Last Updated: Tuesday, March 6, 2012, 19:17

बिमल कुमार समाजवादी पार्टी के चुनाव चिन्ह साइकिल ने इस बार यूपी विधानासभा चुनाव में न सिर्फ अपना दम दिखाया, बल्कि अन्य प्रमुख राजनीतिक दलों को बेदम भी कर दिया। इस बार साइकिल की रफ्तार इतनी तेज थी कि सपा ने एक नई इबारत लिख दी और अन्य दलों को पीछे छोड़ बहुमत का रिकॉर्ड बना दिया। सपा ने 224 सीटें जीतकर सूबे की सत्ता पर अपना कब्जा जमा लिया।
चुनाव से पहले, साइकिल की इस तेज रफ्तार पर न तो चुनाव विशेषज्ञों को भरोसा था और न ही सपा के शीर्ष नेताओं को यकीन होगा। हालांकि सातवें चरण के मतदान के बाद सर्वेक्षणों में समाजवादी पार्टी को सबसे ज्यादा सीटें मिलने की बात कही जा रही थी, पर पार्टी को इतना भारी बहुमत मिलेगा इसकी उम्मीद किसी को भी नहीं थी। यहां तक कि सपा की तरफ से भी यही उम्मीद जताई जा रही थी कि पार्टी सबसे बड़ा दल बनकर बहुमत के आस-पास रहेगी, लेकिन सीटों का आंकड़ा इतना ऊपर चला जाएगा इसकी उम्मीद नहीं थीं।
समाजवादी पार्टी ने 224 सीटें हासिल कर 22 वर्षों में सभी दलों के मुकाबले सबसे बड़ी जीत हासिल की है। एक तरह से समाजवादी पार्टी ने सूबे की राजनीति में नई इबारत लिख डाली। बीते चुनाव की बात करें तो पार्टी को करीब 23 फीसदी मत के साथ 97 सीटों पर जीत मिली थी। सूबे के इतिहास में अब तक का सर्वाधिक 59.17 प्रतिशत मतदान भी इस बार के चुनाव में हुआ। इसी के बलबूते सपा ने स्पष्ट बहुमत हासिल कर लिया। इसका खामियाजा भाजपा तथा कांग्रेस को भुगतना पड़ा। भाजपा को महज 47 सीटें मिलीं जबकि कांग्रेस को 28 सीटें मिलीं। बसपा को 80 सीटों से ही संतोष करना पड़ा।
इस बार के चुनाव में सपा ने प्रदेश इकाई के अध्यक्ष अखिलेश यादव को मोर्चे पर लगाते हुए चुनावी जंग जीत ली। प्रदेश के चुनावी इतिहास में सपा ने इससे पहले बेहतरीन प्रदर्शन 2002 के विधानसभा चुनाव में किया था। तब भाजपा और बसपा के साथ त्रिकोणीय मुकाबले में पार्टी ने 403 में से 143 सीटों पर हासिल की थी। हालांकि यूपी के चुनाव नतीजे कांग्रेस के लिए बेहद निराशाजनक रहे। पार्टी को सिर्फ 28 सीटें ही मिल सकी।
इस चुनावी जीत में अखिलेश यादव के योगदान को कमतर कतई नहीं आंका जा सकता। पार्टी के घोषणापत्र, चुनाव प्रबंधन से लेकर प्रचार आदि की कमान भी अखिलेश यादव ने खुद संभाली। सबसे ज्यादा जनसभाएं भी की। सपा की इस ऐतिहासिक जीत का श्रेय अब प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव को दिया जाने लगा है। खैर इसमें कोई शक नहीं है कि अखिलेश ने कड़ी मेहनत की और पार्टी का रंगरूप बदलने में अहम भूमिका निभाई। साइकिल की इसी तेज रफ्तार ने मुलायम सिंह यादव के चौथी बार मुख्यमंत्री बनने का मार्ग प्रशस्त कर दिया।
मंगलवार सुबह मतगणन शुरू होते ही साइकिल ने ऐसी रफ्तार पकड़ी की उसने बहुमत के लिए आवश्यक 202 के जादुई आंकड़े को पार करके ही दम लिया। वहीं, हाथी की चाल शुरू से ही काफी सुस्त रही। पूरे नतीजे सामने आने तक बसपा समेत भाजपा, कांग्रेस बेदम हो गए। 2007 में चुनाव में कुल 97 सीटें जीतने वाली सपा के इस प्रदर्शन ने राजनीतिक पंडितों को चौंका कर रख दिया। सपा को मिली इस भारी जीत के बाद अखिलेश यादव का कहना रहा कि जनता ने जाति-धर्म से ऊपर उठकर सपा पर विश्वास व्यक्त किया और उनकी पार्टी की सरकार जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने की पूरी कोशिश करेगी। सपा सरकार बनाने के बाद अपना पूरा का पूरा घोषणापत्र लागू करेगी, जिससे उत्तर प्रदेश खुशहाली और विकास के रास्ते पर जा सके। अब देखना यह होगा कि अखिलेश का यह कथन समय की कसौटी पर कितना खड़ा साबित होता है।
पूरे प्रदेश में रथ यात्रा के जरिए अखिलेश ने करीब दो हजार किलोमीटर का व्यापक जनसंपर्क किया। उन्होंने गांव-गांव जाकर लोगों को समाजवादी नीतियों के बारे में बताने के साथ बसपा के भ्रष्टाचार के बारे में भी बताया। संभवत: इसका भी असर मतदाताओं के ऊपर पड़ा और जमकर मतदान किया। अखिलेश के प्रचार की खास बात यह रही कि उन्होंने किसी विपक्षी दल के नेता पर व्यक्तिगत हमला नहीं किया और पूरे अभियान को बहुत सकारात्मक ढंग से किया। पूरे चुनाव में अखिलेश की तुलना कांग्रेस महासिचव राहुल गांधी से की जा रही थी। एक तरह से उनके सामने खुद को साबित करने की एक चुनौती भी थी।
इस चुनाव के नतीजों से ये बात साफ हो गई है कि उत्तर प्रदेश के मतदाता अब गठबंधन और जोड़तोड़ वाली नहीं बल्कि एक स्थिर सरकार चाहते हैं। पिछले चुनाव में जनता ने बसपा के पक्ष में जनादेश देकर एक स्थिर सरकार बनाने का रास्ता प्रशस्त किया था। उसी तरह इस चुनाव में जनता ने सपा को बसपा के मजबूत विकल्प के रूप में पेश करके एक स्थिर सरकार का जनादेश दिया। जनता ने 1991 के विधानसभा चुनाव के बाद 2007 तक लगातार खंडित जनादेश दिया। इस बीच गठबंधन की सरकारें तो बनीं लेकिन उनमें स्थिरता नहीं रही।
वहीं, सरकार बनाने का दावा करने वाली कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा। यूं कहें कि यानी राहुल का जादू नहीं चल सका। 2009 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को मिली अप्रत्याशित जीत के बाद राहुल गांधी ने 2012 के विधानसभा चुनाव में लखनऊ की सत्ता पर कांग्रेस का कब्जा जमाने के लिए मिशन-2012 बनाया। उसके बाद से वह लगातार प्रदेश में सक्रिय रहे। फिर भी सूबे में कांग्रेस की वापसी करवा पाने में कामयाब नहीं हो सके। यहां तक कि अमेठी और रायबरेली में भी कांग्रेस को भारी नुकसान हुआ। कानपुर, रामपुर, बरेली और हाथरस जिलों के मुस्लिम बहुल 18 विधानसभा क्षेत्रों में राहुल गांधी ने रोड शो किया। चुनाव प्रचार के दौरान राहुल ने 42 दिनों तक प्रदेश में प्रवास किया। लेकिन वे जनता का भरोसा जीतने में सफल नहीं हो सके। वहीं, सपा की आंधी ने कई दिग्गजों की लुटिया डूबो दी तो कई सूरमा इसमें भी अपनी जीत सुनिश्चित करने में सफल रहे।
First Published: Wednesday, March 7, 2012, 00:48