
नई दिल्ली: गुम कोयला फाइलों पर चुप्पी तोडते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मंगलवार को संसद में वायदा किया कि मांगे जा रहे दस्तावेज यदि वास्तव में गायब पाये जाते हैं तो सरकार सीबीआई जांच सहित गहरायी से जांच करके दोषियों को सजा सुनिश्चित करेगी। प्रधानमंत्री के बयान से हालांकि असंतुष्ट विपक्ष ने दोनों सदनों में कार्यवाही बाधित की।
इस मुद्दे पर विपक्ष के तीखे तेवर और हमलों के बीच प्रधानमंत्री ने राज्यसभा में विभिन्न दलों के सदस्यों द्वारा मांगे गए स्पष्टीकरण पर हस्तक्षेप करते हुए कहा कि सरकार के पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है तथा कोयला ब्लॉक आवंटन की जांच में सहयोग करने की उसकी मंशा पर ‘जल्दबाजी में निकाले गए निष्कर्षों’ से’ सवाल नहीं उठाए जाने चाहिए।
प्रधानमंत्री ने सीबीआई को सौंपी जाने वाली फाइलों और कागजात के संबंध में लोकसभा और राज्यसभा में दिये वक्तव्य में कहा कि कोयला ब्लाक आवंटन मामले की उच्चतम न्यायालय की निगरानी में सीबीआई (केन्द्रीय जांच ब्यूरो) द्वारा जांच की जा रही है।
उन्होंने कहा, ‘29 अगस्त 2013 के आदेश में न्यायालय ने कहा है कि सीबीआई पांच दिन के भीतर उन सभी कागजात और दस्तावेज की पूरी सूची सरकार को देगी जो अभी भी बकाया हैं और उसके बाद दो सप्ताह के अंदर सरकार सभी उपलब्ध कागजात सीबीआई को सौंप देगी।’
सिंह ने सदन को विश्वास दिलाया कि सरकार अदालत के इन निर्देशों का अक्षरश: पालन करेगी और पूरा प्रयास करेगी कि मांगे गये कागजात सीबीआई को उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्धारित समयसीमा के भीतर खोजकर दे दिये जाएं। यदि सरकार इन कागजात में कुछ को निर्धारित समयसीमा के भीतर नहीं ढूंढ पाती है, तो जैसा न्यायालय का निर्देश है, सीबीआई को रिपोर्ट भेज दी जाएगी ताकि वह उचित जांच करा सके।
उनके बयान से दोनों ही सदनों में विपक्ष संतुष्ट नहीं हुआ और जमकर हंगामा किया जिससे कार्यवाही बाधित हुई। विपक्ष और अधिक स्पष्टीकरण चाहता था। प्रधानमंत्री दोनों ही सदनों में बयान देने के तुरंत बाद सदन से चले।
सिंह ने कहा, ‘कोयला आवंटन के बारे में जांच से संबंधित तथाकथित गुम फाइलों या कागजात के प्रश्न पर मैं इस बात पर जोर देना चाहूंगा कि सरकार उन सभी कागजात को ढूंढने का पूरा प्रयास कर रही है जो सीबीआई द्वारा मांगे गये हैं। इस समय यह कहना जल्दबाजी होगी कि कुछ कागजात वास्तव में गायब हो गये हैं।’
उन्होंने कहा कि सीबीआई द्वारा मांगे गये ज्यादातर कागजात उसको पहले ही सौंप दिये गये हैं। फिर भी इस वास्तविक स्थिति को नजरअंदाज करते हुए कुछ सदस्यों ने अपने आप ही यह निष्कर्ष निकाल लिया है कि मामले में कुछ गड़बड़ है और सरकार कुछ छिपा रही है।
प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा, ‘मैं इस सम्मानित सदन को आश्वस्त करता हूं कि सरकार के पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है। मामले में चल रही जांच के साथ सहयोग करने की हमारी मंशा पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया जा सकता क्योंकि डेढ़ लाख से ज्यादा पन्नों के दस्तावेज सीबीआई को पहले ही दे दिये गये हैं।’
उन्होंने कहा कि उन्हीं दिनों से जब सीएजी (नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक) ने अपनी परफार्मेन्स आडिट प्रक्रिया शुरू की थी, सरकार ने हमेशा सीएजी के साथ और बाद में सीबीआई के साथ पूरा सहयोग किया है। हम ऐसा भविष्य में भी करते रहेंगे।
सिंह ने कहा, ‘अगर मांगे जा रहे दस्तावेज वास्तव में गायब पाये जाते हैं तो सरकार गहरायी से जांच कर यह सुनिश्चित करेगी कि दोषी लोगों को सजा मिले।’ उन्होंने कहा कि कोयला ब्लॉक आवंटन का मामला न्यायालय के विचाराधीन है, देश का उच्चतम न्यायालय इन आवंटनों के सभी पहलुओं को देख रहा है। इसके अलावा सीबीआई जांच की भी उच्चतम न्यायालय द्वारा नजदीकी से निगरानी की जा रही है।
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘ऐसी स्थिति में मैं इस माननीय सदन के सम्मानित सदस्यों से यह अनुरोध करूंगा कि वे जल्दबाजी में कोई निष्कर्ष न निकालें और सदन की कार्यवाही सामान्य रूप से चलने दें।’
इससे पहले राज्यसभा में प्रधानमंत्री से स्पष्टीकरण मांगते हुए विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने कहा कि इस संबंध में कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने जो दो बयान दिए हैं उनमें पर्याप्त विरोधाभास और अस्पष्टता है, इससे सरकार की मंशा को लेकर संदेह उत्पन्न होता है।
जेटली ने कहा कि मंत्री ने बयान दिया था कि गायब हुई फाइलें एवं दस्तावेज 2004 से पहले के हैं लेकिन इनमें बहुत सी फाइलें 2004 के बाद की भी हैं। विशेषकर 2006 से 2009 के बीच की, जब प्रधानमंत्री स्वयं कोयला मंत्रालय देख रहे थे।
उन्होंने कहा कि इस मुद्दे से निपटने में सरकार का कुप्रशासन सामने आ गया है क्योंकि इस पूरे मामले में राजस्व की हानि हुई, सरकार द्वारा सदन को गुमराह किया गया तथा हितों का टकराव हुआ। उन्होंने आरोप लगाया कि जो फाइलें गायब हुई हैं, उनमें से कई सरकार से जुड़े हुए लोगों के करीबी लोगों की फाइलें हैं।
भाजपा नेता ने कहा कि फाइलें गायब होने पर अभी तक कोई मामला क्यों दर्ज नहीं किया गया। उन्होंने सवाल किया कि इस मामले की नैतिक जिम्मेदारी सरकार में कौन लेगा।
माकपा के सीताराम येचुरी ने कहा कि कोयला मंत्री के बयानों से पता चलता है कि कुल मिला कर 199 दस्तावेज गायब हुए हैं। इन दस्तावेजों के गायब होने के संबंध में अभी तक कोई मामला क्यों नहीं दर्ज किया गया।
येचुरी ने कहा कि सरकार ने दस्तावेज गायब होने की जांच के लिए एक समिति गठित की थी। इसे गठित किए हुए एक सप्ताह हो चुका है और समिति ने अभी तक अपनी सिफारिशें क्यों नहीं दी हैं। इसे लेकर संदेह बढ़ता है।
उधर लोकसभा में भी विपक्ष ने प्रधानमंत्री के बयान से असंतोष जताया और उनसे स्पष्टीकरण की मांग की। अध्यक्ष मीरा कुमार ने कहा कि सदन में प्रधानमंत्री के बयान पर स्पष्टीकरण का कोई नियम नहीं है। उन्होंने कहा कि सदस्य इस विषय पर चर्चा के लिए नोटिस दे सकते हैं।
विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने जानना चाहा कि कोयला आवंटन से संबंधित जो कुछ फाइलें गायब हैं, उन्हें ढूंढने के लिए सरकार क्या प्रयास कर रही है। इस बीच प्रधानमंत्री बयान देने के कुछ ही देर बाद सदन से चले गए जिस पर विपक्ष ने कड़ी आपत्ति जतायी और हंगामा शुरू हो गया।
हंगामे के बीच ही वित्त मंत्री पी चिदम्बरम ने पेंशन कोष नियामक एवं विकास प्राधिकरण विधेयक 2011 को चर्चा के लिए पेश किया। व्यवस्था बनते नहीं देख अध्यक्ष ने कुछ ही मिनट बाद सदन की कार्यवाही दोपहर तीन बजे तक के लिए स्थगित कर दी। तीन बजे भी हंगामा जारी रहने पर सदन की बैठक पूरे दिन के लिए स्थगित कर दी गयी।
उच्च सदन में सपा के नरेश अग्रवाल ने जानना चाहा कि जिस समय की फाइलें गायब हुई हैं, उस समय कोयला मंत्री कौन थे। उन्होंने यह भी पूछा कि कैग की रिपोर्ट पर पीएसी की क्या सिफारिश है।
अन्नाद्रमुक के वी मैत्रेयन ने कहा कि उनकी जानकारी के अनुसार जो 287 फाइलें और दस्तावेज गायब हुए हैं, उनमें 103 संप्रग के शासनकाल के हैं। उन्होंने कहा कि इस मामले में प्रधानमंत्री और सिर्फ प्रधानमंत्री ही देश के प्रति जिम्मेदार हैं।
तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि प्रधानमंत्री नहीं तो कौन कोयला मंत्रालय के फाइलों का संरक्षक है।
बसपा प्रमुख मायावती ने सरकार से पूछा कि फाइलें गायब होने के संबंध में अभी तक जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई क्यों नहीं की गई तथा प्राथमिकी दर्ज क्यों नहीं की गई।
दोपहर दो बजे बैठक फिर शुरू होने पर भाजपा के सदस्यों ने कोयला ब्लॉक आवंटन से जुड़ी फाइलों का मुद्दा उठाया और इस मामले में प्रधानमंत्री से स्पष्टीकरण की मांग की।
भाजपा के रविशंकर प्रसाद और एम वेंकैया नायडू ने मांग की कि प्रधानमंत्री को सदस्य के विभिन्न सवालों पर स्पष्टीकरण देना चाहिए। इस पर उपसभापति पी जे कुरियन ने कहा कि विपक्ष की मांग पर प्रधानमंत्री ने बयान दे दिया है और अगर आप इससे संतुष्ट नहीं हैं तो इसमें आसन क्या कर सकता है।
भाजपा सदस्यों के हंगामे के बीच संसदीय कार्य राज्य मंत्री राजीव शुक्ला ने कहा कि विपक्ष की मांग पर प्रधानमंत्री कई बार सदन में आए और वह इस मामले में बयान भी दे चुके हैं।
हंगामे के बीच ही कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने कोई टिप्पणी की जिस पर भाजपा के सदस्य और उत्तेजित हो गए। शोरगुल के कारण सिब्बल की टिप्पणी सुनी नहीं जा सकी। हंगामा थमते नहीं देख कुरियन ने दोपहर दो बजकर करीब पांच मिनट पर बैठक 15 मिनट के लिए स्थगित कर दी।
इसके बाद बैठक शुरू होने पर भी भाजपा सदस्य अपनी मांगों पर अड़े रहे और प्रधानमंत्री से स्पष्टीकरण की मांग करते रहे। कुरियन ने हंगामा कर रहे सदस्यों को शांत करने का प्रयास करते हुए कहा कि वह किसी भी सदस्य को यह निर्देश नहीं दे सकते कि वह किस प्रकार अपनी बात कहें।
शुक्ला ने भाजपा पर आरोप लगाया कि वह संसद का अपमान कर रही है तथा यहां की स्थिति नगरपालिका, बाजार एवं पंचायतों जैसी हो गयी है। हंगामा थमते नहीं देख कुरियन ने बैठक दोपहर बाद तीन बजे तक के लिए स्थगित कर दी। तीन बजे सदन की बैठक शुरू होने पर हंगामा जारी रहा और कुरियन ने बैठक दिन भर के लिए स्थगित कर दी। (एजेंसी)
First Published: Tuesday, September 3, 2013, 12:55