Last Updated: Sunday, July 14, 2013, 23:42

वाशिंगटन : मानवीय कारणों से फैलने वाले वायु प्रदूषण के कारण हर साल दुनिया में 20 लाख से अधिक लोगों की जान चली जाती है, जिनमें सबसे अधिक संख्या एशिया तथा पूर्वी एशिया के लोगों की है। यह दावा `एनवायरमेंटल रिसर्च लेटर्स` नामक पत्रिका में एक शोध के आधार पर किया गया है। इसके अनुसार, मानवीय कारणों से ओजोन में छिद्र बढ़ता जा रहा है, जिसके कारण दुनियाभर में हर साल करीब चार लाख 70 हजार लोगों की मौत हो जाती है।
इसका यह भी कहना है कि मानवीय कारणों से `फाइन पार्टिकुलेट मैटर` में भी वृद्धि होती है, जिससे सालाना करीब 21 लाख लोगों की मौत हो जाती है।
`पार्टिकुलेट मैटर` मोटर गाड़ियों, बिजली उत्पादन, औद्योगिक प्रतिष्ठानों, लकड़ी के चूल्हों, कृषि उत्पादों को जलाने से वातावरण में होने वाली रासायनिक अभिक्रियाओं से बनते हैं। ये हवा में घुल जाते हैं और सांस के माध्यम से हमारे फेफड़ों में पहुंच जाते हैं, जिससे कैंसर तथा श्वसन संबंधी अन्य समस्याएं हो सकती है।
शोध के सह लेखक उत्तरी कैरोलिना विश्वविद्यालय के जैसन वेस्ट ने एक बयान में कहा, "स्वास्थ्य पर पड़ने वाले पर्यावरणीय प्रभावों में वायु प्रदूषण सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। इसके कारण सबसे अधिक पूर्वी एशिया तथा दक्षिणी एशिया में लोगों की मौत होती है।"
शोधकर्ताओं ने वर्ष 1850 में औद्योगीकरण शुरू होने से वर्ष 2000 तक ओजोन पर भी ध्यान केंद्रित किया। शोधकर्ताओं ने हालांकि पाया कि ओजोन में इस दौरान मामूली बदलाव आए।
बयान के अनुसार, जलवायु परिवर्तन कई तरीके से हवा की गुणवत्ता को प्रभावित करता है। इससे स्थानीय स्तर पर वायु प्रदूषण में वृद्धि या कमी हो सकती है।
उदाहरण के लिए, तापमान एवं आद्र्रता से रासायनिक अभिक्रिया में परिवर्तन आ सकता है, जिससे प्रदूषण फैलाने वाले कारकों का निर्माण होता है। इसी तरह बारिश से यह तय हो सकता है कि प्रदूषण फैलाने वाले कारक कब संघटित होंगे। (एजेंसी)
First Published: Sunday, July 14, 2013, 23:42