`बचायी जा सकती थी सविता की जान`

`बचायी जा सकती थी सविता की जान`

`बचायी जा सकती थी सविता की जान`लंदन : चिकित्सकीय जरूरत पर धार्मिक मतों को तरजीह देने की बात की ओर ध्यान दिलाते हुए भारतीय मूल के एक ब्रिटिश सांसद ने कहा कि सविता हल्लपानवार की दर्दनाक मौत के बारे में आयरलैंड द्वारा शुरू की गयी जांच के नतीजे ऐसे होने चाहिए जिससे दिवंगत महिला के परिजन और मित्र संतुष्ट हो सकें।

लेबर पार्टी के सांसद वीरेन्द्र शर्मा ने कहा कि यदि आयरलैंड के अस्पताल में रोगी की जरूरत के अनुरूप चिकित्सकी प्रक्रिया अपनायी जाती तो महिला की जिंदगी को बचाया जा सकता था।

शर्मा ने एक बयान में कहा कि 31 वर्षीय सविता हल्लपानवार की मृत्यु 28 अक्तूबर को उसकी गर्भावस्था में जटिलता के कारण उस समय हुई जब उसका गर्भपात करने से इंकार कर दिया गया क्योंकि आयरलैंड एक कैथोलिक राष्ट्र है। हल्लपानवार के परिवार ने कई बार गर्भपात के लिए कहा लेकिन आयरलैंड के संविधान के कारण इससे इंकार कर दिया गया जिसमें गर्भपात पर रोक लगायी गयी है।

उन्होंने कहा कि आयरिश अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि जब भी कोई जटिलता हो, जिंदगी या मौत का जोखिम हो, रोगी की जरूरत के अनुसार चिकित्सा प्रक्रिया को हमेशा तरजीह दी जानी चाहिए। मैं इस बात से चितिंत हूं कि धार्मिक मतों को चिकित्सा जरूरत पर तरजीह दी गयी जिससे चिकित्सकीय लापरवाही का संकेत मिलता है। 28 अक्तूबर को दो लोगों की जान गयी लेकिन यह स्पष्ट किया जाना चाहिए था कि एक की जान बचायी जा सकती थी।

शर्मा ने कहा कि मुझे उम्मीद है कि सविता हल्लपानवार की दुखद मौत के बारे में दो जांच चल रही हैं। इनमें सविता हल्लपानवार की दुखद मौत के लिए जिम्मेदार निर्णयों और कार्रवाई से जुडे कुछ महत्वपूर्ण सवालों का जवाब दिया जायेगा। इन महत्वपूर्ण जांच के जरिये सविता के परिवार और मित्रों को जवाब दिया जाना चाहिए। (एजेंसी)

First Published: Saturday, November 17, 2012, 08:35

comments powered by Disqus