वनों की निगरानी का अच्छा साधन हैं तितलियां

वनों की निगरानी का अच्छा साधन हैं तितलियां

वनों की निगरानी का अच्छा साधन हैं तितलियांकोलकाता : तितलियां और छोटे-छोटे पतंगे जैव-सूचकों के रूप में काम करते हैं। उनकी इस विशेषता को देखते हुए एक नई किताब में कहा गया है कि इनका इस्तेमाल हमारे वनों की सेहत की निगरानी करने वाले एक प्रभावी साधन के रूप में किया जा सकता है।

‘बटरफ्लाईज़ ऑन द रूफ ऑफ द वर्ल्ड’ नामक पुस्तक में प्रकृति विज्ञानी पीटर स्मेटासेक लिखते हैं कि वन की सेहत का आकलन करने के लिए वे स्थानीय प्रजातियां लाभदायक होंगी, जो कि साल दर साल एक नियमित समय के दौरान सीमित क्षेत्र में पाई जाती हैं। एलेफ द्वारा प्रकाशित किताब में वह कहते हैं कि अगर कोई यह समझ ले कि ये प्राणी किसी और इलाके में जाकर क्यों नहीं रहते हैं तो वह अपने आप ही समझ जाएगा कि कोई घाटी या पहाड़ी ढलान विशेष क्यों महत्वपूर्ण है।

भारतीय तितलियों और पतंगों के बारे में विशेषज्ञता रखने वाले स्मेटासेक विज्ञान के लिए नई लगभग एक दर्जन प्रजातियों की व्याख्या कर चुके हैं। वे उत्तराखंड के भीमताल में तितली अनुसंधान केंद्र भी चलाते हैं।

इस कीटविज्ञानी के अनुसार, इन जीवित प्राणियों की मौजूदगी या गैर मौजूदगी का इस्तेमाल पर्यावरण की सेहत को दर्शाने के लिए किया जा सकता है क्योंकि ये जैव-सूचक हैं।

कीट-पतंगों की रंग-बिरंगी दुनिया के रहस्यों को स्मेटासेक पश्चिमी हिमालयों में पाई जाने वाली गोल्डन बर्डविंग नामक तितलियों के उदाहरण के जरिए समझाते हैं।

किताब कहती है कि अगर किसी को गोल्डन बर्डविंग्स अपने आसपास नहीं मिलती है तो इसका मतलब है कि वहां आसपास कोई भी सदाबहार जलस्रोत नहीं है। अगर वहां बर्डविंग्स हैं तो निश्चत तौर पर कहा जा सकत है कि वहां एरिस्टोलोशिया डाईलाटाटा नामक विकसित पौधे हैं, जिनके लिए पर्याप्त मात्रा में पानी की जरूरत होती है। इसलिए इसका अर्थ है कि आसपास कोई न कोई जलधारा होनी ही चाहिए। (एजेंसी)


First Published: Wednesday, April 17, 2013, 21:10

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