Last Updated: Saturday, November 3, 2012, 15:33

लंदन : वैज्ञानिकों ने कैंसर के विकास में अहम भूमिका निभाने वाली जीनों को नियंत्रित करने वाले जैविक ‘स्विचों’ की खोज की है। स्वीडन के कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट और फिनलैंड के हेलसिंकी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने जीन्स के एक ऐसे क्षेत्र का अध्ययन किया जहां न्यूक्लियोटाइड में एक विसंगति मौजूद रहती है जो प्रोस्टेट कैंसर और आंतों के कैंसर के विकसित होने का खतरा बढ़ा सकती है।
इस अध्ययन में पाया गया कि अगर इस क्षेत्र को हटा दिया जाए तो ट्यूमर को बनने से रोका जा सकता है।
जीनोम वाइड असोसिएशन के जीन्स समूह (जीनोम) से जुड़े अध्ययनों में पाया गया कि ये क्षेत्र 200 से भी ज्यादा बीमारियों से जुड़े हैं। इन बीमारियों में दिल की बीमारी, मधुमेह और कई प्रकार के कैंसर शामिल हैं। एक प्रस्ताव ने काफी लोगों का ध्यान खींचा था। इसके अनुासार जीन से काफी दूर स्थित पोलीमोफिज्म में ‘स्विच’ या नियंत्रक तत्वों की तरह इस्तेमाल किए जाने की संभावना है ताकि जीन्स के हावभावों को नियंत्रित किया जा सके।
इस अध्ययन में जीन में मौजूद विसंगति किसी अन्य ज्ञात जैविक विसंगति के मुकाबले कैंसर के खतरे को सिर्फ 20 प्रतिशत ही बढ़ाती है। यह विसंगति काफी आम है इसलिए अनुवांशिक कैंसरों के लिए ज्यादा जिम्मेदार है।
यह प्रयोग चूहों पर किया गया। जब वैज्ञानिकों ने विसंगति वाला जैविक क्षेत्र हटा दिया तो पाया कि चूहे अब स्वस्थ थे लेकिन पास की कैंसर जीन के हावभावों में कुछ कमी भी दिखाई पड़ती थी। हालांकि इंसानों में आंतों के कैंसर का प्रमुख कारक यानी ऑनकोजेनिक सिग्नल जब सक्रिय किया गया तो चूहों ने ट्यूमर के बनने के प्रति पर्याप्त प्रतिरोधकता दिखाई।
इस तरह हटाया गया जीन क्षेत्र कैंसर को बढ़ावा देने वाले जीन्स के लिए एक महत्वपूर्ण स्विच की तरह काम कर सकता है क्योंकि इस क्षेत्र के न होने पर ट्यूमर मुश्किल ही बनता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, इन परिणामों से साबित होता है कि जीन में परिवर्तन एक व्यक्ति को दूसरे से भिन्न बनाते हैं फिर भी किसी बीमारी के विकसित होने के लिए इनमें लगभग एक सा प्रभाव होता है। ऐसे में ये जीन स्विच अहम भूमिका निभा सकते हैं।
प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर जस्सी ताइपेल ने कहा,‘हमारा अध्ययन यह भी दर्शाता है कि सामान्य कोशिकाओं और कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को विभिन्न जीन स्विचों के जरिए नियंत्रित किया जा सकता है। आने वाले समय में इन बीमार स्विचों की क्रियाविधियों को नियंत्रित भी किया जा सकेगा, जिससे इलाज के लिए नए और विशेष तरीके मिल सकेंगे। इस अध्ययन का प्रकाशन साइंस नामक पत्रिका में किया गया। (एजेंसी)
First Published: Saturday, November 3, 2012, 15:33