हर दर्द की दवा थे द्रविड़ - Zee News हिंदी

हर दर्द की दवा थे द्रविड़

इन्द्रमोहन कुमार

 

जिस तरह गृहस्थी में पहले बचपन, युवा और व्यस्क के बाद वृद्धावस्था आता है कुछ उसी प्रकार क्रिकेटरों को भी अपने पेशेवर जीवन में कई रंग से रूबरू होना पड़ता है। मगर इसका पैमाना अलग है, 35 के राजनीति और 35 के क्रिकेटर होने में फर्क है। इस उम्र के पार भी लोग राजनीति के युवराज कहलाते हैं पर क्रिकेट में अलविदा युग या बूढ़े शेर कहलाने को मजबूर हो जाते हैं। दोनों के प्रदर्शन का प्रभाव समान जरूर है।

 

बात ‘जैमी’ के जाने की यानी राहुल के रिटायरमेंट की हो रही है। ‘द वॉल’ सुनने में जितना कठोर लगता है वास्तव में द्रविड़ उससे ज्यादा लचीले हैं। शायद ही कोई ऐसा खिलाड़ी हुआ हो जो क्रिकेट के सभी प्रारूप को शालीनता से खेलने में सक्षम रहा है। एक बेदाग क्रिकेट करियर से लेकर किसी फैसले को मानने वाले राहुल की कहानी सबसे जुदा है। टीम के कप्तान तथा प्रबंधन ने जब-जब उन्हें जहां कहीं भी बल्लेबाजी या किसी भी भूमिका के लिए कहा, उन्होंने ना नहीं कहा। इसी कारण उन्हें ‘टीम मैन’ भी कहा जाता था। इसके अलावा द्रविड़ उन चंद खिलाड़ियों में भी थे जो किसी भी तरह का क्रिकेट खेल सकते हैं लेकिन प्राथमिकता टेस्ट क्रिकेट को ही दिया।

 

बतौर बल्लेबाज के रूप में उन्होंने एकदिवसीय क्रिकेट में करियर का पदार्पन किया, पर वो निकले टेस्ट क्रिकेट के कठोर बल्लेबाज। टीम जब कभी संकट में रही ज्यादातर मौके पर द्रविड़ ने नैया पार लगाया। उनके क्रीज पर रहते हुए खिलाड़ी निश्चिंत हो जाते थे कि अब तो फिलहाल विकेट नहीं गिरने वाला। इसी पर सुनील गावस्कर ने कहा, ‘मैदान के बाहर और अंदर अपने काम की गंभीरता के कारण वे युवा खिलाड़ियों के लिए आदर्श थे। ड्रेसिंग रूम में सचिन तेंदुलकर ने युवा खिलाड़ियों को प्रेरित किया, लेकिन ये खिलाड़ी जानते थे कि सचिन कुछ खास हैं, लेकिन वे राहुल द्रविड़ की ओर ऐसे देखते थे जैसे वे सभी द्रविड़ बन सकते हैं। राहुल हमेशा मेहनत करने वाले खिलाड़ी थे। उनके संन्यास से बड़ा शून्य पैदा हो गया है।‘

 

टीम इंडिया को ऑस्ट्रेलिया में मिली करारी हार की जिम्मेदारी चाहे जिस किसी की हो, पर ऐसा क्यों लगता है कि कीमत राहुल द्रविड़ ने चुकाई। व्यक्तिगत तौर पर किसी खिलाड़ी को दोष देना बेईमानी हो सकता है पर मैदान के अंदर और खेल के बाहर भी राहुल ऐसे शख्स है जिनकी सहनशीलता को सलाम करते हैं। सौरभ गांगुली, सचिन तेंदुलकर, सहवाग और युवराज सरीखे रिकॉर्डधारी बल्लेबाजों के बीच निरंतर प्रदर्शन करते रहना और पहचान बनाना ही बड़ी बात है। जब कभी उनके बल्ले से रन खामोश हुआ अपनी कलात्मक शैली और क्लासिकल शॉट्स के जरिए राहुल ने वापसी की। और वह भी रिकॉर्डतोड़ वापसी। आंकड़े गवाह हैं कि वो कितने सफल और शालीन खिलाड़ी रहे। किसी भी खिलाड़ी का घरेलू रिकॉर्ड सबसे बेहतर होता है, पर द्रविड़ शायद पहले भारतीय क्रिकेटर हैं जिनका विदेशों में प्रदर्शन घरेलू मैदान से बेहतर रहा है।

 

 

किसी भी खिलाड़ी से की जाने वाली तुलना में राहुल सचिन से भी कम नहीं रहे। खुद सचिन जैसा रिकॉर्डधारी भी इस बात से सहमत होगा। आंकड़े कहते हैं कि अपने 16 वर्षों के करियर में उन्होंने सचिन तेंदुलकर से ज्यादा रन बनाए। द्रविड़ ने 164 टेस्ट में 36 शतक और 63 अर्धशतक की मदद से 52.31 की औसत से 13288 रन बनाए जिसमें पकिस्तान के खिलाफ खेली उनकी 270 रन की सर्वश्रेष्ठ पारी भी शामिल है। वह तेंदुलकर के बाद टेस्ट क्रिकेट में सर्वाधिक रन बनाने वालों की सूची में दूसरे स्थान पर हैं। सौरव गांगुली की कप्तानी में खेले गए 21 टेस्ट जीतों में उन्होंने भारत के लिए 23 प्रतिशत रन बनाए और इन मैचों में उनका औसत 102.84 रहा। गांगुली के कप्तानी में जब भारत 2003 विश्व कप के फाइनल में पहुंचा तब उस दौरे पर उन्हें विकेट कीपर बनाया गया। सब गंगुली पर हैरान थे पर दलील भी समझ में आ गई, भारत को एक बल्लेबाज के साथ साथ एक नया कीपर मिल गया था। इससे पहले राहुल द्रविड़ ने 1999 विश्वकप में सर्वाधिक रन भी बनाया। वह 210 कैचों के साथ टेस्ट क्रिकेट के सबसे सफल क्षेत्ररक्षक हैं, जिसमें अधिकतर कैच स्लिप में लपके। इसके अलावा वनडे क्रिकेट में भी 196 कैच के साथ 14 स्टंप किए।

 

अब ‘जैमी’ की यह भोली सूरत मैदान पर भले नहीं दिखेगी पर क्रिकेट इतिहास के ‘जेम’ जरूर बन गए हैं। मीडिया सहित अन्य हस्तियों ने इस पर अपने विचार प्रकट किए। अमिताभ बच्चन ने राहुल के संन्यास लेने पर उनकी भूमिका की सराहना की। अमिताभ ने लिखा, सबसे ज्यादा भरोसेमंद, जेंटिलमैन, निस्वार्थ भाव से खेलने वाले क्रिकेटर ने संन्यास लिया। वहीं शाहरुख खान ने कहा, राहुल द्रविड़ मेरे लिए सबसे जीवंत और भरोसेमंद क्रिकेटर हैं। टेनिस खिलाड़ी महेश भूपति ने लिखा, मैदान के अंदर और बाहर के चैम्पियन खिलाड़ी हैं राहुल। सचिन ने कहा, मैं उसे मिस करूंगा।

गांगुली की अपनी दलील है, राहुल के रिटायरमेंट पर कहते हैं कि कि द्रविड़ एक बेहतरीन बल्लेबाज ही नहीं, अच्छे विकेट कीपर और कप्तान भी थे। उनका फैसला सही वक्त पर आया। उनके संन्यास से खाली हुई जगह को भरना आसान नहीं होगा। द्रविड़ तीसरे नंबर पर खेलने वाले दुनिया के सबसे भरोसेमंद बल्लेबाज थे।

 

पर शायद राहुल टीम प्रबंधन और क्रिकेट बोर्ड का भरोसा नहीं जीत पाए और खुद में खुश रहना बेहतर समझा। पिछले इंग्लैंड दौरे पर जब उन्हें अचानक चार साल बाद वनडे टीम में शामिल किया गया तो उस दौरे के पहले ही वनडे को अलविदा कह गए। अब जब वो कुछ टेस्ट पारियों में बोल्ड होने लगे तो सवालों के घेरे में आ गए। और वो शायद इसका जवाब भी अपने अंदाज में दे पाते, पर ऐसा लग रहा है कि सबकुछ समय से पहले हो गया। द्रविड़ ने अपनी एक कुर्सी खाली कर बहुतों के लिए अवसर खोल दिया पर क्या टीम इंडिया में दूसरा ‘द वॉल’ खड़ा होगा? या क्रिकेट बोर्ड के पास उनके लायक कोई भूमिका है ...।

First Published: Tuesday, March 13, 2012, 10:41

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