एफडीआई पर चर्चा कराने को सरकार आखिर हुई तैयार!

एफडीआई पर चर्चा कराने को सरकार आखिर हुई तैयार!

एफडीआई पर चर्चा कराने को सरकार आखिर हुई तैयार!नई दिल्ली : मल्टी ब्रांड रिटेल सेक्टर में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के मुद्दे पर संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन से बने गतिरोध को समाप्त करने के प्रयास में सरकार ने आज इस बात के संकेत दिए हैं कि वह दोनों सदनों में मत विभाजन वाले नियमों के तहत इस विषय पर चर्चा करा सकती है। अब वोटिंग किस नियम के तहत होगा इसका फैसला स्पीकर को करना है।

भाजपा के मत विभाजन वाले नियमों के अंतर्गत ही चर्चा कराए जाने पर अड़े रहने पर संसदीय मामलों के मंत्री कमलनाथ आज लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज और राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली से मिले। इन दोनों से बातचीत के बाद कमलनाथ ने कहा, ‘संसद को चलाने के हित को देखते हुए पीठासीन अधिकारी कोई भी फैसला (किसी भी नियम के तहत चर्चा कराने का) कर सकते हैं।’ सुषमा और जेटली से मिलने से पहले वह लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार और राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी से भी मिले।

विपक्ष के नेताओं ने उनसे मिलने आए कमलनाथ से स्पष्ट कर दिया कि वे केवल उसी नियम के तहत चर्चा कराने पर राजी होंगे जिसमें बहस के बाद मत विभाजन का प्रावधान होगा। दोनों ने संसदीय कार्य मंत्री से यह शिकायत भी की कि एफडीआई मामले में कोई निर्णय करने से पहले सभी राजनीतिक दलों और राज्यों के मुख्यमंत्रियों सहित संबंधित हितधारकों से विचार विमर्श करने के संसद के दोनों सदनों में दिए गए अपने आश्वासन का सरकार ने सीधा उल्लंघन किया है। कमलनाथ से लगभग एक घंटे की मुलाकात के बाद सुषमा ने संवाददाताओं से कहा, `ऐसी स्थिति में मल्टीब्रांड रिटेल सेक्टर में 51 प्रतिशत एफडीआई के सरकार के एकतरफा निर्णय के बारे में सदन की भावना जानने का एकमात्र रास्ता यही बचता था कि इस मुद्दे पर चर्चा के बाद सदन में मत विभाजन भी कराया जाए।`

कमलनाथ ने बहुमत का विश्वास जताते हुए कहा, `सरकार के लिए संख्या चिंता की बात नहीं है।` उन्होंने कहा, `सदस्य इतने परिपक्व हैं कि वे एफडीआई के पक्ष में निर्णय करेंगे। उन्होंने विपक्ष के इस आरोप से इंकार किया कि संख्या बल जुटाने के प्रयास में सरकार ने शीतकालीन सत्र के पहले चार दिन बर्बाद किए।` यह कहे जाने पर कि प्रमुख सहयोगी दल द्रमुक को एफडीआई मुद्दे पर मनाने के बाद ही सरकार मत विभाजन वाले नियम के तहत चर्चा के लिए तैयार हुई, संसदीय कार्य मंत्री ने दावा किया, ‘पहले दिन से मैं कहता आ रहा हूं कि हमारे पास संख्या है।’

उधर सुषमा स्वराज ने संसद में चर्चा के बाद वोटिंग की मांग पर मुख्य विपक्षी दल के अड़े रहने को सही बताते हुए कहा, ‘इससे सरकार गिर नहीं जाएगी। केवल एफडीआई का निर्णय गिरेगा। अगर संसद का बहुमत इस निर्णय के विरुद्ध है तो सरकार को उसका आदर करना चाहिए।’ कमलनाथ ने तर्क दिया कि सोमवार को हुई सर्वदलीय बैठक में अधिकतर बिना वोटिंग के प्रावधान वाले नियम के तहत चर्चा कराने के पक्ष में थे। उस बैठक में यह बात भी सामने आई कि अधिकांश दल चाहते हैं कि संसद चले।

कमलनाथ ने कहा कि सरकार मत विभाजन वाले नियम 184 के तहत चर्चा को अपनी ओर से स्वीकार नहीं कर सकती है। हमने यह निर्णय पीठासीन अधिकारियों पर छोड़ दिया है। सदन को चलाने के लिए वे जो निर्णय लेना चाहते हैं, उन्हें लेने दीजिए। इस सवाल पर कि विपक्ष के वोटिंग कराने पर अड़े रहने को देखते हुए क्या सरकार इसके लिए तैयार हुई है, उन्होंने कहा, ‘हम इसके खिलाफ नहीं हैं।’

यह पूछे जाने पर कि कार्यपालिका के निर्णय पर मतदान के लिए राजी होकर सरकार क्या गलत उदाहरण नहीं पेश कर रही है, संसदीय कार्य मंत्री ने कहा, ‘गलत उदाहरण तो कई हैं। सदन जिस तरह बर्ताव कर रहा है वैसा भी पहले नहीं होता था। नियम बहुत स्पष्ट हैं। हमें चिंता नहीं है। सरकार को अपने कदमों और नीतियों पर पूरा भरोसा है।’ भाजपा के अलावा वाम दल, बीजद, अन्नाद्रमुक और तेदेपा भी मत विभाजन वाले नियमों के तहत संसद में एफडीआई पर चर्चा कराने की मांग कर रहे हैं।

लोकसभा में मत विभाजन होने की स्थिति में सरकार संख्या के लिहाज से अच्छी स्थिति में दिख रही है। सपा, बसपा और द्रमुक उसे समर्थन का आश्वासन दे चुके हैं। सरकार से हाल ही में अलग हुई 19 सदस्यों वाली तृणमूल कांग्रेस भी विपक्ष से इसलिए नराज है कि उसने अविश्वास प्रस्ताव लाने के उसके प्रयास को समर्थन नहीं दिया। 545 सदस्यीय लोकसभा में सत्तारूढ संप्रग को वर्तमान में 265 सदस्यों का समर्थन प्राप्त है। 22 सदस्यीय सपा, 21 सदस्यीय बसपा का समर्थन मिलने से सरकार के समर्थन में 300 से अधिक मत जुट जाएंगे जबकि एफडीआई के अपने निर्णय को सही ठहराने के लिए उसे 273 सदस्यों के समर्थन की जरूरत है।

राज्यसभा में हालांकि सत्तारूढ़ गठबंधन का अपने बूते बहुमत नहीं है। उच्च सदन की अभी प्रभावी संख्या 244 है। संप्रग के 94 सदस्य हैं। सदन में 10 मनोनीत सदस्य हैं जो सरकार के पक्ष में मतदान कर सकते हैं। इसके अलावा सात निर्दलीय सदस्यों में से तीन या चार सरकार का साथ दे सकते हैं। इसके मद्देनजर सरकार को यह पूरी तरह सुनिश्चित करना होगा कि उच्च सदन में मत विभाजन के समय संकट से उबारने के लिए 15 सदस्यों वाली बसपा और नौ सदस्यों वाली सपा उसके पक्ष में मतदान करें। (एजेंसी)

First Published: Wednesday, November 28, 2012, 17:57

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