जीवाश्मों पर नष्ट होने का मंडराता खतरा

जीवाश्मों पर नष्ट होने का मंडराता खतरा

जीवाश्मों पर नष्ट होने का मंडराता खतरा कोलकाता: आधुनिक तकनीक से देखरेख और भंडारण की सुविधाओं के अभाव में भारत में करोड़ों साल पुराने जीवाश्मों पर नष्ट होने का खतरा मंडरा रहा है।

भारत की अधिकांश भूगर्भीय और जीवाश्मीय धरोहरें अकादमिक संस्थानों में रखी गई हैं। इन जीवाश्मों को भारतीय सरजमीं पर भारतीय विश्वविद्यालयों के संकाय सदस्यों ने एकत्र किया है। कैलिफोर्निया आधारित प्रख्यात भूगर्भविज्ञानी एवं हिमालय की प्रागैतिहासिक चट्टानों का शोध करने वाले निगेल हगेस ने बताया कि चूंकि ये संस्थान संग्रहालय नहीं है इसलिए वे जीवाश्मों का रखरखाव नहीं कर सकते।

जीवाश्म विज्ञानी सुभेन्दु वर्धन अपने समृद्ध संग्रह को संरक्षित रखने के लिए सीमित क्षेत्र एवं संसाधनों को लेकर कई जीवाश्मों को कोलकाता के जादवपुर विश्वविद्यालय में भूगर्भ विज्ञान विभाग के भंडार गृह में रखवाने को विवश हो गए।

गौरतलब है कि भारत जीवाश्म वाली चट्टानों के संग्रह के मामले में समृद्ध है जो करोड़ों साल पुरानी हैं और ये जीवन की उत्पत्ति और विकास को समझने के लिए बहुत अहम हैं।

प्रोफेसर बर्धन ने बताया कि हम अपने संकटापन्न वन्यजीवों के संरक्षण के लिए बहुत अधिक प्रयास कर रहे हैं लेकिन उन जंतुओं, पौधों और अन्य जीवों के लिए क्या, जो करोड़ों साल पहले पृथ्वी पर वास करते थे। उनके अंश जीवाश्म के रूप में अब भी हमारे साथ मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि यह एक विडंबना है कि यदि इन जीवाश्मों को संरक्षित रखने के लिए कोई राष्ट्रीय संग्रहालय नहीं होगा तो मेरे पूरे जीवन की कड़ी मेहनत बेकार हो जाएगी।

दिल्ली विश्वविद्यालय के भूगर्भविज्ञानी जीवीआर प्रसाद ने कहा कि हमारी प्रागैतिहासिक धरोहरों के संरक्षण के लिए कोई कोशिश नहीं की गई है। गौरतलब है कि कोलकाता स्थित भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण संग्रहालय शायद भारत में एकमात्र ऐसा संस्थान है जहां देश के विभिन्न हिस्सों के जीवाश्म, खनिज और चट्टानों के नमूनों के संग्रह रखे हुए हैं। (एजेंसी)


First Published: Thursday, August 29, 2013, 18:56

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