भूटान के नए प्रधानमंत्री के समक्ष हैं कई चुनौतियां

भूटान के नए प्रधानमंत्री के समक्ष हैं कई चुनौतियां

थिम्पू : भूटान के नये प्रधानमंत्री शेरिंग तोबगे के पदभार ग्रहण के साथ उनके समक्ष कई चुनौतियां भी आएंगी, जिनमें संयुक्त राष्ट्र के पांच स्थायी सदस्य देशों के साथ औपचारिक संबंध नहीं रखने की अपने कूटनीतिक रूख से नहीं भटकने के प्रति भारत को फिर से भरोसा दिलाने और देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का कार्य शामिल है। भूटान में हाल में हुए चुनाव में जीत हासिल करने वाली पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के प्रमुख तोबगे लोकतांत्रिक रूप से चुने गए देश के दूसरे प्रधानमंत्री के तौर पर इस महीने के अंत में अपना पदभार संभालेंगे।

चुनाव प्रचार के दौरान 47 वर्षीय नेता ने पूर्व प्रधानमंत्री एवं निवर्तमान सत्तारूढ़ पार्टी के प्रमुख जिगमी वाई थिनले द्वारा चीन के प्रति गर्मजोशी दिखाने को लेकर उनकी आलोचना की थी। थिनले ने पिछले साल ब्राजील में चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ से मुलाकात की थी। भूटान के इस कदम पर भारत ने जाहिरा तौर पर नाराजगी जाहिर की थी।

बहरहाल, शनिवार के आम चुनाव में 47 सदस्यीय नेशनल असेंबली में अपनी पार्टी को 32 सीटों पर जीत मिलने के बाद अपने विचार प्रकट नहीं किए हैं। उन्होंने संकेत दिया है कि वह देश की बागडोर औपचारिक रूप से संभालने के बाद ही उन मुद्दों के बारे में बोलेंगे जिनका देश सामना कर रहा है। पीडीपी ने अपने चुनाव घोषणापत्र में वादा किया था कि सरकार के प्रथम 100 दिनों के दौरान उनकी प्राथमिकता भारत-बांग्लादेश संबंधों का पुनर्निर्माण करने और दोनों देशों के बीच संबंध मजबूत करने की होगी। उनकी सरकार भारत से आर्थिक राहत पैकेज के लिए अनुरोध करेगी। पीडीपी प्रमुख को भारत की उन चिंताओं को भी दूर करना होगा जो पिछले पांच साल के दौरान भूटान द्वारा 32 देशों के साथ कूटनीतिक संबंध बनाने के कदम से पैदा हुई हैं।

भूटान का भारत के साथ एक विशेष संबंध है और इस देश की यह नीति है कि वह संयुक्त राष्ट्र के पांच स्थायी सदस्य देशों (चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका) को थिम्मू में अपना कूटनीतिक दूतावास नहीं खोलने देगा। (एजेंसी)

First Published: Tuesday, July 16, 2013, 00:13

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