Last Updated: Friday, February 22, 2013, 12:22

नई दिल्ली : कई बार फेफड़े, गुर्दे, अग्नाशय, जिगर और गुदा के कैंसर के ट्यूमर का ऑपरेशन कर पाना संभव नहीं होता या फिर इस तरह के कैंसर के मरीज पर परंपरागत इलाज का असर नहीं होता। नैनोनाइफ तकनीक कैंसर के ऐसे मरीजों के इलाज के लिए उम्मीद की एक नयी किरण साबित हो सकती है।
इस तकनीक में इलेक्ट्रोपोरेशन तकनीक का उपयोग होता है। इसके जरिये कोशिकीय स्तर पर कैंसर के उस ट्यूमर को खत्म किया जाता है, जिस तक पहुंच पाना आसान नहीं होता। ये ट्यूमर कई बार ऐसी जगह होते हैं, जहां ऑपरेशन संभव नहीं होता।
कैंसर के ट्यूमर पर इलेक्ट्रोड के जरिये कुल 90 इलेक्ट्रिकल पल्स की श्रृंखला भेजी जाती है जो कैंसरकारी कोशिका की बाहरी झिल्ली को पूरी तरह नष्ट कर देती है। एक बार झिल्ली नष्ट हो जाए तो कोशिश अपने आप ही नष्ट हो जाती है। इस तकनीक में नाइफ यानी चाकू का उपयोग नहीं होता लेकिन यह अत्यंत छोटी जगह पर बने कैंसर के ट्यूमर को नष्ट कर सकती है इसलिए इसे नैनोनाइफ तकनीक कहा जाता है।
नैनोनाइफ तकनीक से खास तौर पर पांच सेमी से कम आकार के, कैंसर के ट्यूमर को खत्म किया जा सकता है। क्रिटिकल लोकेशन की वजह से अक्सर ऐसे ट्यूमर ऑपरेशन से निकालना संभव नहीं होता। कई बार इन पर परंपरागत इलाज का भी असर नहीं होता।
नैनोनाइफ तकनीक परंपरागत ऑपरेशन और साइबरनाइफ से पूरी तरह अलग है। इसमें मरीज को दर्द नहीं होता और न आसपास के उतकों तथा अंगों में जलन होती है। जरूरत पड़ने पर इसे दोहराया जा सकता है। यह तकनीक फेफड़े, गुर्दे, अग्नाशय, जिगर और गुदा के कैंसर के ट्यूमर खत्म करने के लिए उपयोगी है।
अमेरिका में वर्ष 2008 में इस तकनीक को मान्यता मिल चुकी है। वहां इसकी 30 मशीनें हैं। इसके अलावा दुनिया के अलग अलग देशों में इस तकनीक की पांच मशीनें हैं। राजधानी दिल्ली के राजीव गांधी कैंसर इन्स्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर में कुछ ही माह में इस तकनीक की शुरूआत होने जा रही है। उन्होंने बताया कि सामान्य थरेपी में लगने वाले समय से आधा समय नैनोनाइफ तकनीक में लगता है। (एजेंसी)
First Published: Friday, February 22, 2013, 12:22