Last Updated: Monday, September 26, 2011, 09:46

प्रदूषण की बात करें तो देश और दुनिया के लिए वायु प्रदूषण बड़ी चुनौती बना हुआ है. वायु प्रदूषण ना सिर्फ पर्यावरण को बुरी तरह प्रभावित करता है बल्कि इंसानी सेहत को भी नुकसान पहुंचाता है.
वर्ष 1990 से वर्ष 2010 के बीच कार्बन डाईआक्साइड गैस का उत्सर्जन सबसे ज्यादा हुआ. इन दो दशकों के दौरान इसके उत्सर्जन में 45 फीसीद की वृद्धि हुई. वर्ष 2010 में कार्बन डाईआक्साइड का उत्सर्जन 33 अरब टन हो गया, जो अब तक का सर्वाधिक स्तर है. वैश्विक तापमान बढ़ाने में कार्बन डाईआक्साइड की अहम भूमिका होती है.
इस अवधि के दौरान इसका उत्सर्जन यूरोपीय संघ के देशों में सात प्रतिशत और रूस में 28 प्रतिशत घटा, जबकि अमेरिका में पांच प्रतिशत की वृद्धि हुई. जापान में इसका उत्सर्जन पहले जैसा ही रहा.
विकासशील देशों में बिजली और यातायात जैसे क्षेत्रों द्वारा किए जाने वाले कार्बन डाईआक्साइड के उत्सर्जन की भरपाई बेहतर उर्जा दक्षता, अक्षय उर्जा और परमाणु उर्जा के प्रयोग होने से नहीं हो पाती है.
जिन देशों में कार्बन डाईआक्साइड के उत्सर्जन में वृद्धि हुई है, उनमें प्रमुख हैं चीन (10 प्रतिशत), अमेरिका (4 प्रतिशत) और भारत (9 प्रतिशत)।
क्योटो प्रोटोकॉल में कार्बन डाईआक्साइड का उत्सर्जन घटाने का लक्ष्य रखा गया है. क्योटो प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर करने वाले देशों और अमेरिका का 1990 में कुल कार्बन डाईआक्साइड उत्सर्जन में दो तिहाई योगदान था. आज उनका योगदान घटकर विश्व के कुल उत्सर्जन के आधे से कम रह गया है.
एजेंसी
First Published: Monday, September 26, 2011, 15:16