी चुनौती है और इससे भी बड़ी चुनौती है, वहां के बागी लड़ाकों को एक सैन्‍य ईकाइयों में तबदील करना।

 

अब जबकि नेशनल ट्रांजिशनल काउंसिल (एनटीसी) लीबिया में नई हुकूमत संभालेगी, उसे नए नुमाइंदे को चुनने में काफी सावधानी बरतनी होगी। इस देश में आंदोलन में शामिल युवा भी अपने नेतृत्‍व के लिए एक नया चेहरा चाहते हैं। लीबिया के समक्ष खुद को बाहरी दखलंदाजी से मुक्‍त बनाए रखना भी एक बड़ी चुनौती होगी, खासकर तब जब नाटो की सेनाओं ने गद्दाफी विरोधियों की बढ़चढ़कर मदद की है। वैसे भी लीबिया के तेल भंडार पर बड़ी ताकतों की ललचाई निगाहें हमेशा से रही हैं। राष्‍ट्रीय एकता उसके लिए एक बड़ी समस्‍या बन सकती है, जिससे उसे पार पाना होगा। इसके अलावा, इस देश के कई शहर अभी हथियारों से अटे पड़े हैं, इसलिए शांतिपूर्ण तरीके से हथियारमुक्‍त करने के लिए कड़ी मशक्‍कत करनी पड़ेगी।

 

ज्ञात हो कि बेनगाजी में आठ महीने पहले गद्दाफी के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका गया था। वैसे अरब देशों की क्रांतियों ने कई शासकों की सत्‍ता की बलि ले ली है, लेकिन इसमें मारे जाने वाले वाले गद्दाफी पहले नेता हैं। यह विदित है कि ज्‍यादातार तानाशाहों का अंत ऐसा ही होता है। हालांकि, इस बार लीबिया में राष्‍ट निर्माण का कार्य संयुक्‍त राष्‍ट्र का सिरदर्द है, अमेरिका का नहीं। जो कुछ भी हो, लेकिन इस बार परदे के पीछे से शिकस्‍त देने की अमेरिका की योजना भी कामयाब रही।

 

गद्दाफी के खात्‍मे ने अरब दुनिया के तानाशाहों को यह संदेश तो दे ही दिया है कि बदलाव के इस लहर से वे बच नहीं सकेंगे। आज लीबिया का भविष्‍य और बेहतर नजर आ सकता था, यदि पश्चिमी देशों ने गद्दाफी का इतने लंबे समय तक साथ नहीं दिया होता। गद्दाफी का अंत नई संभावनाओं का आगाज भले ही हो, लेकिन भावी युग कैसा होगा, इसके बारे में अभी भरोसे के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता। वैसे भी लीबिया के लोगों को जो हासिल करना है, जंग की समाप्ति तो उसकी बस शुरुआत है। अब लीबियाई जनता का भविष्‍य पूरी तरह उसके अपने हाथों में होगा, जो पूरी तरह न्‍याय और राष्‍ट्रीय एकजुटता पर आधारित होगा।

First Published: Tuesday, October 25, 2011, 23:26

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