Last Updated: Tuesday, November 29, 2011, 06:13
मेलबर्न : ऑस्ट्रेलिया के एक नामचीन कानूनी मामलों के विशेषज्ञ ने कहा कि जब तक भारत, परमाणु जांचकर्ताओं को अपने सैन्य सुविधा केंद्रों के जांच की अनुमति देने पर सहमत नहीं होता है, तब तक ऑस्ट्रेलिया द्वारा उसको यूरेनियम देना दक्षिण प्रशांत परमाणु मुक्त क्षेत्र संधि के तहत संघीय सरकार के उत्तरदायित्वों का उल्लंघन होगा।
ऑस्ट्रेलिया नेशनल विश्वविद्यालय के डोनाल्ड रोथवेल ने लिखे अपनी कानूनी राय में कहा, ‘यदि भारत ने अपना दृष्टिकोण नहीं बदला तो ऑस्ट्रेलिया कथित ररोतोंगा संधि का उल्लंघन करेगा।’ ररोतोंगा संधि विभिन्न देशों को जब तक यूरेनियम के निर्यात को प्रतिबंधित करती है जब तक कि वे परमाणु अप्रसार संधि द्वारा निर्धारित किए गए ‘पूर्ण सुरक्षा उपायों’ को लागू करने पर सहमत नहीं हो जाते हैं।
सिडनी में ऑस्ट्रेलियाई लेबर पार्टी के इस सप्ताह होने वाले राष्ट्रीय सम्मेलन में यूरेनियम ब्रिकी नीति चर्चा का गर्मागर्म विषय रहने की संभावना है । लेबर पार्टी भारत को लंबे समय से यूरेनियम के निर्यात पर लगी रोक को हटाने के लिये चर्चा करेगी।
‘हेराल्ड सन’ ने रोथवेल के हवाले से कहा, ‘यदि भारत परमाणु अप्रसार संधि, एनपीटी के आर्टिकल 3.1 के सुरक्षा उपायों से सहमत नहीं है और ऑस्ट्रेलिया, भारत को यूरेनियम का निर्यात करता है तो वह रारोटोंगा संधि के दायित्वों का उल्लंघन करेगा ।इसे उन देशों से चुनौती मिल सकती है जो इस संधि के हिस्सा हैं।
ऑस्ट्रेलिया यह नहीं कह रहा है कि भारत को सुरक्षा उपायों का हिस्सा होना चाहिए। वास्तविक प्रश्न यह है कि ये सुरक्षा उपाय किस हद तक लागू होंगे और उसका दायरा क्या होगा। भारत को पूर्ण सुरक्षा उपायों को अपनाना होगा जिसमें सैन्य सुविधा केंद्रों को खोलने की जरूरत होगी। रोथवेल ने कहा कि भारत द्वारा आईएईए के मानको को स्वीकार किया जाना ‘एक चरण’ था।
(एजेंसी)
First Published: Tuesday, November 29, 2011, 11:43