UNHRC में भारत का वोट श्रीलंका के खिलाफ - Zee News हिंदी

UNHRC में भारत का वोट श्रीलंका के खिलाफ



जेनेवा: भारत ने गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में अमेरिका प्रायोजित उस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, जिसमें लिट्टे के खिलाफ युद्ध के दौरान मानवाधिकारों के कथित उल्लंघन को लेकर श्रीलंका की भर्त्सना की गई है। श्रीलंका की तमाम लामबंदी के बावजूद यह प्रस्ताव 15 के मुकाबले 24 मतों से पारित हो गया।

 

शुरू में भारत सरकार ने किसी देश विशेष के खिलाफ लाए गए प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करने को लेकर अनिच्छा जाहिर की थी, लेकिन संप्रग के घटक द्रमुक तथा तमिलनाडु के कई अन्य राजनीतिक दलों के दबाव के आगे सरकार को अपना रुख बदलना पड़ा। द्रमुक ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार से अपने मंत्रियों को हटाने तक की धमकी दे दी थी। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के कुल 47 सदस्यों में भारत समेत 24 देशों ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, जबकि 15 देशों ने इसके खिलाफ मतदान किया। आठ देशों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया। प्रस्ताव में कहा गया है कि श्रीलंकाई सरकार ने अंतरराष्ट्रीय कानूनों के ‘गंभीर उल्लंघन’ के मामले को सही ढंग से नहीं निपटाया।

 

इस प्रस्ताव में सरकार से कहा गया कि वह स्पष्ट करे कि कैसे वह अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों के कथित उल्लंघन का निराकरण करेगी और कैसे वह एलएलआरसी की सिफारिशों को लागू करेगी। सूत्रों का कहना है कि प्रस्ताव के प्रायोजक को मसौदे में दो बदलाव के लिए मनाने के बाद भारत ने इसके पक्ष में मतदान करने का फैसला किया। भारत ने इस दो बदलाव पर जोर दिया ताकि यह प्रस्ताव ‘हस्तक्षेप करने वाला नहीं’ होने के साथ ही श्रीलंका में राजनीतिक सुलह की प्रक्रिया में सहायक हो। भारत ने इस प्रस्ताव पर हुई बहस में हिस्सा नहीं लिया। हालांकि मतदान जरूर किया।

 

भारत के अलावा आस्ट्रिया, बेल्जियम, चेक गणराज्य, इटली, स्पेन, स्विट्जरलैंड, उरुग्वे और अमेरिका जैसे देशों ने इसके पक्ष में मतदान किया। चीन, बांग्लादेश, रूस, कुवैत, सउदी अरब और इंडोनेशिया ने प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया, हालांकि इन्होंने कहा कि श्रीलंका को रिकमेंडेशन्स ऑफ द लेसंस लर्न्ट एंड रिकॉन्सिलिएशन कमीशन (एलएलआरसी) की सिफारिशों को लागू करना चाहिए।

 

भारत को आड़े हाथों लेते हुए श्रीलंकाई विदेश मंत्री जी एल पेरिस ने कहा कि सबसे परेशान करने वाली बात यह है कि परिषद में मतदान किसी मुद्दे गुण या दोष के आधार पर नहीं, बल्कि रणनीतिक साझेदारियों और घरेलू राजनीतिक मुद्दों के आधार पर किया गया है। उधर, भारतीय आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि भारत प्रस्ताव में दो जरूरी बदलाव कराने में कामयाब रहा और इसके बाद पक्ष में मतदान करने का फैसला हुआ।

 

मतदान श्रीलंका के बागान उद्योग मंत्री महिंदा समरसिंघे की ओर से जोरदार विरोध के बाद हुआ। उन्होंने कहा कि मानवाधिकार के बारे में बाहर से कोई भी उनके देश को आदेश नहीं दे सकता। समरसिंघे ने अमेरिका प्रायोजित प्रस्ताव को सिरे से खारिज करते हुए इसे ‘गलत समझा गया, गैर जरूरी और गलत समय पर पेश किया गया’ प्रस्ताव करार दिया। इस दौरान उनके साथ श्रीलंकाई विदेश मंत्री जी एल पीरिस और वरिष्ठ तमिल नेता और मंत्री डगलस देवनंदा भी मौजूद थे।

 

प्रस्ताव के समर्थन में मतदान करने के अपने रुख को स्पष्ट करते हुए भारत ने कहा कि उसका मानना है कि मानवाधिकारों के प्रोत्साहन और रक्षा की प्राथमिक जिम्मेदारी राज्यों पर होती है। उसने कहा कि वह प्रस्ताव के व्यापक संदेश और जिस उद्देश्य को यह प्रोत्साहित करता है उसका समर्थन करता है। उसने इस बात पर जोर दिया कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय से कोई भी सहायता या यूएन स्पेशल प्रोसिजर्स की कोई भी यात्रा श्रीलंकाई सरकार के साथ विचार-विमर्श के जरिए होनी चाहिए। (एजेंसी)

First Published: Friday, March 23, 2012, 11:49

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