`चीन की नई नीति में भारत को दी जाएगी प्रमुखता`

`चीन की नई नीति में भारत को दी जाएगी प्रमुखता`

`चीन की नई नीति में भारत को दी जाएगी प्रमुखता` बीजिंग : चीन में एक दशक में एक बार होने वाले नेतृत्व परिवर्तन से पूर्व रणनीतिकार यहां नई ‘पश्चिमोन्मुखी’ नीति को आकार देने में जुटे हैं जिसमें अमेरिका के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए जहां चीन के पाकिस्तान के साथ दशकों पुराने संबंधों को नए सिरे से संतुलित किया जाएगा तो वहीं भारत के साथ रिश्तों को प्राथमिकता दी जाएगी।

1962 के विवाद के बाद से भारत के साथ बिगड़े रिश्तों को सुधारने में मौजूदा राष्ट्रपति हू जिंताओ समेत चीनी नेताओं के साथ काफी घनिष्ठ सहयोग से काम करने वाले और बेहद सम्मानित रणनीतिकार प्रो. वांग जिसी ने कहा, ‘अमेरिकी पूर्व की ओर देख रहे हैं और हम पश्चिम की ओर।’ उन्होंने नेतृत्व के स्तर पर इन नए संबंधों की योजना के बारे में बेहद महत्वपूर्ण जानकारियां प्रदान कीं। पश्चिम से प्रो. वांग का मतलब भारत से शुरू होते चीन के पश्चिमी हिस्से से लेकर दक्षिण और पश्चिम एशिया से आगे तक का क्षेत्र शामिल है।

उन्होंने कहा, ‘चीन ने लंबे समय तक पश्चिम की अनदेखी की और अब समय आ गया है कि न केवल तेल, प्राकृतिक गैस के लिए बल्कि व्यापक आर्थिक अवसरों की दृष्टि से नए सिरे से संतुलन बनाया जाए।’ प्रो. वांग ने पिछले कुछ सालों में भारत और बाकी एशिया के साथ चीन के कारोबार में हुई सात गुना वृद्धि का हवाल देते हुए यह बात कही।

वांग पीकिंग यूनिविर्सिटी में स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के डीन और सेंटर फॉर इंटरनेशनल एंड स्ट्रेटेजिक स्टडीज के निदेशक हैं। लेकिन उनका रूतबा चीन की विदेश नीति सलाहकार समिति के कारण है जिसके वह एक प्रभावशाली सदस्य हैं। भारत के साथ अपने संबंधों को चीन द्वारा नए सिरे से परिभाषित किए जाने की प्रक्रिया के बीच उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के साथ चीन के ‘सदाबहार’ संबंध अब नई दिल्ली पर लगाम लगाने की नीति से संचालित नहीं होते हैं बल्कि अब इनका मकसद पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के साथ लगते मुस्लिम बहुल शिनजियांग में इस्लामिक आतंकवाद को रोकना है।

प्रो. वांग ने कहा, ‘कुछ लोग यह तर्क दे सकते हैं कि हमें भारत के कारण पाकिस्तान का समर्थन करना चाहिए लेकिन वास्तव में संबंध इस दृष्टि से संचालित नहीं होते हैं। सबसे पहले पाकिस्तान के साथ हमारे संबंध मूल रूप से ऐसी किसी भी योजना को विफल करने के लिए हैं जिससे शिनजियांग किसी प्रकार से अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बने।’ प्रो. वांग ने कहा, ‘हमें पाकिस्तान से कट्टरपंथी इस्लामी आतंकवाद को भी चीन में प्रवेश करने से रोकना है और इसीलिए हमें पाकिस्तान की सदाबहार सहयोगी के रूप में जरूरत है।’

उन्होंने कहा, ‘पाकिस्तान तेजी से कमजोर हो रहा है। यह भारत के सकल घरेलू उत्पाद से काफी कम है। मुझे इसका दुख है। मेरी भारत के खिलाफ कोई दुर्भावना नहीं है लेकिन मेरी पाकिस्तान के प्रति सदिच्छा है क्योंकि वहां लगभग हर कोई कहता है कि उसे चीन से प्यार है।’ प्रो. वांग ने कहा, ‘हम अफगानिस्तान में सुरक्षा को लेकर भी चिंतित हैं। पाकिस्तान बेहद महत्वपूर्ण है। हो सकता है कि माओत्सेतुंग के काल में पाकिस्तान का इस्तेमाल भारत पर लगाम कसने के लिए किया गया हो लेकिन अब ऐसी बात नहीं है।’

भारत पर लगाम लगाए जाने संबंधी सवाल के बारे में वांग ने कहा, ‘इतिहास के उस दौर में यह कमोवेश सच था लेकिन मुझे संदेह है कि आज ऐसी कोई बात है। पाकिस्तान अमेरिका और इस्लामिक देशों के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने में अधिक लाभकारी रहा है लेकिन भारत पर लगाम लगाने में नहीं।’ चीन-भारत संबंधों में पाकिस्तान का महत्व कम होने के वांग के विचारों से शीर्ष भारतीय नीति निर्माताओं ने भी सहमति जताई है। हालांकि उनका मानना है कि इस्लामाबाद अभी भी सैन्य और परमाणु क्षेत्र में चीन के साथ घनिष्ठ सहयोगी हैं लेकिन उस स्थिति में नहीं है कि वह भारत और चीन के संबंधों को प्रभावित कर सके। (एजेंसी)

First Published: Thursday, November 1, 2012, 16:26

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