Last Updated: Monday, July 29, 2013, 17:49
प्रवीण कुमारबटला हाउस एनकाउंटर केस में अदालत के फैसले ने यह साबित कर दिया है कि दिल्ली पुलिस के जांबाज इंस्पेक्टर मोहनचंद शर्मा की सच्ची शहादत पर फर्जी तरीके से सियासत की गई। जरा सोचिए! कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह की इस फर्जी सियासत से दिल्ली पुलिस के शहीद इंस्पेक्टर के परिवार पर क्या बीती होगी और दिल्ली पुलिस के मनोबल को कितनी चोट पहुंची होगी। भारतीय सेना के जवान हों या दिल्ली पुलिस या फिर किसी अन्य राज्यों की पुलिस, इनके लिए राष्ट्र सर्वोपरि होता है। और जाने-अनजाने में अगर इनपर दाग लगता है, आरोप लगते हैं तो अधिकतर मामलों में इसके पीछे सियासी हथकंडे होते हैं।
दिल्ली की एक अदालत ने विवादित बटला हाऊस एनकाउंटर में दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर मोहनचंद शर्मा की हत्या के लिए इंडियन मुजाहिदीन के संदिग्ध आतंकी शहजाद अहमद को दोषी करार दिया है। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश राजेन्द्र कुमार शास्त्री ने फैसला सुनाते हुए 2008 के इस एनकाउंटर में जिंदा पकड़े गए एक मात्र आतंकवादी शहजाद अहमद को इंस्पेक्टर शर्मा की हत्या का दोषी बताया। कोर्ट के मुताबिक तमाम परिस्थितिजन्य साक्ष्य और फोन कॉल रिकॉर्ड से यह साबित हुआ कि शहजाद 19 सितंबर 2008 को मुठभेड़ के वक्त बटला हाऊस के उसी फ्लैट में मौजूद था जिसमें दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ के दस्ते ने छापेमारी की थी।
राजधानी दिल्ली में 13 सितंबर 2008 को हुए सीरियल ब्लास्ट में 26 लोगों के मारे जाने और 100 से अधिक लोगों के घायल होने की घटना के पांच दिन दिन बाद ही दिल्ली पुलिस के विशेष दस्ते ने बटला हाऊस में संदिग्ध गतिविधियों की खुफिया जानकारी के आधार पर छापेमारी की थी। इस दौरान एनकाउंटर एक्सपर्ट इंस्पेक्टर शर्मा को गोली लगने से मौत हो गई थी। बाद में इस मुठभेड़ पर राजनीतिक दलों खासकर कांग्रेस ने सियासत करनी शुरू कर दी थी। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह और समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने इसे फर्जी मुठभेड़ करार दिया था। इन लोगों का कहना था कि शर्मा की हत्या पुलिस के भीतर दुश्मनी के कारण हुई थी।
एनकाउंटर के करीब डेढ़ साल बाद शहजाद अहमद को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ स्थित उसके गांव से गिरफ्तार किया गया। एनकाउंटर के बाद दिल्ली पुलिस ने आतंकियों की खोज में आजमगढ़ में कई जगह छापे मारे थे। इस छापेमारी का समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के स्थानीय नेताओं ने खूब विरोध किया था। हालांकि तत्कालीन गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने दावा किया था की बटला हाऊस एनकाउंटर एकदम सही है। दरअसल बटला एनकाउंटर में दिल्ली पुलिस ने कोई फर्जीवाड़ा नहीं किया था, लेकिन राजनीतिक रोटियां सेंकने वाली पार्टियां और कुछ नेता जब इस तरह के एनकाउंटर पर सवाल उठाने लगते हैं तो देश में एक तरह की भ्रम की स्थिति पैदा होती है। इशरत जहां एनकाउंटर में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। लेकिन दिल्ली की अदालत ने बटला एनकाउंटर में जब इंडियन मुजाहिदीन के संदिग्ध आतंकी शहजाद अहमद को दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर चंद्रमोहन शर्मा की हत्या का दोषी ठहराया तो फर्जी सियासत की पोल पट्टी खुल गई है।
बटला हाउस एनकाउंटर पर दिल्ली की अदालत के फैसले के बाद इतना तो जरूर तय हो गया है कि दिग्विजय सिंह और मुलायम सिंह यादव ने इस मामले में तुष्टीकरण की राजनीति के तहत इस एनकाउंटर को फर्जी करार दिया था। सच्चाई इसके उलट थी। दूसरी बात यह कि दिल्ली के सीरियल ब्लास्ट समेत कई आतंकी हमलों में इंडियन मुजाहिदीन का हाथ रहा है। दिल्ली पुलिस के अनुसार कांग्रेस नेता शकील अहमद का वह बयान भी झूठ साबित हो रहा है जिसमें उन्होंने कहा था कि इंडियन मुजाहिदीन गुजरात दंगों की उपज है। तहलका पत्रिका की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इंडियन मुजाहिदीन लगभग तभी बना था जब दक्षिणपंथी हिंदू संगठन अभिनव भारत बना था। इसका संस्थापक आमिर रजा खान था जिसे जैश-ए-मोहम्मद का करीबी माना जाता है। उसके भाई आसिफ ने अपहरण के मामलों को अंजाम देने के लिए एक छुटभइये अपराधी आफताब अंसारी से हाथ मिला लिया। दोनों ने मिलकर साल 2000 में भास्कर पारेख के पुत्र और कोलकाता के कारोबारी पार्थो रॉय बर्मन का अपहरण किया। सीबीआई की एक रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि फिरौती में मिले चार करोड़ रुपयों का एक चौथाई हिस्सा मुल्ला उमर के जरिए मोहम्मद अत्ता को 9/11 के अमेरिकी हमले के लिए दिया गया था। रकम के कुछ हिस्से का इस्तेमाल भारतीय संसद पर हमले में किया गया। कहने का मतलब यह कि इंडियन मुजाहिदीन का जन्म साल 2000 में हो चुका था।
एक और तथ्य के मुताबिक 27 सितंबर, 2001 को स्टुडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) पर प्रतिबंध लग गया था। सिमी से अलग हुए आतंकियों ने आतंकी गतिविधियों के संचालन को निरंतर जारी रखने के लिए इंडियन मुजाहिदीन संगठन खड़ा किया। इंडियन मुजाहिदीन को प्रतिबंधित सिमी और पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन लश्कर का एक तरह से मुखौटा माना जाता है। जानकारों के मुताबिक इंडियन मुजाहिदीन पाकिस्तान की कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई के हाथों की कठपुतली भी है। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल, एटीएस और एसआईटी के आधिकारिक दस्तावेजों के अनुसार लुंबिनी पार्क और गोकुल चाट भंडार विस्फोट हैदराबाद (25 अगस्त, 2007), उत्तर प्रदेश की अदालतों में विस्फोट (20 नवंबर, 2007), जयपुर विस्फोट (13 मई, 2008), बेंगलुरु विस्फोट (25 जुलाई, 2008), गुजरात विस्फोट (26 जुलाई, 2008) और 13 सितंबर, 2008 के दिल्ली विस्फोटों में 215 से अधिक लोग मारे गए। इन सभी विस्फोटों में इंडियन मुजाहिदीन का ही हाथ है।
अंत में ये बात कि दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर मोहनचंद शर्मा की शहादत ने कम से कम ये बात तो साबित कर दी थी कि एनकाउंटर में सामने से भी गोलियां चलीं थी। हम हिंदुस्तान के लोग उम्मीद करते हैं कि कोई जवान अपनी जान हथेली पर रख कर हमारी हिफाजत करेगा पर एक शहीद की शहादत का मजाक उड़ाने वालों के खिलाफ आगे नहीं आते। हम भूल जाते हैं कि इस खबर का ताल्लुक उस शख्स से है जिसने देश की हिफाजत के लिए कुर्बानी दी। तभी तो चल रही है नेताओं की सियासत। क्या किसी भी बुद्धिजीवी, समाजसेवी या मानविधकार के रहनुमा ने मोहनचंद शर्मा के घर की हालत जानने की कोशिश की। क्या किसी मानवाधिकार संगठन ने उनके बूढ़े पिता, उनकी पत्नी और मासूम बच्चों की आवाज उठाई। सारा मानवाधिकार संगठन तो आतंक फैलाने वाले देशद्रोहियों के लिए ही तो है। मेरा सिर्फ इतना कहना है कि देश के सियासतदानों को बेहद गंभीरता से इस बात पर विचार करना होगा कि सत्ता की राजनीति में वो सुरक्षा एजेंसियों का किस हद तक इस्तेमाल करें। सियासत के इस खेल ने देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए जिम्मेदार एजेंसियों में असुरक्षा की भावना पैदा कर दी है। सियासी फायदे के लिए देश की आंतरिक सुरक्षा को खतरे में डालना राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में आता है।
First Published: Monday, July 29, 2013, 15:34