Last Updated: Sunday, May 19, 2013, 17:55

नई दिल्ली : चीनी प्रधानमंत्री पद का कार्यभार संभालने के बाद ली क्विंग अपनी पहली सरकारी विदेश यात्रा पर रविवार दोपहर बाद भारत पहुंचे और आज शाम वह सीमा विवाद सहित सभी विवादित मुद्दों पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ बातचीत करेंगे।
ली के साथ आए एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल में सरकारी अधिकारियों के अलावा व्यवसायी भी शामिल हैं। ली दोपहर बाद करीब तीन बजे नई दिल्ली पहुंचे। विदेश राज्य मंत्री ई. अहमद और विदेश सचिव रंजन मथाई के अलावा मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने उनकी अगवानी की। तीन दिनों की भारत यात्रा पर पहुंचने के कुछ समय बाद ली सिंह के साथ बातचीत करेंगे। ली ने मार्च में कार्यभार संभाला था। उसके बाद यह उनकी पहली विदेश यात्रा है। सिंह उनके सम्मान में अपने सरकारी आवास पर रात्रिभोज देंगे। रात्रिभोज में अन्य लोगों के अलावा भाजपा और सपा सहित प्रमुख राजनीतिक दलों के सदस्य भी शामिल होंगे।
ली करीब 27 साल पहले भी भारत आए थे। अपनी यात्रा के पूर्व ली ने कहा था कि 27 साल पहले उनकी भारत यात्रा की मधुर यादें अब भी उनके जेहन में हैं। इस वजह से भी उन्होंने अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए भारत को चुना। ढाई दशक से भी अधिक समय पहले अपनी उस यात्रा को याद करते हुए ली ने कहा कि ताजमहल और प्रतिष्ठित भारतीय विश्वविद्यालयों, शोध संस्थानों की यात्रा तथा भारतीय लोगों से मिले सम्मान और आतिथ्य की मधुर यादें उनके जेहन में अब भी बरकरार हैं।
ली ने कहा था कि कुछ ही दिनों में वह चीनी प्रधानमंत्री के रूप में अपनी पहली विदेश यात्रा में भारत जाएंगे। उन्होंने यह फैसला सिर्फ इसलिए नहीं किया है कि भारत एक महत्वपूर्ण पड़ोसी देश है और दुनिया में सर्वाधिक आबादी वाले देशों में से एक है बल्कि मित्रता की उस शुरूआत के कारण भी किया है जो उनकी युवावस्था में हुई थी। विदेश मंत्रालय में प्रवक्ता सैयद अकबरुद्दीन ने कहा कि कार्यभार संभालने के बाद अपनी पहली विदेश यात्रा के तहत यहां आने के उनके कदम को भारत काफी सम्मान देता है और ऐसी उच्च स्तरीय वार्ताओं का उद्देश्य आपसी समझ और भरोसे में वृद्धि करना तथा एक दूसरे की चिंताओं के प्रति ‘संवेदनशीलता प्रदर्शित’ करना है।
दोनों नेता सोमवार को उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडलों के साथ प्रमुख अंतरराष्ट्रीय, क्षेत्रीय और द्विपक्षीय मुद्दों पर व्यापक वार्ता करेंगे। दोनों देशों के बीच सीमा, जल और आर्थिक संबंधों के तहत बाजार पहुंच जैसे विभिन्न महत्वपूर्ण मुद्दों पर मतभेद रहे हैं। दोनों नेताओं के बीच बातचीत के मुद्दों के बारे में संयुक्त सचिव (पूर्व एशिया) गौतम बमबावले ने कहा कि एजेंडा में सब कुछ शामिल है। बमबावले ने कहा, ‘दोनों प्रधानमंत्री इन विषयों के बारे में बातचीत करेंगे। चूंकि यह घुसपैठ हाल की घटना है इसलिए इस पर चर्चा की जाएगी।’
सूत्रों ने बताया कि लद्दाख क्षेत्र में यथास्थिति कायम रखे जाने की सहमति के उल्लंघन पर भी बातचीत होगी और भारत इस बात पर जोर देगा कि भारत और चीन के विशेष प्रतिनिधि इस मुद्दे पर विस्तार से चर्चा करें ताकि भविष्य में ऐसी घटना की पुनरावृत्ति से बचा जा सके। दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों के अगले कुछ महीनों में मिलने का कार्यक्रम है। भारत दोनों देशों के सीमा क्षेत्रों में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) की पुष्टि और स्पष्टीकरण पर जोर देता रहा है जिसका अंतिम निपटारा लंबित है।
सूत्रों ने कहा कि 1993 और 1996 में हुए समझौतों में एलएसी पर अलग अलग धारणाओं पर स्पष्टीकरण शामिल किए गए थे लेकिन बाद के वषरें में यह किसी प्रकार चीनी पक्ष की ओर से हटा लिया गया। संभवत: इसके पीछे वजह यह धारणा थी कि भविष्य में इसे सीमा के तौर पर देखा जा सकता है। सूत्रों ने कहा कि इस खास विषय को फिर से जीवित करने की आवश्यकता है ताकि इस प्रकार की घटनाओं पर रोक लग सके।
उन्होंने कहा कि हम जो स्पष्टीकरण मांग रहे हैं, वे अनिवार्य हैं और उसकी जरूरत है। ऐसा नहीं होने पर ‘देपसांग घुसपैठ’ जैसी घटना फिर से हो सकती है। यह पूछे जाने पर कि सीमा रक्षा सहयोग समझौते पर चीन के प्रस्ताव और इसके जवाब में भारतीय प्रस्ताव पर कोई प्रगति हुई है, बमबावले ने कहा कि इन प्रस्तावों पर चर्चा हो रही है हालांकि उन्होंने इस संबंध में ब्यौरा देने से इंकार कर दिया।
आर्थिक मोर्चे पर बमबावले ने कहा कि भारत चीनी बाजार तक पहुंच के लिए जोर देता रहेगा। वर्ष 2012 में द्विपक्षीय व्यापार 66 अरब डालर का था जबकि 2011 में 74 अरब डालर का कारोबार हुआ था। दोनों देशों ने 2015 तक द्विपक्षीय व्यापार को 100 अरब डालर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। चीन के साथ व्यापार में भारत व्यापार घाटे का सामना कर रहा है। 2011 के अंत तक भारत का व्यापार घाटा 27 अरब डालर का था। जनवरी 2013 में जारी चीनी व्यापार आंकड़ों के अनुसार 2012 में यह व्यापार घाटा बढ़कर 29 अरब डालर तक पहुंच गया।
ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन द्वारा तीन और बांध बनाए जाने के प्रस्ताव पर भारत की चिंता के भी दोनों देशों की बातचीत में शामिल होने की संभावना है। भारत चीन पर जोर देता रहा है कि या तो जल आयोग स्थापित किया जाए या पानी के मुद्दे से निपटने के लिए अंतर-सरकार स्तरीय बातचीत की जाए क्योंकि मौजूदा विशेषज्ञ स्तरीय तंत्र (ईएलएम) के तहत दोनों देश सिर्फ जल संबंधी सूचना साझा करते हैं। अधिकारियों ने बताया कि यात्रा के दूसरे चरण में ली मुंबई में उद्योग जगत के प्रमुख लोगों से मिलेंगे और टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज कार्यालय भी जाएंगे। (एजेंसी)
First Published: Sunday, May 19, 2013, 17:55