क्राइम फाइल्स : हर 8 मिनट में 1 बच्चा गायब

क्राइम फाइल्स : हर 8 मिनट में 1 बच्चा गायब

क्राइम फाइल्स : हर 8 मिनट में 1 बच्चा गायबज़ी मीडिया ब्यूरो

कभी रेलवे स्टेशन से, कभी स्कूल के बाहर तो कभी घर के सामने खेल के मैदान में, जगह चाहे भीड़भाड़ भरी हो या फिर सुनसान, बच्चे कभी भी, कहीं भी गायब हो जाते हैं। वो भले ही 8-10 साल के हों या फिर नवजात, उनपर खतरे का साया हर पल मंडराता रहता है। देश में हर साल क़रीब 60 हजार बच्चे गायब होते हैं और इनमें से 40 फीसदी बच्चों का कोई नामोनिशान नहीं मिल पाता।

बच्चों की तलाश में मां बाप दर दर की ठोकरें खाते हैं, थानों के चक्कर काटते-काटते उनकी चप्पलें घिस जाती हैं लेकिन उम्मीद की कोई किरण दिखाई नहीं पड़ती। जिनकी जिंदगी का आधार ही गुम हो गया, आंखों का तारा कहीं खो चुका है, उनके दिल में हर वक्त टीस उठती है, घर का आंगन भी काटने को दौड़ता है, बस कुछ यादों के सहारे वो सुबह शाम वक्त गुजारते हैं। ये हालात देश के दूर-दराज़ के गांवों के ही नहीं, वहां के भी हैं जहां सुरक्षा की गारंटी के नए-नए कानून बनते हैं।

संसद में देश की जनता और सीमाओं की सुरक्षा के यहां बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं लेकिन एक सच ये भी है कि इसी संसद से महज 10 मील के फासले पर एक कॉलोनी से 600 बच्चे गायब हो चुके हैं और अगर बात संसद के घर दिल्ली की करें तो दिल्ली में भी हर रोज 14 बच्चे गायब होते हैं। इलाके के लोग बताते हैं कि यहां पिछले 2-3 साल में 12 से 13 साल की उम्र के बच्चों के गायब होने का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है।

इस इलाके में पुलिस किसी गिरोह के सक्रिय होने की बात नहीं मानती लेकिन जब क्राइम फाइल्स की टीम ने इलाके में उन बच्चों से मुलक़ात की जो किसी तरह से अपहर्णकर्ताओं के चंगुल से छूट गए तो उन्होंने बताया कि उन्हें पंजाब के इलाकों में ले जाया गया था और वहां उसने बंधुआ मजदूरों की तरह काम करवाया गया। वहीं हमें तफ्तीश के दौरान कई ऐसी लड़कियां भी मिलीं जिन्होंने अपनी दर्दभरी दास्तां बताईं।

12 साल की मंजू ने बताया कि एक बार स्कूल से लौटते हुए उन्हें एक वैन चालक ने उन्हें धूप से बचने के लिए गाड़ी में बिठाने की कोशिश की लेकिन वो किसी तरह से उस गाड़ी से बचकर निकल गई, तब से सहमी हुई है। क्राइम फाइल्स की तफ्तीश में ये भी खुलासा हुआ कि दिल्ली में भी कई ऐसे गिरोह पकड़े जा चुके हैं जो बच्चों से बंधुआ मजदूरी का काम करवाते हैं। खासकर, जरी उद्योग में ऐसे गिरोहों की बड़ी संख्या है। हाल ही में दिल्ली में छापामारी कर बच्चों को छुड़वाया गया। इनके मुंह से निकला हर शब्द इनपर बीते हर लम्हे को बयां करता है। एक बच्चे ने बताया कि उसे एक जरी कारोबारी के यहां काम करने के लिए मजबूर किया गया। वो जरी कारोबारी उससे रोजाना करीब 18 घंटे काम करवाता था। और अगर बीमार भी हो गए तो भी उन्हें काम न करने पर मारता पीटता था, खाने में सिर्फ एक रोटी ही दी जाती थी।

देह व्यापार की मंडी में बिकते हैं मासूम

क्राइम फाइल्स की तफ्तीश में पता चला कि बच्चों को अगवा करने वाले गिरोह पहले इलाकों में सर्वे करते हैं। इनमें नौकरीपेशा लोगों के बच्चे निशाने पर रहते हैं क्योंकि ऐसे लोगों के बच्चे पढ़ने और खेलने के लिए अक्सर अकेले ही घर से बाहर निकलते हैं। बच्चे के अकेले होते ही अपराधी उन्हें अपने शिकंजे में ले लेते हैं। बच्चों को तो ये भी पता नहीं चलता कि उनका घर कहां है और उन्हें कहां से कहां ले जाया जा रहा है। जिस्मफरोशी के धंधे से जुड़े गिरोहों के हाथ में आने के बाद इन बच्चियों को देशभर के अलग-अलग बाजारों में ऊंचे दामों पर बेचा जाता है और विरोध करने वालों की जुबान बंद कर दी जाती है लेकिन बच्चियों के गायब होने की वारदातें अब सिर्फ जिस्मफरोशी के लिए ही नहीं, उनकी मुलायम चमड़ी बाजार में बेचने के लिए भी अंजाम दी जा रही हैं।

क्राइम फाइल्स की टीम ने कई ऐसी बच्चियों के रिकॉर्ड्स खंगाले जिन्हें देहव्यापार के धंधे से छुड़वाया गया था। ज्यादातर लड़कियों ने एक ही बात कही, उन्हें उनके घर के पास से अगवा किया गया था। मध्य प्रदेश से देह व्यापारियों के चंगुल से छुड़ाई गई एक युवती ने बताया कि उसे 70 हजार रुपए में बेचा गया था और उसने कई 8-10 साल की उम्र की बच्चियों को भी खरीदते-बेचते हुए देखा है।

देश के हर हिस्से में ऐसे गिरोह सक्रिय हैं। पुलिस और एनसीआरबी के आंकड़े भी इनकी तस्दीक करते हैं। साल 2012 में 8541 मासूमों के साथ रेप की घटनाएं दर्ज की गईं और किडनेपिंग और एबडक्शन के मामलों में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। करीब 18,266 बच्चे देशभर में अगवा हुए, लड़कियों को देहव्यापार के लिए खरीदने के महज 15 मामले दर्ज हुए लेकिन बेचने के मामले 108 थे। ये वो आंकड़े हैं जिनकी जानकारी पुलिस थानों के रजिस्टर में दर्ज हो जाती है।

भिखारी गैंग के निशाने पर मासूम

लापता होते बच्चों में कई ऐसे भी होते हैं जो उम्र के पहले ही पड़ाव में जुर्म का शिकार बन, दर-दर की भीख मांगने को मजबूर हो जाते हैं। भीख भी ऐसी कि उसमें मिली रोटी भी वो नहीं खा सकते। मंदिरों में, मस्जिदों में और ट्रैफिक सिग्नल्स पर आपने बच्चों को भीख मांगते देखा होगा लेकिन क्या कभी सोचा है कि ये बच्चे आते कहां से हैं और भीख में मिली रकम का होगा क्या? मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ में ऐसे ही भीख मांगने वाले बच्चे को देख शक होने पर तफ्तीश की गई तो पता चला कि बच्चों को अगवा कर उनसे भीख मंगवाने का काम करवाया जाता था।

मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ में भी ऐसे ही गैंग का खुलासा हुआ है। पुलिस अधीक्षक अमित सिंह ने क्राइम फाइल्स की टीम को बताया कि शक होने पर पुलिसकर्मियों ने एक भिखारी बच्चे का पीछा किया तो पता चला कि मोहनगढ़ इलाके में एक गिरोह बच्चों से भीख मंगवाने का काम करता था। इस गिरोह के पास से 8 बच्चे बरामद किए गए हैं जिनमें से एक बच्चे की जीभ भी कटी हुई थी।

जैसे ही आपको ये एहसास हो कि जिगर का टुकड़ा कहीं लापता हो गया है, तो सबसे पहले बिना हिचके पुलिस को खबर करें। ऐसा तुरंत नहीं करने पर हो सकता है कि घर से खुद भागा बच्चा बहुत दूर पहुंच जाए, अपहरणकर्ताओं के चंगुल में फंसा आपके जिगर का टुकड़ा इलाके की पुलिस की पहुंच से दूर निकल जाए। इसलिए पुलिस को तुरंत फोन करें। घबराएं नहीं। देरी से दी गई सूचना की वजह से नुकसान उठाना पड़ सकता है।

पुलिस को सूचना देने के बाद गायब बच्चे की ताजा तस्वीर तुरंत पुलिस के पास पहुंचाने का इंतजाम करें। बच्चे की तस्वीरों की प्रतियां अखबारों और टीवी चैनलों और दूरदर्शन तक पहुंचाएं, इंटरनेट पर डालें, इश्तिहार छपवाने के लिए दें। बच्चे के लापता होने के तुरंत बाद उसके दोस्तों से बात करें। हो सकता है कि कोई सुराग या भागने की वजह पता चल जाए। बच्चे की तलाश में ज्यादा से ज्यादा लोगों को लगाएं। खुद ही सब कुछ करने की कोशिश न करें। इससे आपकी पहुंच सीमित हो जाती है और बच्चे का सुराग मिलने में मुश्किल होगी।

कई बार माता-पिता बदनामी के डर से लापता बच्चे के बारे में पुलिस, पड़ोसियों और रिश्तेदारों या बच्चे के दोस्तों से तुरंत बात नहीं करते, देर होने पर उनके हाथ सूनेपन के सिवा कुछ नहीं लगता। अपनी आंखों के तारों, जिगर के टुकड़ों, देश के भविष्य के लापता होते ही कार्रवाई करें और तिल-तिल कर मरने से बचें।

First Published: Saturday, July 27, 2013, 13:31

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