Last Updated: Monday, November 21, 2011, 11:27
इस्लामाबाद : पाकिस्तान में स्वात घाटी की 13 साल की मलाला यूसुफजई को अंतरराष्ट्रीय बाल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया है। इस जाबांज लड़की ने तालिबान के तुगलकी फरमानों से जुड़ी दर्दनाक दास्तानों को महज 11 साल की उम्र में अपनी कलम के जरिए लोगों के सामने लाने का काम किया है।
मलाला उन पीड़ित लड़कियों में शामिल थी, जो तालिबान के फरमान के कारण लंबे समय तक स्कूल जाने से महरूम रह गई। दो साल पहले स्वात घाटी में तालिबान ने लड़कियों के स्कूल जाने पर पाबंदी का तुगलकी फरमान जारी किया था। इस दौर के अपने अनुभवों के आधार पर इस लड़की ने बीबीसी उर्दू सेवा के लिए एक डायरी लिखी।
मलाला आठवीं कक्षा की छात्रा है। उसने 42 देशों की 93 प्रतिभागियों को मात देकर वर्ष 2011 के अंतरराष्ट्रीय बाल शांति पुरस्कार का नामांकन हासिल किया है। इस पुरस्कार का एलान सोमवार को किया जाएगा। अगर मलाला यह पुरस्कार जीतती है तो उसे नोबेल पुरस्कार विजेता डेसमंड टूटू यह सम्मान देंगे। उसके साथ चार अन्य लड़कियों को भी नामांकित किया गया है।
मलाला ने पत्रकारों से बातचीत में कहा, ‘मैं बहुत खुश हूं कि मुझे चार अन्य बहादुर लड़कियों के साथ नामांकित किया गया है। मैं मिशेला नामक उस लड़की से प्रभावति हूं, जो शारीरिक अक्षमता के बावजूद बाल अधिकारों के लिए लड़ी। मैं यह पुरस्कार जीतूं या नहीं, मेरा संघर्ष जारी रहेगा। मैं बेसहारा लड़कियों के लिए एक शिक्षण संस्थान खोलना चाहती हैं ताकि ये लड़कियां भविष्य में अपने पैरों पर खड़ी हो सकें।’
यह पूछे जाने पर कि उन्होंने लड़कियों के अधिकारों को लेकर अभियान क्यों शुरू किया, मलाला ने कहा, ‘स्वात घाटी की हिंसा से मेरे दिमाग पर बहुत ज्यादा असर पड़ा। मैं चाहती हूं कि पूरी दुनिया स्वात के लोगों को आतंकवादी कहना बंद करे क्योंकि वहां के लोग अमनपसंद हैं।’ मलाला ने अपनी डायरी का पहला अंश 14 जनवरी, 2009 को लिखा था। इसके एक दिन बाद ही तालिबान ने लड़कियों के स्कूल जाने पर पाबंदी लगाने फरमान जारी किया था।
(एजेंसी)
First Published: Monday, November 21, 2011, 17:00