स्पॉट फिक्सिंग की फांस से चकनाचूर होता क्रिकेट-spot-fixing cricket sabbotage the image of cricket

स्पॉट फिक्सिंग की फांस से चकनाचूर होता क्रिकेट

स्पॉट फिक्सिंग की फांस से चकनाचूर होता क्रिकेटसंजीव कुमार दुबे

एक बार फिर क्रिकेट की साख दांव पर है। भारत में खेलों का राजा कहलाने वाले क्रिकेट को एक बार फिर स्पॉट फिक्सिंग का ग्रहण लग गया है। फिक्सिंग की यह फांस लंबी नजर आती है। क्रिकेट के मनोरंजन को यह बदनुमा दाग धूल-धूसरित कर रहा है। फिक्सिंग के इस गंदे खेल में खिलाड़यों के अलावा अभिनेता (विंदू दारा सिंह) और कई बड़े दिग्गज भी फंसते नजर आ रहे हैं।

पहले खिलाड़ी, फिर बुकी, उसके बाद अभिनेता, फिर अंपायर और अब सीएसके टीम के सीईओ (गुरुनाथ मयप्पन) भी इस मसले पर फंसते नजर आ रहे हैं। हद तो तब हो गई जब इसमें पाकिस्तान विवादास्पद अंपायर असद रउफ का नाम भी सामने आया है जो कथित तौर पर आईपीएल के दो मैचों की स्पॉट फिक्सिंग में शामिल रहे है। लिहाजा उन्हें अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद ने इंग्लैंड में होने वाली चैम्पियन्स ट्राफी के लिए मैच अधिकारियों के पैनल से हटा दिया। यह खेल के सबसे बड़े प्रारूप का दुर्भाग्य है कि मैदान में जो व्यक्ति (अंपायर) एक पंच की भूमिका अदा करता है वह भी फिक्सिंग के दलदल में जा फंसा है और सटोरियों और बुकीज तक से उसके रिश्ते उजागर हो रहे हैं।

क्रिकेट के मैदान के बाहर भी एक दुनिया होती है जहां इस खेल को देखते और इसकी भविष्यवाणी का क्रम लगातार जारी रहता है। ऐसे लोग सटोरिया कहलाते है। ये सट्टेबाज पूरे मैच को भी फिक्स करते है या फिर अगर मैच के एक हिस्से को फिक्स करते है तो यह स्पॉट फिक्सिंग कही जाती है। इस खेल में दांव करोड़ों का होता है जिसके बारे में कहा जाता है कि इसका संचालन दुबई से अंडरवर्ल्ड जुड़े कुछ लोग करते है। लेकिन लाखों की कमाई ये छोटे सटोरिये या सट्टेबाज करते हैं जो अपने बड़े आकाओं का निर्देश मानते है।

क्रिकेट के मद्देनजर सट्टेबाजी की बात भारत के लिए नई नहीं है। इस बात पर ज्यादा हाय तौबा इसलिए भी मचता है कि सट्टेबाजी हमारे देश में कानूनी नहीं है गैरकानूनी है। कुछ ऐसे देश है जहां सट्टेबाजी कानूनी होती है।

आईपीएल में फिक्सिंग या स्पॉट फिक्सिंगका गोरखधंधा इस बात को बखूबी जाहिर करता है कि इस धंधे के पीछे वजह होती है बेशुमार दौलत हासिल करना। ये अलग बात है कि इस धंधे में कुछ लूट जाते है तो कुछ मालामाल हो जाते हैं। लेकिन मालामाल होने और पैसा कमाने का लालच इतना हावी होता है कि फिक्सर, सटोरिया इस जुएं (फिक्सिंग) को खेलने से परहेज नहीं करते है। सट्टेबाजों या फिक्सिंग का यह गोरखधंधा ना जाने कितने सालों से चला आ रहा है लेकिन यह बात साफ है कि इसपर रोक नहीं लगाई जा सकी है। यह भी सच है कि गंभीरता से इसे रोकने की कोशिश भी नहीं की गई।

1960, 1970 के दशक में भारतीय क्रिकेट की बात करें तो क्रिकेटरों को कुछ हजार बतौर पारिश्रमिक मिलते थे। और खिलाड़ी जी-जान से खेलते थे। उस वक्त खिलाड़ियों को महंगे विज्ञापन भी नहीं मिलते थे। क्योंकि दौर वैसा नहीं था कि यह मुमकिन होता। खिलाड़ियों को मिलनेवाली सुविधाएं की फेहरिस्त भी बड़ी सिमटी हुई थी। उन्हें गिनी चुनी सुविधाएं मयस्सर होती थी लेकिन उसमें भी वह बेहद खुश रहते थे उन्हें कोई शिकायत नहीं थी।

वर्ष 1990 के दशक से भारतीय क्रिकेट में पैसों की बारिश होने लगी। वर्ष 2000 के आसपास हर दिग्गज क्रिकेटर का एक ब्रांड वैल्यू मापा जाने लगा। किस खिलाड़ी की कीमत कितनी है यह बाजार तय करने लगा। सचिन और धोनी जैसे खिलाड़ियों को एक विज्ञापन के लिए तीन साल के लिए 100 करोड़ मिलने लगे। जिसका बल्ला चलता था उसका बाजार वैल्यू सर चढ़कर बोलने लगा। वह क्रिकेटर मालामाल होने लगा। जो कुछ समय पहले एक दशक में खिलाड़ी साल भर में भी लाख का आंकड़ा नहीं छू पाते थे वहीं वहीं इस दौर का दिग्गज क्रिकेटर अब एक विज्ञापन के लिए करोड़ों रुपये लेकर आर्थिक रुप से अपना भविष्य सुनिश्चित कर लेता है।

सवालों के घेरे में चेन्नई सुपरकिंग्स के सीईओ और बीसीसीआई प्रमुख एन श्रीनिवासन भी है। उन्होंने इस मामले पर चुप्पी भले ही साध रखी है लेकिन आईपीएल के आयोजन में इस बात को पहले ही सुनिश्चित किया जाना चाहिए था कि खेल के बुनियादी ढांचे में कोई सुराख ना होने पाए ताकि खेल के मनोरंजन में किसी बेटिंग या सट्टा का कोई दखल हो।

खेल किसी भी खिलाड़ी से बड़ा है। लिहाजा इस बात को लेकर अब कुछ खेल के दिग्गज यह भी कह रहे हैं कि क्रिकेट में सट्टेबाजी को कानूनी कर देना चाहिए। क्रिकेट में भ्रष्टाचार को रोकने के लिये देश में सट्टेबाजी को वैध बनाया जाना चाहिये , इस बात पर बहस छिड़ गई है। लेकिन सवाल यह भी है कि क्या इससे मनोरंजन का पैमाना प्रभावित नहीं होगा। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि आईपीएल की साख को धब्बा लगाने वाली फिक्सिंग एशियाई देशों में अधिक चलन में है । भारत और पाकिस्तान में फिक्सिंग की खबरें आती ही रहती है।

खेल देखने वाले दर्शक जब मैच देखते हैं तो वह उसमें भावनात्मक रूप से तल्लीन हो जाते हैं। उनके दिल की धड़कने गिरते विकेट और गगनचुंबी छक्कों से गिरती और मचलती रहती है। जब उन्हें ये मालूम होता है कि यह ओवर फिक्स था या वह मैच फिक्स था तो फिर मनोरंजन किस बात का रह जाएगा। इस प्रकार की घटनाओं से दर्शकों या फैंस में खेल के प्रति अरूचि पैदा होगी जिससे क्रिकेट जैसे खेल के वजूद पर सवालिया निशान लग जाएगा।

देश के खेल मंत्री शर्मसार है फिक्सिंग के प्रकरण से। खेल मंत्री जितेंद्र सिंह कहते हैं उनका सर शर्म से झुक गया है। क्या वह लोग भी शर्मसार है जो फिक्सिंग के आरोप में सलाखों के अंदर है। क्या वह लोग शर्मसार हैं जो फिक्सिंग के रैकेट की बड़ी मछलियां तो है लेकिन पुलिस की रडार और पकड़ से बाहर है?

जल्द ही क्रिकेट के मद्देनजर सट्टेबाजी और फिक्सिंग रोकने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए तो क्रिकेट के मैदान में खेल देखने के लिए दर्शकों का टोटा पड़ जाएगा। ड्राइंग रूम में बैठकर लोग क्रिकेट देखना भी नापसंद करेंगे। क्रिकेट में दर्शकों की रूचि रहे फैंस की मोहब्बत रहे इसके लिए जल्दी ही कुछ सोचना और करना होगा।

आईपीएल के टाइटल सॉन्ग को जरा आप मेरे साथ गुनगुनाइए। रररर...हर कोई खेलेगा, कोई नहीं बचेगा...। हालात यहीं इशारा कर रहे हैं कि इस फिक्सिंग के हमाम में लगता है सभी नंगे है। सभी फिक्सिंग करने में लगे है और लगता है कि शायद कोई भी नहीं बचा है।











First Published: Friday, May 24, 2013, 19:57

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