खाद्य वस्तुओं की कीमतों में आई कमी : प्रणब - Zee News हिंदी

खाद्य वस्तुओं की कीमतों में आई कमी : प्रणब



 

नई दिल्ली : आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि पर अंकुश पाने में सरकार के नाकाम रहने के विपक्ष के आरोपों को खारिज करने का प्रयास करते हुए वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने गुरुवार को दावा किया कि गेहूं, चावल, दाल सहित विभिन्न खाद्य वस्तुओं की कीमतें दो साल पहले की तुलना में कम हुई हैं।

 

साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि यूरोप सहित विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाओं में आई मंदी से भारत दीर्घकाल तक अछूता नहीं रह सकता है। उन्होंने कहा कि यह एक विश्वव्यापी रुझान है और इससे सभी को मिलकर निपटना होगा।

 

महंगाई पर काबू के लिए सरकार के गंभीर होने का दावा करते हुए मुखर्जी ने राज्यसभा में कहा कि विभिन्न खाद्य वस्तुओं की दो साल पहले की खुदरा कीमतों को आज की कीमतों से तुलना करें तो स्पष्ट होगा कि उनकी कीमतों में कमी आई है।

 

उच्च सदन में महंगाई मुद्दे पर कल शुरू हुई अल्पकालिक चर्चा का जवाब देते हुए मुखर्जी ने इस आरोप को भी खारिज कर दिया कि कांग्रेस के शासन काल में कीमतों में अधिक वृद्धि हुई है। इस क्रम में उन्होंने 1977 की जनता पार्टी की सरकार सहित अन्य गैर कांग्रेसी सरकार के समय के आंकड़ों का हवाला दिया। मुखर्जी के जवाब से असंतुष्ट भाजपा, माकपा, अन्नाद्रमुक सपा आदि दलों ने वाकआउट किया। महंगाई के विभिन्न कारणों की चर्चा करते हुए मुखर्जी ने कहा कि फसलों के समर्थन मूल्य में उल्लेखनीय वृद्धि की गई है, जिससे खाद्यान्नों की कीमतों में वृद्धि हुई है।

 

उन्‍होंने कहा कि पूर्ववर्ती सरकारों के कार्यकाल में धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 440 से 500 रुपये प्रति क्विंटल तक था जो अब बढ़कर 1080 रुपये तक पहुंच गया है। उन्होंने कहा कि कई राज्यों में जनवितरण प्रणाली की स्थिति ठीक नहीं है और कुछ ही राज्यों में यह प्रभावी है।

 

महंगाई में अहम भूमिका निभाने वाले पेट्रोलियम उत्पादों पर लगने वाले करों में कमी किए जाने की विभिन्न सदस्यों की राय को नकारते हुए मुखर्जी ने कहा कि पेट्रोलियम उत्पादों से केंद्र को जो राशि मिलती है, उसमें वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुसार 32 प्रतिशत हिस्सा राज्यों को दिया जाता है। उन्होंने कहा कि कोई भी राज्य इस विशाल राशि को नहीं छोड़ना चाहेगा। मुखर्जी ने मजाकिया लहजे में कहा कि पेट्रोलियम उत्पादों पर करों को लेकर केंद्र को ही निशाना बनाया जाता है लेकिन उसका बड़ा हिस्सा राज्यों को जाता है।

 

उन्होंने कहा कि पेट्रोलियम उत्पादों पर विभिन्न करों से केंद्र को।,36,497 करोड़ रुपए मिले। इनमें 32 प्रतिशत राशि राज्यों को मिलनी है। उन्होंने कहा कि विभिन्न वैश्विक घटनाओं का प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा है और सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर नौ प्रतिशत से घटकर 5.8 प्रतिशत रह गई।

 

उन्होंने कहा कि मौजूदा वैश्विक और घरेलू वित्तीय स्थिति को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार एवं रिजर्व बैंक ने विभिन्न कदम उठाए हैं ताकि मुद्रास्फीति पर काबू पाया जा सके और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिल सके। इस क्रम में उन्होंने रिजर्व बैंक द्वारा 13 बार विभिन्न दरों में परिवर्तन किए जाने का भी जिक्र किया। मुखर्जी ने कहा कि मांग एवं आपूर्ति दोनों पक्षों पर दबाव है और महंगाई पर काबू के लिए सभी पक्षों को मिल कर काम करना होगा।

 

उन्होंने कहा कि पहले वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई। अब यूरोप के संकट का असर भारत पर पड़ रहा है और एक ओर जहां एफआईआई के अंत:प्रवाह में कमी आई है, वहीं भारतीय निर्यात पर भी बुरा प्रभाव हुआ है। उन्होंने कहा कि यूरोपीय संकट में इस साल सुधार आने की कोई संभावना नहीं है और अब आशंका जताई जा रही है कि 2012 में भी इसमें सुधार आने के आसार नहीं हैं।

 

पेट्रोलियम क्षेत्र को नियंत्रण में रखे जाने की विभिन्न सदस्यों की राय पर मुखर्जी ने कहा कि सरकार ने सिर्फ पेट्रोल को नियंत्रण मुक्त किया है और डीजल, घरेलू रसोई गैस जैसे अन्य उत्पाद अब भी नियंत्रण के अधीन हैं। उन्होंने सवाल किया कि अगर तेल कंपनियों की आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं हुआ तो वे कैसे काम कर पाएंगी। उन्होंने कहा कि भारत अपनी घरेलू जरूरतों का बड़ा हिस्सा आयात से पूरा करता है और घरेलू उत्पादन उस लिहाज से काफी कम है।

 

मुखर्जी ने भाजपा से कहा कि राजग राजग सरकार खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के पक्ष में थी और उसे अब इसका विरोध नहीं करना चाहिए।

(एजेंसी)

First Published: Thursday, December 8, 2011, 19:23

comments powered by Disqus