Last Updated: Sunday, June 24, 2012, 14:03

इंदौर : मध्यप्रदेश की नर्मदा घाटी में बिखरे ‘जुरासिक खजाने’ को ढूंढ़ निकालने वाले एक खोजकर्ता समूह ने दावा किया है कि मगरमच्छों और कछुओं के अंडे देने का तरीका सरीसृप वर्ग के अपने ‘पुरखों’ यानी डायनोसोरों से काफी हद तक मेल खाता है। ‘मंगल पंचायतन परिषद’ के प्रमुख विशाल वर्मा ने बताया, ‘नर्मदा घाटी में आज से कम से कम साढ़े छह करोड़ साल पहले पाये जाने वाले डायनोसोर सरीसृप वर्ग के ठंडे रक्त वाले जीव थे। ये विशाल जानवर मगरमच्छ और कछुए जैसे सरीसृपों की तरह ही अंडे दिया करते थे।’
उन्होंने कहा कि जिस तरह मगरमच्छ और कछुए अपने जलीय आवासों से निकलकर जलाशयों और समुद्र के रेतीले किनारों पर अंडे देते हैं, उसी तरह डायनोसोर भी अपनी रिहाइश की थलीय जगहों से अलग ऐसे ही तटों पर अंडे देने पहुंचते थे। वर्मा ने कहा, ‘डायनोसोरों की कई प्रजातियों की मादाएं नदियों और सरोवरों के रेतीले तटों पर अंडे देने के लिये लम्बी यात्राएं भी करती थीं।’ उन्होंने बताया कि डायनोसोर आम तौर पर किसी बड़े जलाशय या नदी के किनारे रेतीली और रवेदार मिट्टी में अंडे देते थे। अंडा देने की जगह डायनोसोर और उनके समूह के आकार के मुताबिक विस्तृत होती थी।
वर्मा ने बताया कि अंडे देते वक्त डायनोसोर ऐसी जगह चुनते थे, जो परभक्षियों की पहुंच से दूर और मौसम की उथल-पुथल से महफूज होती थी। ‘मंगल पंचायतन परिषद’ ने तब पहली बार दुनिया भर का ध्यान खींचा था, जब इस खोजकर्ता समूह ने वर्ष 2007 के दौरान नजदीकी धार जिले में डायनोसोर के करीब 25 घोंसलों के रूप में बेशकीमती जुरासिक खजाने की चाबी ढूंढ निकाली थी। (एजेंसी)
First Published: Sunday, June 24, 2012, 14:03