Last Updated: Monday, January 21, 2013, 08:22

बर्लिन : वैज्ञानिकों के अनुसार पिछले कुछ दशक में आर्कटिक सागर क्षेत्र में बर्फ का पिघलना न सिर्फ लगातार जारी है बल्कि उसकी मोटाई भी कम होती जा रही है। लगातार पिघलने से जमा होने वाला पानी इकट्ठा होकर तालाब का शक्ल ले लेते हैं जो सूर्य के तापमान से गर्म होकर बर्फ को और पिघलाते हैं। इस तरह बर्फ सूर्य का तापमान ज्यादा सोखती है और तेजी से पिघलती है।
जर्मनी के एल्फ्रेड वेग्नर इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक मार्शल निकोलस की रिसर्च टीम लंबे समय से आर्कटिक सागर क्षेत्र में रिसर्च कर रही है और सेंट्रल आर्कटिक क्षेत्र में गर्मियों में बहुत ज्यादा संख्या में ऐसे तालाब बनने की बात कह रही है।
वास्तव में एक साल में बने बर्फ का आधे से ज्यादा हिस्सा इन तालाबों से ढंक गया है। वैज्ञानिक इसके पीछे जलवायु परिवर्तन को सबसे बड़ा कारण बता रहे हैं। आर्कटिक सागर की सतह पर जमी मोटी बर्फ की परत के अंदरूनी हिस्सों में काफी परिवर्तन हो रहा है जिसके कारण आर्कटिक सागर की सतह पर कई वर्षो की मोटी बर्फ की परत अब शायद ही कहीं देखने को मिले।
आर्कटिक सागर पर जमी बर्फ की इस चादर का पचास फीसदी हिस्सा अब मात्र एक वर्ष पुराने जमे बर्फ जितना रह गया है और उस पर भी पिघले हुए पानी से बने तालाब बन गए हैं। बर्फ की परत पतली होने के कारण इस तरह के तालाबों का फैलाव बढ़ता जा रहा है। (एजेंसी)
First Published: Monday, January 21, 2013, 08:22